सावन सोमवार 2025: पहला सोमवार आज, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

आज, 14 जुलाई 2025 को, सावन महीने का पहला सोमवार है, और यह दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए बेहद खास माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन सोमवार पर शिव पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। आइए जानते हैं इस पावन दिन की पूजा विधि, महत्व और भगवान शिव के पृथ्वी पर वास करने का कारण।


सावन सोमवार 2025: पहला सोमवार आज, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

आज सावन के पहले सोमवार पर शिव भक्त भोर से ही मंदिरों में उमड़ रहे हैं। ‘हर-हर महादेव’ और ‘बोल बम’ के जयकारों से शिवालय गूँज रहे हैं।

सावन सोमवार पूजा विधि

  1. सुबह स्नान: सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
  2. संकल्प: भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा का संकल्प लें।
  3. पूजन सामग्री: भोलेनाथ को फूल, धूप, गंध, बेलपत्र, शमी पत्र और जल अर्पित करें।
  4. जलाभिषेक: शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, घी, शक्कर और गन्ने के रस से अभिषेक करें। ध्यान रहे कि जल हमेशा पतली धारा में धीरे-धीरे चढ़ाएं।
  5. मंत्र जाप: जलाभिषेक करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का निरंतर जाप करें।
  6. महामृत्युंजय मंत्र: गंगाजल में कुछ काले तिल डालकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें और फिर इस जल को शिवलिंग पर अर्पित करें।
  7. दीपक और पाठ: आटे का चौमुखी दीपक जलाकर शिव चालीसा का पाठ करें।
  8. आरती और दान: अंत में महादेव की आरती करें और अपनी क्षमतानुसार ज़रूरतमंदों को दान करें।

सावन सोमवार पूजा मुहूर्त और जलाभिषेक का समय

14 जुलाई को सावन के पहले सोमवार पर शिव पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त हैं:

  • जलाभिषेक अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12 बजे से 12 बजकर 50 मिनट तक।
  • जलाभिषेक प्रदोष काल: शाम 07 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 45 मिनट तक।

सावन में क्यों पृथ्वी पर वास करते हैं भगवान भोलेनाथ?

शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के सावन मास में पृथ्वी पर वास करने की कथा माता सती और राजा दक्ष के यज्ञ से जुड़ी है।

राजा दक्ष ने एक बार भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया, लेकिन अपने दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया। जब माता सती को यह बात पता चली, तो वह बिना निमंत्रण के ही यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं। भगवान शिव ने मना किया, पर सती ने उनकी आज्ञा न मानते हुए यज्ञ में हिस्सा लेने पहुँच गईं।

वहाँ उन्होंने देखा कि सभी को निमंत्रण मिला है, सिवाय महादेव के, और उनके पिता लगातार शिव का अपमान कर रहे हैं। यह सब देखकर सती अत्यंत क्रोधित हुईं और उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। प्राण त्यागने से पहले उन्होंने प्रण लिया कि जब भी उनका जन्म होगा, वह महादेव को ही पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करेंगी।

जब शिवजी को सती के आत्मदाह का पता चला, तो वे क्रोध से भर उठे। उन्होंने अपने गण वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया। वीरभद्र ने यज्ञ को नष्ट कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे उसी यज्ञ कुंड में डाल दिया। इससे देवताओं में हाहाकार मच गया। देवताओं और ब्रह्मा जी के आग्रह पर शिव ने दक्ष को क्षमा किया, लेकिन उनका सिर भस्म हो चुका था। तब शिव ने एक बकरे के सिर को दक्ष के धड़ से जोड़कर उन्हें जीवित किया।

इसके बाद, दक्ष के आग्रह पर, भगवान शिव ने वहीं एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन मास उसी स्थान पर रहने का दक्ष को वचन दिया

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवी ने दूसरा जन्म माता पार्वती के रूप में लिया, तो उन्होंने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। सावन के महीने में ही भगवान शिव माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसी कारण हर वर्ष सावन के महीने में भोलेनाथ पृथ्वी पर आते हैं और अपनी ससुराल हरिद्वार के पास कनखल में दक्षेश्वर के रूप में विराजमान होते हैं, भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं।


सावन सोमवार व्रत का महत्व

सावन सोमवार का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मसंयम और आध्यात्मिक साधना का माध्यम भी है।

  • महिलाओं के लिए: यह व्रत नारी के लिए अखंड सौभाग्य, पति की दीर्घायु और दाम्पत्य सुख के लिए किया जाता है। कुंवारी कन्याएँ योग्य वर की प्राप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक यह व्रत करती हैं। मान्यता है कि स्वयं माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था, जो इस व्रत का मूल प्रेरणास्त्रोत है।
  • पुरुषों के लिए: पुरुषों के लिए यह शक्ति, शांति और आत्मिक उन्नति का माध्यम बनता है।

यह व्रत श्रद्धा, संयम और साधना का संगम है, जिसमें बाह्य आडंबर से ज़्यादा आंतरिक शुद्धि और आत्मा की उन्नति की कामना समाहित है। शिव तत्व को पाने के लिए यह श्रेष्ठ मार्ग है, जहाँ आस्था से आरंभ होता है और आत्मिक शांति पर समाप्त।

आज, 14 जुलाई 2025 को, सावन के पहले सोमवार के दिन धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र बन रहा है। इस दौरान आयुष्मान और सौभाग्य योग भी रहेगा। इस दिन गजानन संकष्टी चतुर्थी भी है, जिससे भगवान शिव का पूजन भक्तों के लिए और भी शुभ फलदायी होगा।

क्या आप भी इस सावन सोमवार पर भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना कर रहे हैं?

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