Token System : यूपी में सोना तस्करी का 'टोकन सिस्टम परमिट के नाम पर अफसरों की मिलीभगत से जारी होते हैं कोड, तस्करी के वाहनों को नहीं रोका जाता

उत्तर प्रदेश में सोना तस्करों ने परिवहन विभाग से इतर एक 'टोकन सिस्टम' विकसित कर लिया है। तस्करी के रूटों पर पड़ने वाले जिलों में अधिकारियों की कथित मिलीभगत से अवैध बसों और ट्रैवलर को एक खास 'कोड' जारी किया जाता है, जिसके आधार पर उन्हें जांच में नहीं रोका जाता। पड़ताल में सामने आया कि एनएच 730 पर यह 'निकासी' व्यवस्था धड़ल्ले से चल रही है।

Token System : यूपी में सोना तस्करी का 'टोकन सिस्टम  परमिट के नाम पर अफसरों की मिलीभगत से जारी होते हैं कोड, तस्करी के वाहनों को नहीं रोका जाता

Up Gold Smuggling : उत्तर प्रदेश में सोना तस्करी सिंडीकेट ने परिवहन विभाग से इतर अपना एक समानांतर 'टोकन सिस्टम' विकसित कर लिया है। तस्करी के कुख्यात रूटों पर पड़ने वाले जिलों में अधिकारियों की मिलीभगत से ये अवैध बसें और ट्रैवलर बकायदा कोड प्राप्त करते हैं। यह कोड कभी दो दिन तो कभी सप्ताहभर का होता है, और इसी कोड के आधार पर इन वाहनों को जांच के लिए रोका या आगे बढ़ाया जाता है। यानी, एक प्रकार से ये कोड अवैध तस्करी के लिए 'परमिट' का काम करते हैं।


एनएच 730 पर पड़ताल: 'कोड' वाले वाहनों को नहीं रोका जाता

इस 'सिस्टम के टोकन' को समझने के लिए हमने तस्करी के चर्चित एनएच 730 रूट पर पड़ताल की। यह मार्ग नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश के सात जिलों से होकर गुजरता है। हमारी पड़ताल 27 जून 2025 को महराजगंज के सीमावर्ती ठूठीबारी कस्बे से शुरू हुई। हमने बरगदवा, नौतनवा, खनुआ, फरेंदा, सिद्धार्थनगर (बढ़नी, ककरहवा, सदर, जोगिया, उस्का बाजार, खेसराहा, हरैया), बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच और पीलीभीत तक लगभग 500 किलोमीटर की दूरी 14 घंटे में तय की।

रात के अंधेरे में हमें हर नाके पर रोका गया, लेकिन हमारे आगे चल रहे पंजाब व दिल्ली नंबर के दो ट्रैवलर को किसी ने हाथ तक नहीं लगाया। जांचकर्मी सिर्फ टॉर्च जलाकर ट्रैवलर का नंबर पढ़ते और मोबाइल पर आए मैसेज से मिलान करते, फिर उन्हें आगे जाने देते। पीलीभीत में ये दोनों ट्रैवलर रुके, जहाँ नेपाल के युवक और युवतियां नीचे उतरे। यह घटना सीधे तौर पर मिलीभगत और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है।


'निकासी' या 'एंट्री' सिस्टम का खुलासा

नेपाल बॉर्डर पर काम कर चुके पूर्व आईबी अधिकारी संतोष सिंह बताते हैं कि तस्करों की सिस्टम से मिलीभगत होती है, जिसके कारण कार्रवाई के नाम पर केवल कोरमपूर्ति होती है। कुछ बसों और ट्रैवलर के पास टूरिस्ट परमिट होते हैं, जबकि कुछ का संचालन यात्री सेवा के नाम पर कंपनी बनाकर किया जाता है।

इसमें 'निकासी व्यवस्था' काम करती है। एक ही व्यक्ति रूट में पड़ने वाले जिलों में इन वाहनों की निकासी का प्रबंधन करता है, जिसे कहीं 'निकासी' तो कहीं 'एंट्री' कहते हैं। इसके लिए मोटी रकम ली जाती है, जिसमें टीआई, आरटीओ और पुलिस का अलग-अलग हिस्सा शामिल होता है। एंट्री फीस जमा होने पर एक खास चिह्न या कोड दिया जाता है, जिसे दिखाकर चालक जांच के दौरान आगे बढ़ जाते हैं। यह एंट्री कभी ट्रांसपोर्टर करते हैं, तो कभी ढाबा भी इसके लिए तय होता है। आपात स्थिति या बड़े अधिकारी की जांच होने पर संदेश पहले ही प्रसारित कर दिया जाता है, जिससे ये वाहन ढाबों, पेट्रोल पंपों या हाईवे के किनारे ही रोक दिए जाते हैं।


सोना तस्करी के आंकड़े और बहराइच का हाल

राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024 में 4,869.6 किलोग्राम सोना जब्त किया गया। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक, नेपाल से हर साल करीब 10 टन सोने की तस्करी भारत में की जाती है, जिसमें चीन से आने वाला 99.9% शुद्ध सोना शामिल होता है।

बहराइच जिले में नेपाल से सटे रुपईडीहा में अवैध वाहनों के खिलाफ 7 अप्रैल को रोडवेज चालकों और परिचालकों ने प्रदर्शन किया था। तब एआरटीओ प्रवर्तन ने भरोसा दिया था कि रोडवेज बस अड्डे के एक किलोमीटर की परिधि में किसी भी डग्गामार या अवैध वाहन का संचालन नहीं होने दिया जाएगा। हालांकि, 27 जून को हमारी पड़ताल में रुपईडीहा में एक किलोमीटर की परिधि में ही सात अवैध स्टैंड संचालित मिले, जहाँ से गोवा तक के ट्रैवलर रवाना हो रहे थे।

एआरटीओ प्रवर्तन-बहराइच, ओपी सिंह ने बताया कि बीते दो दिनों में चार बसों को सीज कर 2.77 लाख जुर्माना लगाया गया है। उन्होंने दावा किया कि अवैध स्टैंड व डग्गामार बसों पर लगातार कार्रवाई की जा रही है और बॉर्डर पर जांच का दायरा बढ़ाया जाएगा। फिलहाल रुपईडीहा में दो रजिस्टर्ड स्टैंड संचालित हो रहे हैं और एक ऑल स्टेट वाहन संचालन के लिए स्टैंड का आवेदन डीएम के यहां लंबित है।

यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश में जारी अवैध तस्करी और इसमें सिस्टम की संभावित मिलीभगत की गंभीर तस्वीर पेश करती है।