काशी के महाश्मशान घाटों पर अधूरा निर्माण, 6 महीने का काम 23 महीने बाद भी पूरा नहीं

वाराणसी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर दाह संस्कार सुविधाओं को बेहतर बनाने का काम, जिसे 6 महीने में पूरा होना था, 23 महीने बाद भी अधूरा है। इस देरी से नगर निगम को राजस्व का नुकसान हो रहा है और गरीबों को लकड़ी के दाह संस्कार पर ज़्यादा खर्च करना पड़ रहा है।

काशी के महाश्मशान घाटों पर अधूरा निर्माण, 6 महीने का काम 23 महीने बाद भी पूरा नहीं

Varanasi News : मोक्षदायिनी काशी के दो प्रमुख महाश्मशान घाटों, मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट, पर दाह संस्कार की सुविधाओं को बेहतर बनाने का काम जुलाई 2023 में शुरू हुआ था। यह कार्य 6 महीने में पूरा होना था, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि 23 महीने बीत जाने के बाद भी यह काम अधूरा पड़ा है। इस देरी से न केवल नगर निगम को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है, बल्कि आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों की जेब पर भी इसका सीधा असर पड़ रहा है।


लागत बढ़ी, गरीबों को हो रही परेशानी

हरिश्चंद्र घाट पर पहले से एक बिजली और बाद में गैस आधारित शवदाह संयंत्र स्थापित था, जो ठीक से काम कर रहा था। आर्थिक रूप से कमज़ोर लोग मात्र 500 रुपये की रसीद कटवाकर शव का दाह संस्कार करवा लेते थे, जिससे नगर निगम को प्रतिदिन 5 से 7 शवों के जलने से राजस्व मिलता था।

अब संयंत्र के चालू न होने के कारण लोगों को लकड़ियों पर शवों का दाह संस्कार कराने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिसमें प्रति शव कम से कम 8000 रुपये का खर्च आ रहा है। यह उन परिवारों के लिए एक बड़ी वित्तीय चुनौती बन गया है जो पहले से ही दुख और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।


सीएसआर फंड से चल रहा काम, पर धीमी गति

मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर यह पुनर्विकास कार्य कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) के तहत रूपा फाउंडेशन के फंड से किया जा रहा है। करोड़ों की लागत से हो रहे इन घाटों के विकास के कई महत्वपूर्ण कार्य अभी भी बाकी हैं।

जुलाई 2023 में जब यह काम शुरू हुआ था, तो इन घाटों को भव्य रूप देने की योजना थी। हरिश्चंद्र घाट पर दाह संस्कार के अलावा पंजीकरण कक्ष, सामुदायिक वेटिंग हॉल, एक बड़ा हॉल, सामुदायिक शौचालय, रैंप, स्टोर रूम, फूड कोर्ट, सर्विस एरिया और गंदगी व लकड़ी के लिए अलग व्यवस्था का भी प्रावधान था। हालांकि, गंगा में जलस्तर बढ़ने के कारण मणिकर्णिका घाट के लेआउट में बदलाव किया गया, जिससे भी काम में देरी हुई।

कार्यदायी एजेंसी को मार्च 2025 तक यह काम पूरा करके देना था, लेकिन 23 महीने बाद भी यह अधूरा है। यह सवाल उठाता है कि आखिर इतनी महत्वपूर्ण परियोजना में इतनी देरी क्यों हो रही है और इसकी जवाबदेही कौन तय करेगा।

क्या इस देरी के लिए संबंधित अधिकारियों या कार्यदायी एजेंसी पर कोई कार्रवाई होनी चाहिए?