UP: अफसार की तीन बेटियां हिंदुस्तानी... एक पाकिस्तानी, ये गांव अजीबो-गरीब रिश्तों के लिए चर्चित
Bareilly ke Nawabganj ke Khata gaon mein kuch Muslim parivaron ne Pakistan ki mahilaon se vivah kiya hai. Yeh gaon apne anokhe Bharat-Pakistan sambandhon ke liye mashhoor ho gaya hai, jahan parivarik bandhan sarhadein nahi maante.

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के नवाबगंज क्षेत्र का एक छोटा सा गांव खाता, इन दिनों एक बेहद खास वजह से चर्चा में है। यह गांव किसी राजनीतिक हलचल या विकास परियोजना के कारण नहीं, बल्कि अपने अनोखे रिश्तों और सरहदों से परे फैले पारिवारिक संबंधों के कारण सुर्खियों में है। यहां के कुछ मुस्लिम परिवारों ने पाकिस्तान की महिलाओं से विवाह किया है और अब ये महिलाएं भारत में रह रही हैं।
इस गांव में तीन पाकिस्तानी महिलाएं बतौर बहू रह रही हैं, जिनमें दो सगी बहनें भी हैं। ये महिलाएं भारत में न केवल बखूबी ढली हैं, बल्कि उन्होंने अपने आप को भारतीय संस्कृति में पूरी तरह आत्मसात कर लिया है। इनमें से कई के बच्चे भी यहीं पैदा हुए हैं और अब वे भारत के नागरिक हैं।
अफसार का परिवार: तीन बेटियां हिंदुस्तानी, एक पाकिस्तानी
खाता गांव के लकड़ी के कारीगर अफसार का विवाह वर्ष 2007 में पाकिस्तान के कराची की रहने वाली महताब फातिमा से हुआ था। निकाह के बाद महताब कुछ समय के लिए पाकिस्तान गईं और फिर भारत लौटीं। इस बीच पाकिस्तान में उन्होंने बेटी 'जहरा' को जन्म दिया, जो आज भी पाकिस्तान की नागरिक है। बाद में भारत लौटकर उन्होंने तीन और बेटियों – नजफ, फिजा और अलीजा – को जन्म दिया जो भारतीय नागरिक हैं।
इस तरह अफसार के घर में एक अनोखा मेल देखने को मिलता है – तीन बेटियां हिंदुस्तानी और एक पाकिस्तानी। परिवार इसे कोई समस्या नहीं मानता, बल्कि इसे रिश्तों की सुंदरता और विविधता का प्रतीक समझता है।
दो बहनें, एक ही दिन निकाह, दो भाइयों की दुल्हन
खाता गांव के दो अन्य परिवारों में भी इसी तरह की कहानियां हैं। गांव निवासी जाने अली और राशिद अली रिश्ते में भाई हैं। दोनों ने 2012 में पाकिस्तान की दो सगी बहनों – कुलसुम और मरियम – से एक ही दिन विवाह किया था। कुलसुम की शादी जाने अली से और मरियम की शादी राशिद अली से हुई। ये बहनें भी लंबे समय से भारत में रह रही हैं।
जाने अली बताते हैं कि उनकी पत्नी के पूर्वज भी कभी खाता गांव के ही निवासी थे और विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए थे। यही पारिवारिक रिश्ता बाद में विवाह का आधार बना।
दहशतगर्दी से डर, पाकिस्तान छोड़ आईं
मरियम, जो अब राशिद अली की पत्नी हैं, बताती हैं कि पाकिस्तान में असुरक्षा का माहौल उन्हें भयभीत करता था। शादी के बाद वह केवल दो माह के लिए पाकिस्तान गई थीं, लेकिन डेढ़ माह के भीतर ही वापस भारत लौट आईं। वे कहती हैं कि वहां इतना आतंक और अस्थिरता है कि परिवार के साथ जीवन यापन मुश्किल हो जाता है।
राशिद अली ने भी स्वीकार किया कि पाकिस्तान जाकर जीवन जीना संभव नहीं था, और इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी के लिए दीर्घकालिक वीजा बनवाया ताकि वे भारत में रह सकें। इस दंपत्ति के दो बेटे हैं – जैद और जैन – जो अब यहां की मिट्टी में पले-बढ़े हैं।
दिल हिंदुस्तान के लिए धड़कता है
हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद इन पाकिस्तानी मूल की महिलाओं ने साफ कहा कि वे आतंक के खिलाफ हैं और उनका दिल हिंदुस्तान के लिए धड़कता है। वे खुद को इस देश का हिस्सा मानती हैं और हर त्योहार और राष्ट्रीय पर्व पूरे उत्साह से मनाती हैं।
प्रशासन और वीजा की स्थिति
इन महिलाओं का भारत में रहना आसान नहीं था। दीर्घकालिक वीजा की प्रक्रिया लंबी और जटिल रही है। मगर इन परिवारों की दृढ़ इच्छाशक्ति और भारतीय पतियों के प्रयासों से अब ये महिलाएं कानूनी रूप से भारत में रह रही हैं। हालांकि केंद्र सरकार के हालिया फरमान – जिसमें पाकिस्तानियों को देश छोड़ने की बात कही गई – ने इन परिवारों को चिंतित कर दिया है।
परिवारों ने उम्मीद जताई है कि सरकार उनके मानवीय रिश्तों को समझेगी और इस संदर्भ में राहत प्रदान करेगी।
गांव में चर्चा का विषय
खाता गांव की गलियों में यह कहानी आज हर किसी की जुबां पर है। लोग इस पर चर्चा करते हैं कि कैसे रिश्ते सरहदों से भी ऊपर होते हैं। एक ओर जहां भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में तल्खी बनी रहती है, वहीं दूसरी ओर ये परिवार यह उदाहरण पेश करते हैं कि इंसानी रिश्ते इन सबसे ऊपर होते हैं।
निष्कर्ष
खाता गांव की ये कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि रिश्ते जाति, धर्म, या राष्ट्रीयता की सीमाओं से नहीं बंधते। ये उस मानवीय संवेदना का प्रतीक हैं, जो हर दिल में बसती है। ऐसे समय में जब दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंध बने हुए हैं, खाता गांव का यह उदाहरण उम्मीद की एक किरण जैसा है – जो दर्शाता है कि मेल-मिलाप, प्रेम और साझेदारी आज भी ज़िंदा हैं।
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