पाकिस्तान का परमाणु बम भी 'चाइनीज माल'...वो भी चोरी का, एयर डिफेंस HQ-9 और रडार सिस्टम पहले ही तबाह

ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम तबाह, परमाणु बम भी 'चाइनीज'? चीन से चोरी की तकनीक पर आधारित पाक के परमाणु हथियारों की विश्वसनीयता पर उठे सवाल। जानें पूरी खबर।

पाकिस्तान का परमाणु बम भी 'चाइनीज माल'...वो भी चोरी का, एयर डिफेंस HQ-9 और रडार सिस्टम पहले ही तबाह

नई दिल्ली: 'ऑपरेशन सिंदूर' ने पाकिस्तान की सैन्य क्षमता की पोल खोलकर रख दी है। भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम HQ-9 और रडार सिस्टम बुरी तरह तबाह हो गया है। सोशल मीडिया पर पाकिस्तान की खस्ताहाल सैन्य साजो-सामान का जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है, जिसमें यह तक कहा जा रहा है कि पाकिस्तान का तो हर माल ही 'चाइनीज' है, जिसकी कोई गारंटी नहीं। ऐसे में, सबसे बड़ा सवाल पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की विश्वसनीयता को लेकर उठ रहा है। क्या वाकई पाकिस्तान का परमाणु बम भी 'चोरी का चाइनीज माल' है? आइए जानते हैं इस कहानी की असलियत।

इजरायल ने भी किया था परमाणु ठिकाने पर हमला:

यह बात 1981 की है, जब इजरायल ने इराक के ओसिराक में बन रही इराकी परमाणु सुविधाओं को पल भर में नष्ट कर दिया था। 7 जून, 1981 को इजरायली वायुसेना तीन दुश्मन देशों - सऊदी अरब, जॉर्डन और मिस्र की सीमाओं को चीरते हुए इराक में घुसी और ओसिराक स्थित निर्माणाधीन परमाणु संयंत्र को मलबे के ढेर में बदल दिया था। इस दुस्साहसिक हमले के लिए इजरायल के आठ एफ-16 और दो एफ-15 विमान मात्र 120 मीटर की ऊंचाई पर उड़े थे, ताकि किसी भी रडार की पकड़ में न आ सकें।

चीन से चोरी किए परमाणु बम के डिजाइन पर टिका पाकिस्तान:

पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शुरू से ही चोरी की तकनीक और डिजाइनों पर आधारित रहा है, जिसे उसने यूरोप और चीन से हासिल किया था। परमाणु बम बनाने की क्षमता हासिल करने के लिए पाकिस्तान ने हर तरह के हथकंडे अपनाए। 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक तक पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ रहा था। तत्कालीन पाकिस्तानी नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने परमाणु कार्यक्रम पर काम करने के सख्त निर्देश दिए थे। यह भारत और इजरायल दोनों के लिए ही गहरी चिंता का विषय था।

71 की हार का बदला लेने को आतुर पाकिस्तान:

भारत की खुफिया एजेंसी 'रॉ' को उस वक्त पुख्ता जानकारी मिली थी कि पाकिस्तान इस्लामाबाद के पास कहूटा में गुप्त रूप से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत, 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की धोखेबाजी का बदला लेने की रणनीति पर काम कर रहा था। ऐसे में, पाकिस्तान के परमाणु हथियार विकसित करने की खबर ने भारत की चिंताएं और बढ़ा दीं। 'रॉ' को संदेह था कि पाकिस्तान ने परमाणु संयंत्र तैयार करने का काम शुरू कर दिया है, इसलिए उसने पाकिस्तान में मौजूद अपने गुप्त एजेंटों को सक्रिय कर दिया। अपने एक गोपनीय अभियान में 'रॉ' ने यह पता लगाया कि यह परमाणु अभियान इस्लामाबाद के नजदीक कहूटा में चलाया जा रहा है।

कहूटा के सैलून से मिला परमाणु प्रोग्राम का सुराग:

पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की पुष्टि के लिए 'रॉ' के जासूसों ने एक जोखिम भरा लेकिन बेहद महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने कहूटा के उस स्थानीय सैलून से परमाणु वैज्ञानिकों के बालों के नमूने हासिल किए, जहां कहूटा संयंत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक अपने बाल कटवाने जाते थे। इन बालों के नमूनों को गुप्त रूप से भारत भेजा गया। भारतीय वैज्ञानिकों ने जब इन नमूनों का परीक्षण किया, तो उनमें रेडियोधर्मी गुण पाए गए। इससे यह स्पष्ट हो गया कि ये वैज्ञानिक किसी परमाणु संयंत्र से जुड़े अभियान में काम कर रहे हैं।

मोसाद की बढ़ी टेंशन: 'इस्लामी परमाणु बम' का खतरा:

भारत जानता था कि पाकिस्तान का कोई भी परमाणु हथियार सबसे पहले नई दिल्ली को निशाना बनाएगा। वहीं, इजरायल को इस बात का डर सता रहा था कि पाकिस्तान का 'इस्लामी परमाणु बम' उसके अरब प्रतिद्वंद्वियों के लिए एक बड़ी ताकत बन जाएगा। इसी खतरे को भांपते हुए, भारत की खुफिया एजेंसी 'रॉ' और इजरायल की खूफिया एजेंसी 'मोसाद' के बीच पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर गुप्त सहयोग शुरू हुआ। जानकारों का मानना है कि इजरायल ने भारत के साथ एक संयुक्त योजना साझा की थी, जिसके तहत दोनों देश मिलकर पाकिस्तान की परमाणु सुविधाओं पर हमला करके उन्हें नष्ट कर देंगे।

