बिहार में मुस्लिम सियासत तेज: वक्फ बनाम पसमांदा, बीजेपी और महागठबंधन के बीच सियासी बिसात

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम वोट बैंक को साधने की होड़ तेज हो गई है। बीजेपी 'पसमांदा मिलन समारोह' के जरिए पसमांदा मुस्लिमों को लुभा रही है, जबकि विपक्षी दल वक्फ संशोधन कानून के विरोध के जरिए मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने में जुटे हैं।

बिहार में मुस्लिम सियासत तेज: वक्फ बनाम पसमांदा, बीजेपी और महागठबंधन के बीच सियासी बिसात

पटना, बिहार: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कवायद तेज हो गई है। राज्य की लगभग 18% मुस्लिम आबादी किसी भी राजनीतिक दल के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है, खासकर 48 ऐसी विधानसभा सीटों पर जहाँ मुस्लिम मतदाता हार-जीत तय करते हैं। इसी को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और महागठबंधन (विपक्षी दल) के बीच शह-मात का खेल जारी है।


वक्फ विरोध के मंच पर विपक्ष का जमावड़ा

वक्फ संशोधन कानून को लेकर मुस्लिम समुदाय में नाराजगी है। विपक्षी दल, विशेषकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस, इस नाराजगी को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका लक्ष्य नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) को मुस्लिम विरोधी साबित करना है, क्योंकि JDU, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का वक्फ बिल पास कराने में अहम रोल रहा था।

मुस्लिम संगठन इमारत-ए-शरिया ने शनिवार को पटना के गांधी मैदान में ‘वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ’ रैली का आयोजन किया, जिसमें RJD और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों के नेता मौजूद रहे। इस मंच से मुस्लिमों ने वक्फ संपत्तियों की रक्षा और संविधान की मूल भावना को बनाए रखने की मांग उठाई। विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार से लेकर नीतीश सरकार तक को निशाने पर लिया और मुस्लिमों को यह बताने की कोशिश की कि नीतीश कुमार और चिराग पासवान के चलते ही मोदी सरकार वक्फ कानून बनाने में सफल रही है, और इन्होंने मुस्लिम समुदाय के साथ "धोखा" किया है।


बीजेपी का 'पसमांदा मुस्लिम' दांव

एक ओर जहाँ विपक्ष वक्फ विरोध के जरिए मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने की कोशिश कर रहा है, वहीं बीजेपी ने एक नया सियासी दांव चला है। सोमवार को बीजेपी के पटना कार्यालय में ‘पसमांदा मिलन समारोह’ का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में पसमांदा मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शिरकत की। यह कार्यक्रम बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद कमरूजमा अंसारी द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी शामिल हुए।

समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. दिलीप जायसवाल ने कहा कि बीजेपी सभी धर्मों, समुदायों और वर्गों को साथ लेकर चलने की बात करती है और ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सिद्धांत पर काम कर रही है। उन्होंने विरोधियों पर निशाना साधते हुए कहा कि मुसलमानों के नाम पर खूब राजनीति हुई, लेकिन कभी भी पसमांदा मुसलमानों को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं की गई। जायसवाल ने पसमांदा का अर्थ 'जो पीछे छूट गए' बताते हुए कहा कि उनके साथ भेदभाव किया गया है और वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने उनका जीना मुश्किल कर रखा है। उन्होंने पसमांदा मुस्लिमों को भरोसा दिलाया कि सत्ता में आने पर उन्हें हिस्सेदारी दी जाएगी।


पसमांदा बनाम अशराफ: मुस्लिम समाज में विभाजन

मुस्लिम समुदाय भी हिंदू समाज की तरह जातियों में बंटा हुआ है। मुस्लिम समाज में लगभग 80% आबादी पसमांदा (OBC मुसलमानों) की है, जबकि लगभग 20% अशराफ (अगड़ी जाति के मुस्लिमों) की है। जहाँ विपक्ष पूरे मुस्लिम समुदाय को साधने की कवायद में है, वहीं बीजेपी की नजर पसमांदा जाति के वोटों पर है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी को लगता है कि मुस्लिमों का धर्म के आधार पर मतदान पैटर्न उनके खिलाफ रहता है। ऐसे में, यदि मुस्लिमों के एक बड़े तबके यानी पसमांदा पर दांव खेला जाए, तो यह सियासी तौर पर फायदेमंद हो सकता है। बीजेपी का मानना है कि पसमांदा तबका सामाजिक हिस्सेदारी से अछूता रहा है और उसे इसका कोई भी लाभ नहीं मिला है। यही कारण है कि बीजेपी लगातार पसमांदा मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रही है। बीजेपी पसमांदा मुसलमानों को यह समझाने का प्रयास कर रही है कि वक्फ का नया कानून उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है।

बिहार में मुस्लिम वोटों को लेकर बीजेपी और महागठबंधन के बीच यह खींचतान आगामी विधानसभा चुनावों में दिलचस्प परिणाम दे सकती है।