ईरान-इजराइल संघर्ष: ट्रंप के ऐलान के बाद सीजफायर, खामेनेई बने मुस्लिम दुनिया के हीरो
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद ईरान और इजराइल के बीच 12 दिनों का खूनी संघर्ष थम गया है। ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ने अमेरिका और इजराइल को जवाब देकर मुस्लिम दुनिया में अपना कद बढ़ाया और संघर्ष विराम के लिए मजबूर किया।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार तड़के ऐलान किया कि इजराइल और ईरान के बीच चल रहे युद्ध में दोनों पक्ष सीजफायर (संघर्ष विराम) के लिए सहमत हो गए हैं। यह घोषणा कतर में अमेरिकी अल उदीद एयरबेस पर ईरान के सांकेतिक हमले के कुछ ही घंटों बाद की गई, जिसके जरिए ईरान ने अमेरिका को साफ संदेश दिया कि वह ट्रंप और नेतन्याहू की धमकियों से डरने वाला नहीं है।
इजराइल के गठन के बाद से यह पहली बार था जब इतने बड़े पैमाने पर इजराइली शहरों पर हमले हुए। 86 वर्षीय सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ने अपनी हत्या के खतरे के बाद भी ईरान के लोगों के सम्मान और संप्रभुता की रक्षा के लिए सरेंडर करने से इनकार कर दिया। उन्होंने साफ किया कि ईरान के लोग फिलिस्तीन के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहेंगे, जिसके बाद ईरान का सम्मान पूरी दुनिया के मुसलमानों में बढ़ गया है।
खामेनेई का बढ़ता कद: क्यों बने मुस्लिम दुनिया के नायक?
सऊदी और तुर्की जैसे देश जो मुस्लिम दुनिया का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं, वे इजराइल के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने में नाकाम रहे हैं। ईरान द्वारा अमेरिका और इजराइल को दो टूक जवाब देने के बाद अब शिया मुसलमानों के साथ-साथ सुन्नी मुसलमानों में भी खामेनेई का कद काफी बढ़ गया है।
पिछले करीब 21 महीनों से जारी गाजा में इजराइली नरसंहार की सऊदी और कतर जैसे खाड़ी देशों ने सिर्फ निंदा ही की है। लेकिन, ईरान ने फिलिस्तीन के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अटल रहते हुए शुरुआत से ही इजराइल के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं।
ईरान एक शिया देश है और फिलिस्तीन एक सुन्नी देश है, लेकिन जब गाजा पर हमला हुआ, तो ईरान सबसे पहले इजराइल के खिलाफ खड़ा हुआ। युद्ध की शुरुआत से ही ईरान के प्रॉक्सी समूह जैसे हूती और हिजबुल्लाह ने इजराइल की नाक में दम कर रखा था। जानकार मानते हैं कि हमास को भी ईरान सैन्य और आर्थिक सहायता देता है।
साथ ही, ईरान ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी कूटनीतिक तरीके से फिलिस्तीन का मुद्दा उठाया। गाजा युद्ध के 2 साल पूरे होने से पहले ही इजराइल और अमेरिका की नज़रों में ईरान खलने लगा। फिर इजराइल ने ईरान में अपने जासूसी नेटवर्क के जरिए ईरान के प्रमुख नेताओं और अधिकारियों की हत्याएं करानी शुरू कीं, फिर भी ईरान फिलिस्तीन का साथ देने से पीछे नहीं हटा।
सीधे जंग में आया ईरान और अमेरिका को दिया जवाब
पहले दो बार इजराइल और ईरान में दूर से ही थोड़े-बहुत संघर्ष देखने को मिले, लेकिन 13 जून को इजराइल ने ईरान पर हमला बोलकर उसके कई सैन्य और परमाणु केंद्रों को निशाना बनाया, साथ ही करीब 30 अधिकारियों और वैज्ञानिकों की हत्याएं भी कीं।
इजराइल के इस हमले के बाद दोनों के बीच संघर्ष बढ़ गया और ईरान-इजराइल के बीच लगातार 10 दिनों तक हवाई हमले हुए, जिसमें ईरान के करीब 600 लोगों की जान गई, वहीं इजराइल में भी लगभग 30 लोग मारे गए।
करीब एक हफ्ते तक चेतावनी देने के बाद, शनिवार 21 जून की रात अमेरिका ने ईरान की तीन परमाणु साइटों नतांज, फोर्डो और इस्फहान पर अपने सबसे खतरनाक B-2 बॉम्बर से हमला कर दिया। साथ ही ट्रंप ने यह भी धमकी दी कि "हमें पता है कि खामेनेई कहाँ हैं और ईरान सरेंडर करे।"
खामेनेई ने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने उत्तराधिकारी तय करते हुए देशवासियों से अपील की कि "मेरी जान कुछ कीमत नहीं रखती, मेरे बाद ईरान को आपको इस्लामिक गणराज्य के लिए खड़े रखना है।" साथ ही अमेरिकी हमले का जवाब देने का संकल्प लिया। मंगलवार तड़के ईरान ने वही किया जैसा कहा था और कतर में मौजूद अमेरिकी एयरबेस पर करीब 10 मिसाइलों से हमला किया, यह बताते हुए कि "हम अमेरिका के ठिकानों को भी निशाना बनाने में सक्षम हैं।"
ईरान ने अमेरिका और इजराइल को झुकने और सीजफायर के लिए मजबूर किया है, जिसके बाद खामेनेई पूरी दुनिया में मुसलमानों के हीरो बन गए हैं।