अली खान की गिरफ्तारी पर अखिलेश की सन्नाटा, सपा का मुस्लिम कार्ड या बदली रणनीति?
अशोका प्रोफेसर अली खान की गिरफ्तारी पर अखिलेश यादव की रहस्यमय चुप्पी सवाल उठाती है। क्या यह सपा की मुस्लिम वोट बैंक को लेकर बेफिक्री है या फिर पार्टी अपनी दशकों पुरानी छवि बदलने की कोशिश कर रही है?

अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की विवादास्पद गिरफ्तारी, 'ऑपरेशन सिंदूर' पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट के बाद, राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस का विषय बनी हुई है। जहां कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है, वहीं इस पूरे मामले पर समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव की रहस्यमय चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।
कभी सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले अली खान की गिरफ्तारी के बाद सपा की तरफ से कोई मजबूत प्रतिक्रिया न आना राजनीतिक विश्लेषकों और पार्टी के समर्थकों, खासकर मुस्लिम समुदाय के बीच हैरानी पैदा कर रहा है। अली खान की गिरफ्तारी, जिसे कई लोग सरकार की आलोचना को दबाने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं, पर अखिलेश यादव का सन्नाटा उनकी पार्टी की रणनीति को लेकर अटकलों को जन्म दे रहा है।
अली खान ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर कुछ टिप्पणियां की थीं, जिसके बाद हरियाणा पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर कई अन्य विपक्षी नेताओं और बुद्धिजीवियों ने विरोध किया है। लेकिन, सपा, जिसका मुस्लिम समुदाय एक महत्वपूर्ण वोट बैंक माना जाता है, इस मुद्दे पर लगभग खामोश है।
अखिलेश की चुप्पी के संभावित कारण:
- बदली हुई राजनीतिक रणनीति: अखिलेश यादव 2019 के बाद से सपा की छवि को 'मुस्लिम-यादव' पार्टी से broader बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा भी इसी दिशा में एक कदम है। ऐसे में, वे किसी भी ऐसे मुद्दे पर खुलकर बोलने से बच रहे हो सकते हैं जिससे पार्टी की यह नई छवि धूमिल हो।
- मुस्लिम वोट बैंक पर पकड़: सपा यह मान सकती है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों के पास उनके अलावा कोई मजबूत राजनीतिक विकल्प नहीं है, इसलिए इस मुद्दे पर खुलकर न बोलने से भी उन्हें कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा।
- अली खान से दूरी: कुछ राजनीतिक पंडित यह भी मान रहे हैं कि 2022 के बाद से अली खान ने सपा से दूरी बना ली थी, जिसके कारण पार्टी इस मुद्दे पर उतनी मुखर नहीं है।
हालांकि, सपा की यह चुप्पी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक को बेचैन कर सकती है। कांग्रेस, जो लगातार मुस्लिम मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रख रही है, इस चुप्पी का फायदा उठा सकती है। वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम का मानना है कि अखिलेश यादव का हर मुस्लिम मुद्दे पर खामोश रहना अब समुदाय को सोचने पर मजबूर कर रहा है।
अखिलेश यादव की यह 'यूज़ एंड थ्रो' वाली राजनीति कहीं उन्हें अगले विधानसभा चुनावों में महंगी न पड़ जाए। मुस्लिम समुदाय, जो लंबे समय से सपा का समर्थन करता रहा है, अब यह महसूस कर रहा है कि पार्टी उन्हें 'घर की खेती' मान रही है। ऐसे में, अगर कोई मजबूत विकल्प सामने आता है, तो सपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
फिलहाल, अली खान की गिरफ्तारी पर अखिलेश यादव की चुप्पी बरकरार है, लेकिन यह सन्नाटा सपा की भविष्य की राजनीतिक दिशा और मुस्लिम समुदाय के साथ उसके संबंधों पर कई सवाल खड़े कर रहा है।