Rathayatra Mela : वाराणसी में 'जय जगन्नाथ' की गूंज रथ पर सवार हुए भगवान, भक्तों को दिए दर्शन

वाराणसी में करीब दो सदियों पुरानी भगवान जगन्नाथ रथयात्रा आज पूरे उल्लास के साथ निकाली गई। मंगला आरती के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा नगर भ्रमण के लिए रथों पर सवार हुए। 'जय जगन्नाथ' के जयकारों से काशी गूंज उठी। तीन दिनों तक पूजा-अनुष्ठान और मेले का आयोजन होगा।

Rathayatra Mela : वाराणसी में 'जय जगन्नाथ' की गूंज  रथ पर सवार हुए भगवान, भक्तों को दिए दर्शन

Rathayatra Mela : धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की नगरी काशी आज एक बार फिर अद्भुत श्रद्धा और आस्था के रंग में रंगी नजर आई। करीब दो सदियों से चली आ रही भगवान जगन्नाथ रथयात्रा की परंपरा आज, शुक्रवार को पूरे उल्लास के साथ निभाई गई। सुबह भोर में मंगला आरती के बाद भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा नगर भ्रमण के लिए अपने रथों पर सवार हुए।


शिव की नगरी में 'जय जगन्नाथ' के जयकारे

रथ यात्रा की शुरुआत वाराणसी के ऐतिहासिक रथयात्रा चौराहे से हुई, जहाँ हजारों श्रद्धालु जनसैलाब की तरह उमड़ पड़े। मंगला आरती के बाद जब भक्तों ने रथ की रस्सियां थामीं, तो हर दिशा "जय जगन्नाथ" और "हर हर महादेव" के गगनभेदी नारों से गूंज उठी। भक्तों के उत्साह ने जैसे पूरी नगरी को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।

परंपरा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ 'अनवश्र' अवधि के दौरान बीमार रहते हैं और फिर स्वस्थ होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। इसी मान्यता के अनुसार यह रथयात्रा संपन्न होती है। पुरी धाम से मिली इस परंपरा को वाराणसी में भी पूरी श्रद्धा और विधि-विधान के साथ निभाया जाता है। पुरी ट्रस्ट के सहयोग से आरंभ हुई यह यात्रा आज वाराणसी की पहचान बन चुकी है। वे श्रद्धालु जो ओडिशा के पुरी नहीं जा पाते, उनके लिए काशी की यह यात्रा किसी सौगात से कम नहीं है।


तीन दिनों तक पूजा-अनुष्ठान और विशाल मेला

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा इस दिन प्रतीकात्मक रूप से अपनी मौसी के घर जाते हैं। इस दौरान तीन दिनों तक पूजा-पाठ, अनुष्ठान और उत्सव का आयोजन होता है। रथ खींचना इस पर्व की सबसे पुण्यकारी परंपरा मानी जाती है। भक्तों की मान्यता है कि रथ खींचने से उनके पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।

भगवान को तुलसी अतिप्रिय मानी जाती है, इसलिए इस अवसर पर तुलसी दल अर्पित करना और छप्पन भोग की भावना से प्रसाद चढ़ाना एक विशेष पुण्य का कार्य माना गया है। रथयात्रा के अवसर पर एक विशाल मेले का भी आयोजन होता है, जो तीन दिनों तक चलता है। मेले में न सिर्फ भक्तों की आस्था झलकती है, बल्कि यह सांस्कृतिक विविधताओं और स्थानीय हस्तशिल्प का भी जीवंत प्रदर्शन होता है।

श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इन तीन पावन दिनों में भगवान के दर्शन मात्र से समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का प्रवेश होता है। रथयात्रा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि वाराणसी की आस्था और जीवंत परंपरा की अनूठी झलक है।

क्या आप काशी की ऐसी ही अन्य धार्मिक परंपराओं के बारे में जानना चाहेंगे?