मध्य प्रदेश: ‘डिलीवरी की तारीख बताओ, उठवा लेंगे’ बयान पर बवाल, सीधी के सांसद राजेश मिश्रा ने अब कहा – “सड़क बनवा देंगे!”

सीधी, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश के सीधी जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने बुनियादी सुविधाओं की कमी और जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें खड्डी खुर्द गांव की आठ गर्भवती महिलाएं सरकार से पक्की सड़कों की मांग कर रही हैं। उनका कहना है कि कच्ची और कीचड़ भरी सड़कों के कारण उन्हें अस्पताल तक पहुंचने में भारी परेशानी होती है, खासकर गर्भावस्था के आखिरी दिनों में।


सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर लीला साहू की पहल

इस मुहिम की अगुवाई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर लीला साहू कर रही हैं, जो खुद भी गर्भवती हैं। उन्होंने सात अन्य गर्भवती महिलाओं के साथ मिलकर यह वीडियो बनाया और सीधे केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को टैग किया। यह पहली बार नहीं है जब लीला साहू ने सड़कों के लिए आवाज उठाई हो; साल 2023 में भी उन्होंने यह मुद्दा उठाया था, लेकिन तब कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। अब अपनी प्रेग्नेंसी के दिनों में उन्होंने इस समस्या को फिर से सामने लाया है।

साल 2023 में भी लीला साहू ने प्रधानमंत्री मोदी और नितिन गडकरी को टैग करते हुए एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें उन्होंने पूछा था कि “आपने मध्य प्रदेश से सभी 29 सांसदों को जिताया। क्या अब हमें सड़क मिल सकती है?” तब सीधी के तत्कालीन कलेक्टर और सांसद ने तुरंत कार्रवाई का वादा किया था, लेकिन एक साल बाद भी सड़क जस की तस बनी हुई है – असुरक्षित और विकास की नजरों से ओझल।


सांसद के विवादित बयान पर यू-टर्न

इस बार जब वीडियो सामने आया, तो सीधी से बीजेपी सांसद राजेश मिश्रा का एक बयान आया, जिसने और भी बवाल खड़ा कर दिया। सांसद ने कहा, “हर डिलीवरी की एक अनुमानित तारीख होती है। हम उसे उससे एक हफ्ता पहले ही उठवा लेंगे।” उन्होंने आगे कहा था कि अगर वे महिलाएं चाहें तो उनके पास आएं, उन्हें सभी सुविधाएं मिलेंगी – खाना, पानी, देखभाल। उन्होंने यह भी कहा था कि “इन चीजों के बारे में सार्वजनिक रूप से बात करना आदर्श बात नहीं है।”

अपने इस बयान पर चौतरफा आलोचना और बवाल मचने के बाद, अब सांसद राजेश मिश्रा के सुर बदल गए हैं। उन्होंने अपने पूर्व के बयान पर सफाई देते हुए कहा है कि “सड़क बनवा देंगे।” यह बदलाव दर्शाता है कि जनविरोध और सोशल मीडिया के दबाव का असर पड़ा है।

सांसद ने पहले यह कहकर बात टालने की कोशिश की थी कि “क्या आज तक ऐसी कोई घटना (सड़क के कारण डिलीवरी में समस्या) हुई है? जरूरत पड़ने पर हमारे पास हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज हैं। हमारे पास आशा कार्यकर्ता हैं। हमारे पास एम्बुलेंस हैं। चिंता की क्या बात है?” उन्होंने निर्माण कार्य में देरी का कारण वन विभाग की आपत्तियों को बताया था, लेकिन परियोजना के शुरू होने या पूरा होने की कोई समय-सीमा नहीं बताई थी।


लोक निर्माण मंत्री का बेतुका तर्क

दो दिन पहले, लोक निर्माण विभाग मंत्री राकेश सिंह ने भी इस मुद्दे पर एक बेतुका तर्क दिया था। उन्होंने कहा था, “अगर कोई सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट डालता है, तो क्या हम डम्पर या सीमेंट कंक्रीट प्लांट लेकर पहुंचेंगे? यह संभव नहीं है।” सिंह ने आगे तर्क दिया कि बजट सीमित हैं और ऑनलाइन पोस्ट पर की गई हर मांग का समाधान नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “संवैधानिक प्रक्रियाएं हैं। अगर यह ग्रामीण सड़क है, तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सी एजेंसी जिम्मेदार है। हम हर पोस्ट पर कार्रवाई नहीं कर सकते।”

इन बयानों से साफ पता चलता है कि जनप्रतिनिधि जनता की बुनियादी समस्याओं को कितनी गंभीरता से लेते हैं। हालांकि, लीला साहू और खड्डी खुर्द गांव की महिलाओं की यह लड़ाई अब रंग लाती दिख रही है, क्योंकि सांसद को अपना रुख बदलना पड़ा है। उम्मीद है कि जल्द ही उन्हें पक्की सड़कों की सुविधा मिल पाएगी, ताकि कोई भी गर्भवती महिला उबड़-खाबड़ रास्तों पर जान का जोखिम लेकर अस्पताल जाने को मजबूर न हो।


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