आक्रामक हिंदुत्व और हिंदी विरोध: राज-उद्धव की जुगलबंदी ने कांग्रेस को मुश्किल में डाला, ‘इंडिया’ गठबंधन में बढ़ी बेचैनी

नई दिल्ली, 7 जुलाई, 2025: महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की बढ़ती नजदीकियां ने कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। दोनों भाइयों का मराठी भाषा के मुद्दे पर साथ आना, विशेषकर राज ठाकरे की आक्रामक हिंदुत्व छवि और हिंदी विरोधी रुख, कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति और आगामी उत्तर भारतीय चुनावों, खासकर बिहार में, सिरदर्द बनता जा रहा है।


‘इंडिया’ गठबंधन में सियासी समीकरण की तलाश

राज और उद्धव ठाकरे की नजदीकी के बाद महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी और राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन के सियासी समीकरणों की दशा-दिशा तय करने में मुश्किलें आ रही हैं। कांग्रेस इस बात को लेकर चिंतित है कि राज ठाकरे की आक्रामक हिंदुत्ववादी और हिंदी विरोधी हालिया रणनीति उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन में कैसे स्वीकार्य बनाएगी।

कांग्रेस का एक बड़ा तबका राज ठाकरे को अपने साथ लेने के सख्त खिलाफ है। इसकी वजह राज ठाकरे के लंबे समय तक बीजेपी से करीबी रिश्ते और उनकी राजनीतिक शैली पर भरोसा न कर पाना है। उधर, उद्धव ठाकरे ने साफ कर दिया है कि वे राज के साथ सिर्फ मंच साझा नहीं कर रहे, बल्कि साथ रहेंगे


उद्धव के ऐलान से कांग्रेस में अंदरूनी बहस तेज

उद्धव ठाकरे के इस ऐलान से कांग्रेस में अंदरखाने यह बहस तेज हो गई है कि क्या राज ठाकरे को उद्धव के जरिए महाविकास अघाड़ी और राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल किया जाए या नहीं। हालांकि, इस बाबत उद्धव की तरफ से कांग्रेस से कोई औपचारिक संपर्क नहीं साधा गया है, लेकिन यदि ऐसा होता है तो पार्टी का स्टैंड क्या हो, इस पर चर्चा शुरू हो गई है। राज का महाविकास अघाड़ी या ‘इंडिया’ में शामिल होना इस बात पर निर्भर करेगा कि वे भविष्य की राजनीति में क्या दिशा रखते हैं और क्या वे उद्धव के दल में विलय करते हैं या कोई समझौता करते हैं।


उत्तर भारतीय दलों का रुख क्या होगा?

‘इंडिया’ गठबंधन के उन दलों का रुख भी अहम होगा जो उत्तर भारत में भी सियासत करते हैं और मुस्लिम मतदाताओं को रिझाते हैं, जैसे कांग्रेस, लालू यादव की राजद और अखिलेश यादव की सपा। उद्धव-राज के साथ आने के मौके पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले की मौजूदगी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल समेत अन्य कांग्रेस नेताओं की गैरमौजूदगी ने साफ कर दिया कि इस गठबंधन की राह आसान नहीं है। हालांकि, राजनीति में कुछ भी संभव है, जैसा कि बीजेपी-महबूबा मुफ्ती और कांग्रेस-बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना के सत्ता सुख लेने के उदाहरणों से स्पष्ट है।


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