रानी दुर्गावती के शौर्य को समर्पित संगोष्ठी: "उनका लहू सनातन को समर्पित था"

"रानी दुर्गावती विचार परिषद" द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में वीरांगना रानी दुर्गावती के बलिदान को याद किया गया। वक्ताओं ने उनके शौर्य और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए उनके समर्पण को प्रेरणादायक बताया, और कहा कि उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

रानी दुर्गावती के शौर्य को समर्पित संगोष्ठी: "उनका लहू सनातन को समर्पित था"

"केसरिया भारत" के आयाम "रानी दुर्गावती विचार परिषद" द्वारा आज एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जहाँ वीरांगना महारानी दुर्गावती के बलिदान को याद किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रानी दुर्गावती विचार परिषद के जिलाध्यक्ष सोनू गौड़ ने की।


कृष्णा नन्द पाण्डेय: विचारों की अमरता का संदेश

मुख्य वक्ता और धरोहर संरक्षण सेवा संगठन के प्रमुख संयोजक कृष्णा नन्द पाण्डेय ने अपने संबोधन में कहा कि महारानी दुर्गावती का बलिदान आज शौर्य दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। उन्होंने ज़ोर दिया कि व्यक्ति भले न रहे, पर विचार सदियों तक जीवित रहते हैं। पाण्डेय ने कहा, "सनातन संस्कृति की रक्षा और प्रचार-प्रसार के लिए महारानी दुर्गावती ने अपने लहू का एक-एक कतरा राष्ट्र व संस्कृति को समर्पित कर दिया। उनके समर्पण का विचार आज भी हमारे समाज में ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ दे रहा है, उस आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर उनके विचार को मज़बूत करने का समय है। रानी दुर्गावती के विचार से ही हमारे राष्ट्र व धरोहर की रक्षा हो पाएगी।"


आकाश रघुवंशी: मुगलों से संघर्ष और प्रेरणा

वक्ताओं में शामिल आकाश रघुवंशी ने सोलहवीं शताब्दी के मुग़ल आतंक का ज़िक्र करते हुए कहा कि उस समय महारानी दुर्गावती ने उनकी दासता अस्वीकार कर युद्ध का रास्ता अपनाया, जिसका परिणाम यह हुआ कि पूरे गोंडवाना से मुग़लों को भागना पड़ा। रघुवंशी ने बताया कि रानी दुर्गावती का विचार हमें शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत होने की प्रेरणा देता है।


कार्यक्रम का समापन

संगोष्ठी में प्रमुख रूप से सर्वश्री चन्द्रदेव पटेल, राकेश त्रिपाठी, राजेंद्र गौड़, अशोक पाण्डेय, विवेक चौहान, आशीष गौड़, राजेश गौड़, रमाकान्त पाण्डेय, अजय सेठ, सुनील गौड़ सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आयोजन अवनीश गौड़ ने किया, और इसका कुशल संचालन गौरव मिश्र ने किया। संगोष्ठी का समापन सामूहिक श्री हनुमान चालीसा पाठ से हुआ।

यह आयोजन रानी दुर्गावती के अदम्य साहस, बलिदान और सनातन संस्कृति के प्रति उनके समर्पण को याद करने और समाज को उनसे प्रेरणा लेने का एक प्रयास था।