नैनीताल दुष्कर्म कांड: मां ने कैसे खोली चुप्पी, अधिवक्ताओं को कैसे मिला बच्ची का न्याय दिलाने का हौसला?
नैनीताल में बालिका से दुष्कर्म के मामले में अधिवक्ताओं ने कैसे संभाली पीड़ित की लड़ाई, मां ने कैसे तोड़ी चुप्पी, जानिए पूरी कहानी और चुनौतियां।

नैनीताल। उत्तराखंड के नैनीताल में एक मासूम बालिका से दुष्कर्म की दर्दनाक घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया। लेकिन इस अंधकार में एक उम्मीद की किरण बने दो अधिवक्ता — संजय त्रिपाठी और स्वाति परिहार बोरा — जिन्होंने इस कठिन और संवेदनशील मामले में बिना डरे पीड़िता का साथ दिया।
एक महिला ने दिलाई वकीलों से मुलाकात
30 अप्रैल की शाम, जब अधिवक्ता संजय त्रिपाठी और स्वाति परिहार बोरा कोर्ट से लौट रहे थे, तभी उन्हें एक महिला से बच्ची के साथ हुई घटना की सूचना मिली। वे तत्काल कोतवाली मल्लीताल पहुंचे, जहां पीड़ित की मां और नानी ने उनका इंतजार किया। यहीं से शुरू हुआ न्याय की ओर संघर्ष का सफर।
पुलिस की भूमिका और तत्काल कार्रवाई
कोतवाल हेम चंद्र पंत को जब जानकारी दी गई तो उन्होंने महिला पुलिसकर्मी को बच्ची से पूछताछ के लिए भेजा। पुलिस ने तत्काल रिपोर्ट दर्ज की और आरोपी मोहम्मद उस्मान को हिरासत में लिया। मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएम ने फौरन दो काउंसलर नियुक्त किए और बाल कल्याण समिति ने बच्ची को सुरक्षा में लिया।
अधिवक्ता बोले: मेडिकल जांच में हुई चूक
संजय त्रिपाठी ने बताया कि यदि 25 अप्रैल को बच्ची का हल्द्वानी महिला अस्पताल में समुचित इलाज व फोरेंसिक जांच होती, तो केस और भी मजबूत बन सकता था। बावजूद इसके, अब तक की मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि हो चुकी है और मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान में बच्ची ने आरोपी की पहचान की है।
अधिवक्ता स्वाति परिहार बोरा: "डराओ मत, मैं मां हूं"
स्वाति परिहार बोरा ने बताया कि एक महिला होने के नाते वह चाहती हैं कि समाज में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। उन्होंने कहा:
"घटना के बाद कई लोग फोन कर रहे थे। कुछ मदद करना चाहते थे, तो कुछ नीयत साफ नहीं थी। मैं और मेरी टीम सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत संभलकर काम कर रही थी।"
उनके बच्चों ने उन्हें कहा:
"मम्मी, आपने अगर इस बच्ची की मदद नहीं की तो हम समझेंगे कि आप भी ग़लत हैं।"
सामाजिक दबाव: "छोड़ दो ये केस, अटैक कर सकते हैं"
स्वाति बोरा ने बताया कि उन्हें कई बार धमकियां मिलीं, लोग बोले – "अकेली हो, बच्चे हैं, ये लोग तुम्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।" लेकिन उनका जवाब साफ था – "अगर अब डर गई तो आगे किसी और बच्ची के लिए खड़ी नहीं हो पाऊंगी।"
न्याय की राह अब भी लंबी
मामला अब अदालत में है, लेकिन शुरुआती कार्रवाई से संकेत मिलते हैं कि पीड़िता को न्याय मिल सकेगा। हालांकि मेडिकल जांच में हुई शुरुआती चूक और सामाजिक दबाव केस की चुनौती को और बढ़ाते हैं।
निष्कर्ष
इस नृशंस घटना में जहां एक मासूम की जिंदगी प्रभावित हुई, वहीं एक मां की हिम्मत, दो अधिवक्ताओं का संकल्प और प्रशासन की सक्रियता ने न्याय की उम्मीद जगाई है। यह केस केवल एक बच्ची का नहीं, बल्कि पूरे समाज की अंतरात्मा का सवाल है।