बिहार के कुलकुलिया सैदपुर गांव में ‘नशा मुक्ति अभियान’: बिना सवालों के जवाब दिए नो-एंट्री, ग्रामीण बने ‘गार्ड’

भागलपुर, बिहार: बिहार के भागलपुर जिले के रसलपुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कहलगांव के कुलकुलिया सैदपुर गांव में ग्रामीणों ने नशाखोरी के खिलाफ एक अभूतपूर्व पहल की है। गांव के प्रवेश द्वार पर ड्रॉप गेट लगाकर ‘रोको टोको’ अभियान चलाया जा रहा है, जहाँ ग्रामीण खुद पहरेदारी कर रहे हैं। इस पहल के बाद नशेड़ियों के गांव में प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है, जिससे गांव में शांति का माहौल बना है।


क्यों शुरू हुआ यह अभियान?

दरअसल, बिहार में शराबबंदी के बाद सूखे नशे (खासकर ब्राउन शुगर और स्मैक) का प्रचलन तेजी से बढ़ा है, और युवा पीढ़ी इसकी गिरफ्त में आ रही है। कुलकुलिया सैदपुर गांव, रसलपुर थाना क्षेत्र के अंतिम छोर पर होने के कारण पुलिस की गश्ती कम होती थी, जिसका फायदा उठाकर नशेड़ी इसे अपना अड्डा बना रहे थे। हर रोज़ दर्जनों किशोर और युवकों का जमावड़ा गांव में लगता था, जिससे 15 से 25 साल के युवा नशे की लत में पड़ रहे थे।

ग्रामीणों ने बताया कि नशे के दौरान रोज़ाना गांव में हंगामा और विवाद होता था। रास्ते में आने-जाने वाली महिलाओं और छात्राओं पर नशेड़ी भद्दी टिप्पणियां करते थे, जिससे गांव का माहौल पूरी तरह बिगड़ रहा था। बाहरी नशेड़ियों द्वारा गांव में ब्राउन शुगर की बिक्री से भी स्थिति बदतर हो रही थी।


‘रोको टोको अभियान’ की खासियत

ग्रामीणों ने इन समस्याओं से परेशान होकर एक बैठक बुलाई और सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि गांव के मुख्य द्वार पर ड्रॉप गेट लगाकर नशेड़ियों को रोका जाएगा। अब जो भी व्यक्ति गांव में प्रवेश करता है, उससे पूछताछ होती है। यदि वह ग्रामवासी है या किसी का संबंधी है, तो उनका नाम बताने पर ही अंदर प्रवेश मिलता है।

  • 24 घंटे पहरेदारी: ग्रामीणों की अलग-अलग टोली बनाकर सभी का समय निर्धारित किया गया है, जो ड्रॉप गेट के पास 24 घंटे पहरेदारी कर रहे हैं।
  • संदेहियों से पूछताछ: ग्रामीण संदिग्धों को रोककर उनसे पूछताछ करते हैं।
  • युवाओं को बचाने की पहल: इस अभियान का मुख्य उद्देश्य गांव के युवाओं को नशे की लत से बचाना है।

परिणाम और चुनौतियाँ

इस पहल के बाद गांव में नशेड़ियों का जमावड़ा कम हुआ है और गांव में शांति का माहौल बना है। ग्रामीणों का कहना है कि नशे के कारोबारी दबंग और आपराधिक छवि के लोग हैं, और वे गांव में ब्राउन शुगर की बिक्री करवाते हैं। ग्रामीण सीधे उनका विरोध नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने यह अभियान शुरू किया। ग्रामीणों को नशे के कारोबारियों से जान से मारने की धमकियां भी मिल रही हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अपने अभियान पर डटे हुए हैं।

यह अभियान बिहार में नशा मुक्ति के लिए ग्रामीणों की सशक्त भागीदारी का एक बेहतरीन उदाहरण है।


आपको क्या लगता है, ऐसे सामुदायिक अभियानों को सरकारी समर्थन कैसे मिलना चाहिए ताकि वे सुरक्षित और प्रभावी ढंग से जारी रह सकें?

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