महाराष्ट्र में हिंदी थोपने पर शिवसेना भड़की: 'सामना' ने फडणवीस सरकार पर उठाए सवाल, पूछा- गुजरात में हटाई तो यहाँ क्यों थोप रहे?
महाराष्ट्र में पहली क्लास से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले पर विवाद छिड़ गया है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने फडणवीस सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि जब गुजरात में हिंदी हटाई जा रही है तो महाराष्ट्र में इसे क्यों थोपा जा रहा है।

मुंबई, महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में पहली कक्षा से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले को लेकर जोरदार बहस छिड़ गई है। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के मुखपत्र ‘सामना’ ने इस फैसले को मराठी भाषा पर हमला बताते हुए फडणवीस सरकार पर तीखे सवाल खड़े किए हैं। ‘सामना’ ने आरोप लगाया है कि जब गुजरात के स्कूलों से हिंदी को हटाया जा रहा है, तो महाराष्ट्र में इसे क्यों थोपा जा रहा है।
‘सामना’ के तीखे बोल: ‘मातृभाषा हमारा स्वाभिमान’
‘सामना’ में लिखा गया है कि "महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले से स्थानीय जनता को ठेस लगी है। हम हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अगर हिंदी हम पर थोपी जाएगी तो हम याद रखेंगे, हमारी मातृभाषा हमारा स्वाभिमान है, ये हमारी सांस्कृतिक पहचान है।" अख़बार ने पद्म पुरस्कार पाने वाले मराठी लेखकों और कलाकारों की चुप्पी पर भी सवाल उठाया है, और कहा है कि वे "लाडली बहनों की तरह लाडले लेखक और कलाकार बनकर रह गए।"
‘सामना’ ने नाना पाटेकर, माधुरी दीक्षित, सचिन तेंदुलकर और सुनील गावस्कर जैसे ख्याति प्राप्त लोगों से भी मराठी भाषा की ज़रूरत की तरफ देखने का आग्रह किया है।
त्रिभाषा फॉर्मूला पर सवाल और गुजरात का उदाहरण
‘सामना’ में केंद्र द्वारा लाए गए त्रिभाषा फॉर्मूले को राज्यों के "गले का बोझ" बताया गया है। अख़बार ने अन्य राज्यों में हिंदी भाषा की ज़रूरत पर सवाल खड़े करते हुए विशेष रूप से गुजरात का उदाहरण दिया है, जहाँ के स्कूलों से हिंदी को हटाए जाने की बात कही गई है। ‘सामना’ ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "पीएम मोदी और अमित शाह ने गुजरात की स्कूली शिक्षा से हिंदी को तो हटा दिया, लेकिन महाराष्ट्र में मराठी भाषा को मिटाने के लिए स्कूली शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य कर दिया।"
अख़बार ने पूछा, "यहाँ हिंदी को अनिवार्य करने जैसी कोई ज़रूरत ही नहीं थी, जब देश के प्रधानमंत्री बिहार में इंग्लिश में स्पीच देते हैं, इसके अलावा जब वो डोनाल्ड ट्रंप से हिंदी में बात करते हैं तो उस देश में हिंदी को अनिवार्य करने की क्या ज़रूरत है? हिंदी के वर्चस्व को दूसरों पर लादने की क्या ज़रूरत है?"
मराठी भाषा पर ‘आक्रमण’ का आरोप
‘सामना’ का कहना है कि हिंदी साहित्य और कला का विकास मुंबई में हुआ, इसलिए यहाँ हिंदी प्रचलित है, लेकिन अगर हिंदी मराठी भाषा की जड़ें काटे तो इससे स्थानीय जनता का आंदोलन करना स्वाभाविक है। अख़बार ने आगे लिखा, "डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने साफ तौर पर कहा है कि 'भाषा के आधार पर लोगों को विभाजित करना सही नहीं है। किसी भी भाषा को किसी पर थोपा नहीं जा सकता'।"
अख़बार ने फडणवीस सरकार पर मराठी भाषा पर "आक्रमण करते हुए साजिश" करने का आरोप लगाया है। ‘सामना’ ने पूछा कि अगर हिंदी महाराष्ट्र के लिए अनिवार्य कर दी जाती है तो इसे बेलगाम जैसे मराठी इलाकों में भी क्यों नहीं लागू किया जा रहा, जबकि वहाँ का इतिहास मराठा साम्राज्य से जुड़ा है। अख़बार ने मध्य प्रदेश में होलकर और शिंदे के शासन का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने कभी भी हिंदी पर मराठी को नहीं थोपा, और भोसलों ने भी तंजावुर पर शासन तो किया लेकिन मराठी को शासन की भाषा नहीं बनाया।
यह विवाद महाराष्ट्र में भाषा और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दे को फिर से गरमा रहा है।