CIA ने पाकिस्तान को कर दिया ऑपरेशन से आगाह:

लेकिन, कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं। 1984 में अमेरिकी अखबार 'द वाशिंगटन पोस्ट' और 'एबीसी न्यूज' ने एक सनसनीखेज खबर छापी कि भारत और इजरायल मिलकर पाकिस्तान की परमाणु सुविधाओं पर हमला करने की योजना बना रहे हैं। अमेरिकी मीडिया में यह खबर आने के बाद भारत पर सीधे सैन्य कार्रवाई न करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस योजना को मंजूरी तो दे दी थी, लेकिन अमेरिकी खुफिया एजेंसी 'सीआईए' ने कथित तौर पर पाकिस्तान को इस गुप्त ऑपरेशन के बारे में पहले ही सतर्क कर दिया था। इसके बाद, भारत और इजरायल ने मिलकर इस योजना को रद्द करने का फैसला किया।

पाकिस्तान में मिसाइलों के 9 ठिकाने:

कुछ साल पहले अमेरिका की 'बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स' की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा किया गया था कि पूरे पाकिस्तान में मिसाइलों के 8-9 भंडार बनाए गए हैं। इनमें से छोटी दूरी की मिसाइलों (बाबर, गजनवी, शाहीन-1, नस्र) के 4-5 ठिकाने भारतीय सीमा से सटे इलाकों में स्थित हैं, जो सामरिक रूप से बेहद खतरनाक हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि देश के अंदरूनी हिस्सों में तीन से चार सैन्य ठिकाने हैं, जहां मध्यम दूरी की मिसाइलें (शाहीन-2 और गौरी) रखी गई हैं। हालांकि, रिपोर्ट में परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम मिसाइलों के ठिकानों की सटीक संख्या बताना मुश्किल बताया गया था, लेकिन सैटेलाइट तस्वीरों से कम से कम पांच ऐसे मिसाइल ठिकानों का पता चला था, जिनकी क्षमता परमाणु हथियार ले जाने की है। हालांकि, 2016 के बाद इनकी संख्या में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।

चीन से मिला HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम भी हुआ तबाह:

'ऑपरेशन सिंदूर' में भारत ने चीन से मिले पाकिस्तान के सबसे आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम HQ-9 को भी सफलतापूर्वक तबाह कर दिया है। पाकिस्तान ने खुद दावा किया है कि भारत के ड्रोन हमले में उसका यह एयर डिफेंस सिस्टम नष्ट हो गया है। HQ-9 चीन का सबसे प्रमुख एयर डिफेंस सिस्टम है, जिसे अमेरिकी पैट्रियट और रूसी एस-300 सिस्टम की नकल करके बनाया गया था। इसकी मारक क्षमता और विश्वसनीयता पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं।

पाकिस्तान के चीनी LY-80/HQ-16 डिफेंस सिस्टम भी फेल:

पाकिस्तान ने चीन से खरीदे गए HQ-9 और LY-80/HQ-16 जैसे आधुनिक डिफेंस सिस्टम भी भारतीय मिसाइलों के आगे पूरी तरह से फेल साबित हुए हैं। इसके साथ ही, पाकिस्तान ने जो जैमर और अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए थे, वे भी भारतीय इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर के आगे घुटने टेक दिए हैं। ये सभी इलेक्ट्रॉनिक डिफेंस सिस्टम हैं, जिन पर पाकिस्तान ने भारी-भरकम निवेश किया था, लेकिन युद्ध के मैदान में इनकी नाकामी जगजाहिर हो गई है।

चाइनीज JF-17 भी भारतीय जेट के आगे कमजोर:

मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के दो JF-17 और एक F-16 फाइटर जेट को हवाई युद्ध में मार गिराया है। JF-17 उन्हीं चीनी हथियारों में से एक है, जिसे पाकिस्तान अपने सैन्य जखीरे का सबसे खास हिस्सा मानता है। हालांकि, भारत के एडवांस फाइटर प्रोग्राम और पायलटों के कौशल के आगे इसकी तकनीक कहीं भी नहीं ठहरती।

चीन बना पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर:

पिछले पांच सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो चीन ने पाकिस्तान के 81% आयातित हथियारों की आपूर्ति की है। यह जानकारी स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट से सामने आई है। इन हथियारों में हाईटेक फाइटर जेट, मिसाइल, रडार और एयर डिफेंस सिस्टम शामिल हैं, जो भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी सैन्य संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यहां तक कि कुछ पाकिस्तानी हथियार भी चीनी कंपनियों के साथ मिलकर बनाए गए हैं या उनमें चीनी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम की नाकामी और चीनी हथियारों की कमजोर प्रदर्शन ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम ही 'चाइनीज माल' निकला, तो उसके परमाणु बम की तकनीक और सुरक्षा को लेकर भी आशंकाएं गहराना स्वाभाविक है। कहीं पाकिस्तान का परमाणु जखीरा भी चोरी की चीनी तकनीक पर तो आधारित नहीं है? यह सवाल अब अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है।