पिता की आखिरी ख्वाहिश और एक महिला जासूस: सहमत की कहानी जिसने बदल दी 1971 की जंग

1971 भारत-पाक युद्ध की एक अनसुनी कहानी, जब एक भारतीय महिला जासूस 'सहमत' ने पाकिस्तान जाकर गुप्त जानकारी भारत को दी और पीएनएस गाजी को डुबोने में निर्णायक भूमिका निभाई।

May 8, 2025 - 12:21
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पिता की आखिरी ख्वाहिश और एक महिला जासूस: सहमत की कहानी जिसने बदल दी 1971 की जंग

1971 की भारत-पाकिस्तान युद्ध की पटकथा सिर्फ रणभूमि में नहीं, बल्कि पर्दे के पीछे, जासूसी के मोर्चे पर भी लिखी गई थी। यह कहानी है ‘सहमत’ की, एक भारतीय महिला जासूस, जिसकी साहसिकता ने इतिहास की दिशा मोड़ दी। पिता की आखिरी ख्वाहिश को निभाने के लिए सहमत ने पाकिस्तान जाकर दुश्मन के दिल में पैठ बनाई और भारत को ऐसी गुप्त जानकारी दी जिससे INS विक्रांत को बचाया गया और PNS गाजी को समुद्र में दफ्न कर दिया गया।


 पिता थे RAW एजेंट

सहमत के पिता, एक सफल व्यापारी, असल में RAW (Research and Analysis Wing) के लिए काम करते थे। 1965 के युद्ध में उन्होंने पाकिस्तान से गुप्त सूचनाएं भारत पहुंचाईं। जब कैंसर से जूझते पिता को लगने लगा कि उनका अंत निकट है, तो उन्होंने अपनी बेटी को भारत की सेवा में भेजने का फैसला किया।


 पाकिस्तान में शादी, और जासूसी मिशन

20 वर्षीय सहमत, दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा थीं। लेकिन पिता की अंतिम इच्छा पर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और जासूस बनने का निर्णय लिया। उनका विवाह पाकिस्तानी सेना के अफसर इकबाल सैयद से कराया गया। उनका मिशन था पाकिस्तानी सेना की रणनीतियों की जानकारी जुटाना और भारत भेजना।

सहमत को मोर्स कोड और खुफिया संदेश भेजने की ट्रेनिंग दी गई थी। उन्होंने अपने ससुराल और सेना क्वार्टर के अफसरों का भरोसा जीत लिया। उनकी कला — संगीत और नृत्य — एक प्रभावी साधन बनी।


 INS विक्रांत बनाम PNS गाजी

भारत का एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत 1971 के युद्ध में निर्णायक था। पाकिस्तान ने उसे PNS गाजी पनडुब्बी से निशाना बनाने की योजना बनाई। लेकिन सहमत ने गाजी की स्थिति और योजना की जानकारी RAW को दी। भारत ने त्वरित कार्रवाई करते हुए गाजी को विशाखापत्तनम के पास समुद्र में तबाह कर दिया


 शक, हत्या और वापसी

सहमत पर शक करने वाले अब्दुल को उन्होंने ट्रक से कुचल दिया। जब पति इकबाल को उनकी सच्चाई पता चली, तो उनके हैंडलर्स ने इकबाल को भी खत्म कर दिया। वह उस समय गर्भवती थीं। इसके बाद सहमत को भारत लाया गया।


 मलेरकोटला में गुमनामी का जीवन

सहमत ने शेष जीवन पंजाब के मलेरकोटला में बिताया। दिल्ली यूनिवर्सिटी का वह छात्र, जिससे उन्हें प्यार था, अब भी उनका इंतजार कर रहा था। लेकिन सहमत अपने किए का बोझ लेकर किसी रिश्ते में बंधने को तैयार नहीं थीं।

उस युवक ने सहमत के बेटे को पाला, जो बाद में भारतीय सेना में अफसर बना।

2018 में सहमत का निधन हुआ। उनकी असली पहचान आज भी गुप्त रखी गई है ताकि उनके बेटे की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।