सामूहिक खुदकुशी : कर्ज के बोझ तले दबे परिवार में तीन मौतें, कफन में लिपटकर आए मां-बेटियों के शव तो गम में डूबा बिजनौर का गांव

बिजनौर के नूरपुर में कर्ज से परेशान पुखराज सिंह के परिवार ने सामूहिक खुदकुशी का प्रयास किया। इस दर्दनाक घटना में उनकी पत्नी और दो बेटियों की मौत हो गई, जबकि पुखराज की हालत गंभीर बनी हुई है। पूरे गांव में मातम पसर गया है।

सामूहिक खुदकुशी : कर्ज के बोझ तले दबे परिवार में तीन मौतें, कफन में लिपटकर आए मां-बेटियों के शव तो गम में डूबा बिजनौर का गांव

Bijnor News : बिजनौर के नूरपुर थाना क्षेत्र के टंडेरा गांव में गुरुवार को कर्ज के तकादे से तंग आकर एक परिवार ने सामूहिक खुदकुशी का प्रयास किया, जिसमें मां और दो बेटियों की मौत हो गई। शुक्रवार को जब मां और दोनों बेटियों के शव कफन में लिपटकर एक साथ घर पहुँचे, तो पूरा गांव गम में डूब गया। गांव वालों और रिश्तेदारों ने मिलकर चंदे से उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था की, और देर रात गमगीन माहौल में तीनों का अंतिम संस्कार किया गया।


दर्दनाक घटना का विवरण

गुरुवार सुबह टंडेरा गांव में पुखराज सिंह (उम्र अज्ञात) ने अपनी पत्नी रमेशिया और दो बेटियों, अनीता उर्फ नीतू और सविता उर्फ सीटू के साथ जहर निगल लिया था। हालत बिगड़ने पर चारों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। उपचार के दौरान पुखराज की पत्नी रमेशिया और दोनों बेटियों की मौत हो गई, जबकि पुखराज मेरठ मेडिकल कॉलेज में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं और उनकी हालत शुक्रवार को भी गंभीर बनी हुई थी।


एक साथ उठी तीन अर्थियां, हर आंख नम

बृहस्पतिवार देर शाम मां-बेटियों के शव पोस्टमार्टम के बाद घर पहुँचे, तो पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। रिश्तेदार भी मौके पर जमा हो गए। तीनों शवों को देखकर हर किसी की आँख में आंसू आ गए। पहले तो दिन निकलने पर अंतिम संस्कार करने की बात कही गई, लेकिन बाद में रात में ही अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया गया।

रात करीब 11 बजे, ग्रामीणों और रिश्तेदारों ने मिलकर अर्थियां तैयार कीं और अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक सामान की व्यवस्था की। तीनों शवों को गांव के पास बहने वाली कडूला नदी के तट पर ले जाया गया, जहाँ पुखराज के बेटे सचिन ने अपनी मां और दोनों बहनों की चिता को मुखाग्नि दी।


बेबस पिता नहीं देख सका बेटियों का आखिरी चेहरा

यह बेहद दुखद है कि खुद अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहे पुखराज सिंह अपनी पत्नी और बेटियों का आखिरी बार चेहरा भी नहीं देख सके, जबकि घर के आंगन में उनकी अर्थियां तैयार की जा रही थीं। हर कोई इस बेबस पिता के दर्द को महसूस कर रहा था।


कर्ज के बोझ ने उजाड़ा परिवार

पुखराज के परिवार पर न तो खेती की ज़मीन थी और न ही कोई स्थायी रोज़गार। परिवार का भरण-पोषण केवल दिहाड़ी मजदूरी से होता था। बेटी के विवाह में लिया गया कर्ज उतरने की बजाय इस कदर बढ़ गया कि परिवार साहूकारों के चंगुल में फंस गया। आए दिन पैसे लौटाने की जद्दोजहद और घर की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गई थी। यही चुनौती उनके जीवन पर इतनी भारी पड़ी कि एक हँसता-खेलता परिवार पूरी तरह उजड़ गया।