आपातकाल के 50 साल : गृहमंत्री अमित शाह बोले "मेरे गांव से 184 लोग जेल गए, वो दृश्य मरने तक नहीं भूलूंगा
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर इसे लोकतंत्र पर तानाशाही का हमला बताया। उन्होंने कहा कि उनके गांव से 184 लोग जेल गए थे और इंदिरा गांधी ने सत्ता बचाने के लिए यह कदम उठाया था।

New Delhi News : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को 'आपातकाल के 50 साल' कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आपातकाल को लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि उस समय सत्ता को बचाने के लिए आपातकाल लगाया गया था, जबकि कोई राष्ट्रीय खतरा नहीं था।
अमित शाह ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा, "जब आपातकाल लगाया गया था, तब मैं 11 साल का था। गुजरात में आपातकाल का असर कम था, क्यों कि वहां जनता सरकार बनी थी। लेकिन बाद में वह सरकार गिर गई।" उन्होंने भावुक होते हुए कहा, "मैं एक छोटे से गांव से आता हूं। मेरे गांव से ही 184 लोग जेल गए थे। मैं उस दिन और उन दृश्यों को मरने तक नहीं भूलूंगा।"
'भारत लोकतंत्र की जननी है, कोई तानाशाही बर्दाश्त नहीं कर सकता'
शाह ने इस बात पर जोर दिया कि "केवल आजाद होने के विचार के लिए जेल जाना, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि वह सुबह भारत के लोगों के लिए कितनी निर्दयी रही होगी।" उन्होंने आपातकाल को परिभाषित करते हुए कहा, "एक लोकतांत्रिक देश के बहुपक्षीय लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है।"
गृहमंत्री ने कहा, "यह लड़ाई इसलिए जीत ली गई क्यों कि इस देश में कोई तानाशाही बर्दाश्त नहीं कर सकता। भारत लोकतंत्र की जननी है। उस समय आपातकाल को कोई पसंद नहीं करता था, सिवाय तानाशाहों और उस छोटे-से संकुचित समूह के जिन्हें फायदा हुआ था।" उन्होंने आगे कहा कि जिन्हें भ्रम था कि कोई उनकी चुनौती नहीं दे सकता, वे आपातकाल के बाद जब पहले लोकसभा चुनाव हुए, तब पहली बार स्वतंत्रता के बाद गैर-कांग्रेसी सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
'राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं, सत्ता की सुरक्षा थी असली वजह'
अमित शाह ने आपातकाल लगाने के पीछे की वास्तविक वजह पर प्रकाश डालते हुए कहा, "सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की कि राष्ट्रपति ने आपातकाल लगा दिया है। क्या संसद की मंजूरी ली गई? क्या कैबिनेट की बैठक बुलाई गई? क्या विपक्ष को भरोसे में लिया गया? जो आज लोकतंत्र की बात करते हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि वे उस पार्टी से जुड़े हैं जिसने लोकतंत्र को खत्म किया।"
उन्होंने आरोप लगाया, "जो वजह बताई गई वह राष्ट्रीय सुरक्षा थी, लेकिन असली वजह सत्ता की सुरक्षा थी। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, लेकिन उनके पास संसद में वोट देने का अधिकार नहीं था। उनके पास प्रधानमंत्री के रूप में कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने नैतिकता का दायरा छोड़ दिया और प्रधानमंत्री बने रहने का फैसला किया।"
'कैबिनेट को केवल सूचित किया गया, एजेंडा पर चर्चा नहीं'
केंद्रीय गृहमंत्री ने बताया कि "कई घटनाओं की एक श्रृंखला ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हिला दिया। कोई राष्ट्रीय खतरा नहीं था। हम अभी हाल ही में बांग्लादेश के साथ युद्ध जीत चुके थे। कोई आंतरिक या बाहरी खतरा नहीं था।" उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी को एकमात्र खतरा अपने पद का था और लोग समझ गए थे कि वे जो वोट भावना के आधार पर देते हैं, उनका गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसे समझते हुए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया।
शाह ने बताया कि सुबह 4 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई, और बाद में बाबू जगजीवन राम और स्वर्ण सिंह ने कहा कि उनसे एजेंडा पर चर्चा तक नहीं की गई, उन्हें केवल सूचित किया गया, गृह सचिव को बुलाया गया और आदेश पारित किए गए।
'इंदिरा के चुनाव हारने पर हजारों लोगों के चेहरों पर थी खुशी'
अमित शाह ने उस ऐतिहासिक क्षण को याद किया जब आपातकाल समाप्त हुआ। उन्होंने कहा, "मुझे याद है, हमारे गांव से हम लोग एक ट्रक में बैठकर एक अखबार की इमारत के सामने लोकसभा चुनाव के नतीजे देख रहे थे... जब हमें पता चला कि इंदिरा गांधी चुनाव हार गई हैं, यह रात के करीब 3 या 4 बजे की बात है, हमें यह भी पता चला कि संजय गांधी भी चुनाव हार गए हैं, तब हजारों लोगों के चेहरों पर जो खुशी थी, वह मैं कभी नहीं भूल सकता।"