महाराष्ट्र: सबूतों के अभाव में हत्या के पांच आरोपी बरी, अदालत ने कहा – आरोप साबित नहीं हुए

महाराष्ट्र के ठाणे में 2014 की एक हत्या के मामले में सबूतों के अभाव और गवाहों के बयान बदलने के कारण अदालत ने पांच आरोपियों को बरी कर दिया।

महाराष्ट्र: सबूतों के अभाव में हत्या के पांच आरोपी बरी, अदालत ने कहा – आरोप साबित नहीं हुए

महाराष्ट्र के ठाणे जिले में 2014 में हुई एक हत्या के चर्चित मामले में नया मोड़ आ गया है। नौ साल से अधिक समय तक चली कानूनी प्रक्रिया के बाद, कल्याण सत्र न्यायालय ने इस मामले में शामिल पांच आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। अदालत के इस फैसले ने न्याय व्यवस्था और गवाहों की विश्वसनीयता को लेकर कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं।

2014 की घटना: जब एक युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई

यह मामला 9 सितंबर 2014 का है जब कल्याण इलाके में एक समूह ने लाठी-डंडों और लोहे की छड़ों से लैस होकर तीन युवकों पर हमला कर दिया था। इस हमले में गंभीर रूप से घायल सचिन रोंगेट नामक युवक की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी, जबकि दो अन्य घायल हुए थे। इस घटना ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी थी और पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था।

पांच आरोपी, एक की सुनवाई के दौरान मौत

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में वसंत गुलाब उबाले (51), पीयूष रमेश जगताप (40), संदीप मगन पंडित (45), अक्षय रमेश जगताप (33) और प्रवीण सुरेश चिकाने (40) शामिल थे। सभी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास) और अन्य धाराओं के तहत मुकदमा चलाया गया। हालांकि, मुकदमे की सुनवाई के दौरान एक आरोपी की मृत्यु हो गई, जिससे अब केवल पांच आरोपियों की सुनवाई पूरी की गई।

2016 में तय हुए आरोप, 2025 में हुआ फैसला

पुलिस ने शुरुआती जांच के बाद आरोपियों को अदालत में पेश किया और 2016 में अदालत ने उनके खिलाफ आरोप तय किए। लेकिन इसके बाद मामला वर्षों तक खिंचता रहा और आखिरकार मार्च 2025 में सुनवाई पूरी की गई। इस लंबे मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष अपनी बात को प्रभावी ढंग से साबित नहीं कर सका।

गवाहों ने पलटा बयान

मामले में सबसे बड़ा झटका तब लगा जब अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत गवाहों ने अदालत में अपने पहले दिए गए बयान से मुकर गए। अदालत के अनुसार, गवाहों ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे घटना के समय वहां मौजूद नहीं थे या उन्होंने घटना होते हुए नहीं देखा। यह स्थिति अभियोजन के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण बन गई।

अदालत का फैसला: सबूत नहीं, समझौते के संकेत

कल्याण सत्र अदालत की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मंगला ए. मोते ने फैसला सुनाते हुए कहा, “अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्षों के बीच मुकदमे के दौरान समझौता हो गया है। चूंकि न तो गवाहों का बयान घटना की पुष्टि करता है और न ही कोई अन्य साक्ष्य उपलब्ध है, इसलिए सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।”

सवालों के घेरे में जांच और अभियोजन प्रणाली

इस फैसले के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या न्यायिक प्रक्रिया में कहीं कोई चूक हुई? जिस मामले में युवक की जान चली गई, उस केस में अगर आरोपी सजा से बच जाते हैं तो यह न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकता है। गवाहों का पलटना, पुलिस की विवेचना में कमी और अभियोजन पक्ष की निष्क्रियता – ये सभी बातें इस तरह के मामलों को कमजोर करती हैं।

पीड़ित परिवार की प्रतिक्रिया

सचिन रोंगेट के परिवार ने अदालत के फैसले पर गहरा दुख और असंतोष व्यक्त किया है। उनका कहना है कि न्याय प्रणाली ने उन्हें निराश किया है और वे उच्च न्यायालय में अपील करने का विचार कर रहे हैं। परिवार का आरोप है कि गवाहों पर दबाव डाला गया या डराया गया, जिसके चलते उन्होंने बयान बदल दिए।

निष्कर्ष: एक फैसले से उपजे बड़े सवाल

यह मामला सिर्फ एक हत्या का नहीं है, बल्कि यह पूरे न्याय तंत्र की एक तस्वीर भी प्रस्तुत करता है। जहां एक ओर आरोपी बरी हो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिल पाता। सवाल यह भी उठता है कि क्या समझौते जैसी संभावनाओं को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता? क्या गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना न्याय का हिस्सा नहीं होना चाहिए?

यह भी आवश्यक है कि पुलिस और अभियोजन विभाग मामलों की विवेचना और प्रस्तुतिकरण में अधिक दक्षता और पारदर्शिता लाएं, ताकि कोर्ट में दोषियों को सजा दिलाई जा सके और निर्दोषों को बेवजह घसीटा न जाए।


महत्वपूर्ण बिंदु:

  • घटना: 2014 में युवक की पीट-पीटकर हत्या

  • आरोपी: छह, जिसमें एक की सुनवाई के दौरान मृत्यु

  • फैसला: पांच आरोपी साक्ष्य के अभाव में बरी

  • मुख्य कारण: गवाहों का बयान से पलटना, कोई ठोस सबूत नहीं

  • असर: न्याय प्रक्रिया पर सवाल, परिवार का उच्च न्यायालय जाने का संकेत


क्या यह फैसला न्याय है या व्यवस्था की कमजोरी? यह प्रश्न आज भी खड़ा है।