'कारखास': थाने का अवैध वसूली तंत्र और बेलगाम पुलिसिंग का अड्डा
थानों में 'कारखास' नामक अनधिकृत व्यवस्था, जो वसूली का लेखा-जोखा रखते हैं और थानेदार से कम रुतबा नहीं रखते। यह अवैध सिस्टम पुलिसकर्मियों के बेलगाम होने का बड़ा कारण माना जा रहा है।

पुलिस विभाग की आधिकारिक शब्दावली में भले ही 'कारखास' नाम का कोई पद मौजूद न हो, लेकिन हकीकत यह है कि कई थानों का संचालन इनके बिना संभव नहीं हो पाता। हर थाने में वसूली के एक समानांतर और अनधिकृत तंत्र को चलाने के लिए किसी न किसी सिपाही या दीवान को 'कारखास' के तौर पर नियुक्त किया जाता है।
ये 'कारखास' थाने से होने वाली तमाम अवैध उगाही की गतिविधियों की धुरी होते हैं। साहबों यानी उच्च अधिकारियों के लिए 'पैकेट' (वसूली की रकम का हिस्सा) तैयार करने से लेकर थाने के विभिन्न मदों में होने वाले खर्च का पूरा हिसाब-किताब इन्हीं के हाथों में होता है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि कई बार थानेदार का तबादला हो जाता है, लेकिन 'कारखास' सालों तक अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, क्योंकि वे निचले स्तर पर वसूली के पूरे नेटवर्क को संभालते हैं और अक्सर उच्च अधिकारियों तक भी अपनी 'पहुंच' बनाए रखते हैं।
'कारखास' की जिम्मेदारी सिर्फ साहबों तक वसूली पहुंचाना ही नहीं होती, बल्कि पूरे थाना क्षेत्र में वसूली का जाल फैलाना भी इनका काम होता है। सड़क किनारे लगने वाले अवैध ठेलों और खोमचे वालों से लेकर अवैध पार्किंग स्थलों तक से नियमित वसूली या फिर बिना पैसे दिए सामान 'उठा' लेना, ये सब 'कारखास' के इशारे पर ही होता है। यहां तक कि नए थानेदार भी अक्सर 'कारखास' की 'सलाह' पर ही थाने के अन्य पुलिसकर्मियों की ड्यूटी और महत्वपूर्ण चौकियों पर पोस्टिंग तय करते हैं। 'कारखास' की मर्जी के बिना मनचाही ड्यूटी या मलाईदार चौकी पर तैनाती पाना लगभग असंभव माना जाता है।
थानों पर पुलिस का यह अवैध सिस्टम, जिसमें 'कारखास' एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करते हैं, पुलिसकर्मियों के बेलगाम होने का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। जब वसूली का एक संगठित और अनधिकृत ढांचा थाने के भीतर ही मौजूद हो, तो निचले स्तर के पुलिसकर्मियों के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त होना और कानून की परवाह न करना आसान हो जाता है। 'कारखास' न केवल वसूली की रकम को ऊपर तक पहुंचाते हैं, बल्कि कई बार खुद भी इसमें बड़ा हिस्सा कमाते हैं, जिससे अन्य पुलिसकर्मियों को भी गलत काम करने की प्रेरणा मिलती है।
यह अवैध 'कारखास' व्यवस्था थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को भी दर्शाती है। जब एक अनधिकृत व्यक्ति थाने के कामकाज और वित्तीय मामलों में इतना दखल रखता है, तो स्वाभाविक रूप से आधिकारिक प्रक्रियाओं का पालन कमजोर पड़ जाता है। इससे आम जनता को न्याय मिलने में भी देरी होती है और पुलिस की छवि धूमिल होती है।
जरूरत है कि पुलिस विभाग इस 'कारखास' नामक नासूर को पहचाने और इसे जड़ से खत्म करने के लिए कठोर कदम उठाए। थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करके ही पुलिस बल को सही मायने में जनता का सेवक बनाया जा सकता है।