केरल में टीका लगने के बावजूद 7 साल की बच्ची की रेबीज से मौत, तीसरा मामला बना चिंता का कारण

केरल के कोल्लम में 7 साल की बच्ची की रेबीज से मौत, जबकि उसे समय पर टीका लगाया गया था। यह राज्य में ऐसा तीसरा मामला है जिसने वैक्सीनेशन की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

केरल में टीका लगने के बावजूद 7 साल की बच्ची की रेबीज से मौत, तीसरा मामला बना चिंता का कारण

तिरुवनंतपुरम: केरल के कोल्लम जिले में एक दर्दनाक और चिंताजनक घटना सामने आई है। यहां 7 साल की बच्ची निया फैजल की रेबीज से मौत हो गई, जबकि उसे समय पर रेबीज रोधी टीका लगाया गया था। यह इस तरह का केरल में तीसरा मामला है, जिसने राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली और टीकाकरण की प्रभावशीलता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।

टीका लगाने के बाद भी क्यों नहीं बच पाई बच्ची?

निया फैजल को 8 अप्रैल को एक आवारा कुत्ते ने कोहनी पर काट लिया था। परिजनों ने तुरंत उसका घाव धोकर उसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां उसे तय समय पर रेबीज रोधी टीके दिए गए। इसके बावजूद, बच्ची को कुछ दिनों बाद तेज बुखार, बेचैनी और तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी के लक्षण दिखाई देने लगे। अंततः उसे तिरुवनंतपुरम के एसएटी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह वेंटिलेटर पर थी और उसकी हालत गंभीर बनी रही।

आवारा कुत्तों की समस्या बन रही है जानलेवा

निया की मां ने मीडिया को बताया कि उनके घर के पास कूड़े का ढेर लगा रहता है, जिससे आवारा कुत्ते इकट्ठा हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि निया पर हमला उनके सामने ही हुआ था। उन्होंने यह भी दावा किया कि एसएटी अस्पताल परिसर में भी कुत्ते खुलेआम घूमते देखे जाते हैं, जिससे अन्य मरीजों की सुरक्षा भी खतरे में है।

डॉक्टरों का क्या कहना है?

एसएटी अस्पताल की अधीक्षक एस बिंदु ने कहा कि टीकों को दोष देना सही नहीं है। उन्होंने बताया कि जब कुत्ते के काटने से गहरे घाव होते हैं, विशेषकर तंत्रिकाओं के पास, तो वायरस टीका प्रभावी होने से पहले ही मस्तिष्क तक पहुंच सकता है। यही निया के मामले में हुआ होगा। एक अन्य सीनियर डॉक्टर के अनुसार, नसों पर चोट लगने से वायरस तेजी से शरीर में फैलता है, जिससे टीके का असर नहीं हो पाता।

पिछले एक महीने में तीसरा मामला

निया की मौत से पहले, मलप्पुरम जिले में 6 साल की बच्ची जिया फरीज और एक अन्य व्यक्ति की भी रेबीज से मौत हो चुकी है, जबकि उन्हें भी समय पर टीके लगाए गए थे। इससे साफ है कि यह कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं है, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का संकेत है।

सरकारी प्रतिक्रिया

केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने बयान जारी कर कहा कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में केवल गुणवत्ता जांच के बाद ही टीके लगाए जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मामले की विस्तृत जांच की जा रही है और यदि किसी स्तर पर लापरवाही पाई गई तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।

क्या सीखने की जरूरत है?

इस घटना ने कुछ बुनियादी सवाल खड़े किए हैं:

  • क्या टीके पर्याप्त प्रभावी हैं?

  • क्या समय पर उपचार के बावजूद रेबीज से बचाव संभव नहीं है?

  • क्या स्वास्थ्यकर्मियों को और अधिक प्रशिक्षण की जरूरत है?

  • क्या आवारा कुत्तों पर नियंत्रण के लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है?

निष्कर्ष

निया की मौत सिर्फ एक बच्ची की मौत नहीं है, यह हमारे सिस्टम की खामियों की एक दर्दनाक याद दिलाती है। समय पर टीका लगने के बावजूद रेबीज से जान चली जाना एक चेतावनी है कि हमें अब सिर्फ वैक्सीनेशन पर भरोसा करके नहीं बैठना चाहिए। आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या, स्वच्छता की लापरवाही और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।