ईरान-इजराइल संघर्ष: 12 दिनों की जंग के बाद सीजफायर, ईरान ने ऐसे पलटी बाजी!

ईरान और इजराइल के बीच 12 दिनों के खूनी संघर्ष के बाद सीजफायर हो गया है। अमेरिका के हस्तक्षेप के बावजूद, ईरान ने अपनी रणनीति, यूरेनियम शिफ्टिंग और मोसाद नेटवर्क को कमजोर करके इस जंग में रणनीतिक बढ़त हासिल की।

ईरान-इजराइल संघर्ष: 12 दिनों की जंग के बाद सीजफायर, ईरान ने ऐसे पलटी बाजी!
इजराइल ईरान के बीच हुआ सीजफायर

पिछले 12 दिनों से ईरान और इजराइल के बीच चल रहा खूनी संघर्ष अब थम गया है। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार रात ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हमले की मंजूरी देकर सबको हैरान कर दिया था, जिससे लगा कि अमेरिका भी सीधे तौर पर इस जंग में कूद गया है। लेकिन, सिर्फ 48 घंटे बाद सोमवार को ट्रंप ने एक और चौंकाने वाली घोषणा की कि ईरान और इजराइल ने पूरी तरह से सीजफायर पर सहमति बना ली है।

हालांकि, दोनों देशों की सरकारों ने इसे तुरंत सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया और तब तक मिसाइलें उड़ती रहीं। बाद में इजराइल की तरफ से सीजफायर पर सहमति की घोषणा की गई। उसके कुछ देर बाद ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल ने बयान जारी कर कहा कि उन्होंने "दुश्मन को पछताने पर मजबूर कर दिया।" सवाल यह उठता है कि 10 वैज्ञानिक और करीब 20 सैन्य अफसर गंवाने के बावजूद ईरान ने कैसे इस खूनी जंग में बाजी पलट दी?


आखिरी दम तक डटा रहा ईरान की रणनीति

ईरान ने कभी सीधे तौर पर हार नहीं मानी। उसने हर हमले का जवाब दिया और आखिरी वक्त तक मोर्चे पर डटा रहा। उसकी रणनीति यह थी कि जब तक दुश्मन थक न जाए, तब तक पीछे नहीं हटना। ईरान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को एक ऐसे देश के तौर पर पेश किया जिस पर यह युद्ध थोपा गया। उसने बार-बार कहा कि इजराइल और अमेरिका उसे उकसा रहे हैं। इससे उसे मुस्लिम देशों की सहानुभूति और नैतिक समर्थन मिला।


यूरेनियम को वक्त रहते शिफ्ट किया और मानसिक दबाव डाला

जब अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हमला किया, तब तक ईरान अपना 400 किलो संवर्धित यूरेनियम पहले ही किसी सुरक्षित जगह पहुंचा चुका था। इससे उसकी न्यूक्लियर तैयारी पर ज्यादा असर नहीं पड़ा।

ईरान ने इजराइल के सिविल इलाकों में हमला कर उसे मानसिक दबाव में डाला। यह सीधे तौर पर संदेश था कि अब जंग सिर्फ सीमाओं पर नहीं रहेगी। इसके साथ ही उसने खुद की तुलना गाजा से करके मुस्लिम दुनिया में खुद को अगुवा की तरह पेश किया।


मोसाद नेटवर्क को किया कमजोर और अंदरूनी एकता मजबूत

ईरान ने इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद के नेटवर्क पर हमला कर उसे कमजोर किया। कुछ स्लीपर एजेंट्स को पकड़ा गया और कुछ को खत्म कर दिया गया। इससे इजराइल को रणनीतिक नुकसान हुआ। इजराइल और अमेरिका की कोशिश थी कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो, लेकिन ईरान की सरकार इस दबाव में नहीं आई। उल्टा, उसने अंदरूनी एकता को और मज़बूत कर लिया।

ईरान ने भले ही अपने कुछ खास लोगों को खोया हो, लेकिन रणनीतिक तौर पर उसने इस जंग में बड़ी बढ़त बना ली है। उसने यह साबित कर दिया कि सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि सोच, चालबाज़ी और सब्र से भी जंग जीती जाती है।