Guru Purnima 2025: गुरु पूर्णिमा महोत्सव के अवसर पर वाराणसी के संतमत अनुयायी आश्रम, मठ गढ़वाघाट में पूरे दिन भक्तों का सैलाब उमड़ा रहा। आदिकाल से चली आ रही गुरु-दीक्षा की परंपरा को जीवित रखते हुए, मठ के वर्तमान पीठाधीश्वर श्री श्री 108 स्वामी सरनानंद जी महाराज ने भटके हुए लोगों को दीक्षित कर सही मार्ग दिखाने को अपने जीवन का धर्म मान लिया है।

भक्ति और समर्पण से सराबोर आश्रम
काशी नगरी के दक्षिणी छोर पर मां भागीरथी के तट पर स्थित संतों की इस तपस्थली में उषाकाल (भोर) से ही भक्तों, संतों और शिष्यों का हुजूम उमड़ने लगा, और यह सिलसिला देर रात तक निरंतर चलता रहा, मानो “चरैवेति चरैवेति” (चलते रहो, चलते रहो) चरितार्थ हो गया हो। आश्रम के विस्तृत क्षेत्र में आधी रात तक लोग आते गए और उसी में समाते गए, जिससे पूरा माहौल भक्ति और समर्पण से सराबोर हो गया।

गुरु महोत्सव का भव्य शुभारम्भ
गुरु महोत्सव का शुभारम्भ आश्रम के पूर्व पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 स्वामी आत्मविवेकानंद जी परमहंस से लेकर श्री श्री 1008 स्वामी हरशंकरानंद जी परमहंस तक, क्रमशः सभी पीठाधीश्वरों की समाधियों में विधिवत पूजन-अर्चन और आरती के साथ हुआ। यह पूजन वर्तमान पीठाधीश्वर के कर कमलों से संपन्न हुआ। तत्पश्चात गुरु परंपरा के अनुसार, वर्तमान पीठाधीश्वर को सुसज्जित आसन ग्रहण कराकर संत, भक्त और शिष्यों ने उनका पूजन-अर्चन और आरती की। यह कार्यक्रम अर्द्धरात्रि तक अबाध गति से चलता रहा।
सद्गुरु सरनानंद जी का संदेश: “सेवा एवं समर्पण ही गुरूदक्षिणा है”
सायंकाल में आश्रम के विशाल सत्संग भवन में श्री सद्गुरुदेव जी की विराट एवं भव्य नयनाभिराम महा आरती को देख श्रद्धालु भावविभोर हो उठे और स्वयं को धन्य मानने लगे। इस अवसर पर उमड़े भक्तों के समूह को संबोधित करते हुए श्री श्री 108 स्वामी सद्गुरु सरनानंद जी महाराज परमहंस ने कहा कि, “मानव जीवन की श्रेष्ठता उसके कर्मों से सिद्ध होती है। अपना कर्म श्रेष्ठ रखें, प्रारब्ध भी श्रेष्ठ होगा। सेवा एवं समर्पण ही शिष्य के लिए गुरूदक्षिणा है।”
दिन भर चले इस महोत्सव में बाबा प्रकाशध्यानानंद, धर्मदर्शनानंद, सतज्ञानानंद, दिव्यदर्शनानंद और कलकत्ता, मुंबई, हरिद्वार आश्रम से आए अनेक महात्मागण एवं स्थानीय भक्तों का समुदाय बड़ी तत्परता से गुरु-सेवा में लीन दिखाई दिया।