Samajwadi Party Three Leaders Expell Case : तीन नेताओं को बाहर क्यों किया, चार को क्यों बख्शा? समझिए PDA की रणनीति

समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस-वोटिंग करने वाले सात में से तीन नेताओं को बाहर किया, जबकि चार को अभयदान दिया। इस 'चुनिंदा' कार्रवाई को सपा की 'PDA' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है, जिसका लक्ष्य 2027 के विधानसभा चुनाव को साधना है।

Samajwadi Party Three Leaders Expell Case  : तीन नेताओं को बाहर क्यों किया, चार को क्यों बख्शा? समझिए PDA की रणनीति

Lucknow News : उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) ने हाल ही में तीन नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है, जबकि राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस-वोटिंग करने वाले चार अन्य विधायकों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस 'सेलेक्शन' वाली कार्रवाई ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, लेकिन पार्टी के रणनीतिकार इसे अपनी 'PDA' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति का ही व्यापक विस्तार मान रहे हैं, जिसका फायदा उन्हें 2027 के विधानसभा चुनाव में मिल सकता है।


राज्यसभा चुनाव और असंतोष की जड़

साल 2024 की शुरुआत में हुए राज्यसभा चुनावों में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने जब पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन को उम्मीदवार बनाया, तो सहयोगियों से लेकर पार्टी के भीतर तक असंतोष के स्वर सुनाई दिए। इसके बावजूद, आलोक रंजन चुनाव हार गए, जिसकी मुख्य वजह सपा के ही सात विधायकों द्वारा पाला बदलना रहा। जिस उम्मीदवारी के लिए अखिलेश को अपनों के निशाने पर आना पड़ा, उसकी हार के 'गुनाहगारों' पर कार्रवाई करने में पार्टी को 15 महीने लग गए। अब जाकर यह एक्शन हुआ है, जिसमें भी 'सेलेक्शन' देखने को मिला है।


PDA रणनीति का विस्तार: 2027 पर नज़र

2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ही सपा मुखिया ने अपनी रणनीतिक बदलाव करते हुए पार्टी के वोट बैंक को पारंपरिक M-Y (मुस्लिम-यादव) से PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की ओर बढ़ाया। इस रणनीति का फ़ायदा सपा को विधानसभा चुनाव में मिला और 2024 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। नतीजों से उत्साहित सपा की नज़र अब 2027 के विधानसभा चुनाव पर है। इसलिए, हर फ़ैसले में इसकी राह बेहतर करने का संदेश देने की कवायद तेज़ हो गई है। विधायकों पर की गई और न की गई कार्रवाई को भी इसी रणनीति के चश्मे से देखा जा रहा है।


तीन पर एक्शन की वजह

जिन तीन नेताओं पर कार्रवाई हुई है, उनमें कुछ खास बातें हैं:

  • राजपूत वोटों की बेरुखी: सपा मुखिया सार्वजनिक मंचों से कह चुके हैं कि PDA के 'A' में अगड़ा भी शामिल हैं, लेकिन अगड़ों में, खासकर राजपूत वोटों को लेकर पार्टी पिछले कुछ चुनावों से न तो सहज है और न ही आश्वस्त। कन्नौज से लेकर दूसरे क्षेत्रों तक मतदाताओं के रुख को देखते हुए नेतृत्व के तल्ख़ बयान भी सामने आए हैं। राजा भईया सहित, सरकार के अहम चेहरों पर जाति आधारित हमलों की दिशा भी यही कहती है।
  • खुले तौर पर हमलावर: राकेश प्रताप सिंह और अभय प्रताप सिंह जैसे नेता सपा नेतृत्व पर खुलकर हमलावर रहे हैं और भाजपा नेतृत्व के साथ सार्वजनिक मंचों पर भी मुखर रहे हैं। इन पर कार्रवाई का दबाव क्षेत्र से भी था।
  • मनोज पांडेय का विरोध: पार्टी के एक नेता का कहना है कि मनोज पांडेय पर भी कार्रवाई की वजह यह है कि वह विरोध में इतना आगे बढ़ चुके थे कि उनके लिए पार्टी में वापसी की कोई गुंजाइश नहीं बची थी।

चार को क्यों मिला 'अभयदान'?

सपा ने जिन चार विधायकों पर कार्रवाई नहीं की है, उनमें कालपी के विधायक विनोद चतुर्वेदी, चायल से विधायक पूजा पाल, जलालाबाद से विधायक राकेश पांडेय और बिसौली से विधायक आशुतोष मौर्य शामिल हैं।

  • 'अच्छा व्यवहार': सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही इन विधायकों ने सपा नेतृत्व को लेकर अपना रुख नरम रखा है। इनमें से कुछ नेता पार्टी के संपर्क में भी हैं और गिले-शिकवे दूर करने की कवायद आगे बढ़ा चुके हैं।
  • ब्राह्मण और दलित हितैषी छवि: पार्टी कभी गोरखपुर के चिल्लूपार के पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी तो कभी दूसरे मुद्दों के ज़रिए खुद को ब्राह्मण हितैषी और सरकार को ब्राह्मण विरोधी साबित करने में लगी है। विनोद और राकेश को 'अच्छे व्यवहार' का ग्रेस पीरियड भी इसी संदेश का विस्तार माना जा रहा है।
  • PDA हितैषी छवि को पुख़्ता करना: पूजा पाल (दलित) और आशुतोष मौर्य (पिछड़ा) को भी कार्रवाई के दायरे से बाहर रखकर पार्टी अपनी 'PDA' हितैषी की छवि को और पुख्ता करने की कोशिश कर रही है। सपा मुखिया पहले भी इन पर कार्रवाई न करने का संकेत दे चुके थे।

यह 'चुनिंदा कार्रवाई' सपा की 2027 विधानसभा चुनाव की रणनीति का ही हिस्सा है, जिसके ज़रिए वह अपने मूल वोट बैंक को मजबूत करते हुए अन्य वर्गों को भी साधने का प्रयास कर रही है।