Himanshi Narwal: दुख की घड़ी में शांति का संदेश, ट्रोलर्स के निशाने पर, मिला एक सशक्त आवाज का साथ
Himanshi Narwal: pahalgam hamle mein mare gaye lieutenant vinay narwal ki patni himanshi narwal social media par troll ho rahi hain, jabki ex-navy chief ki patni lalita ramdas unke support mein utari hain.

Himanshi Narwal: पहलगाम में हुए दर्दनाक आतंकी हमले ने कई घरों को उजाड़ दिया। इनमें से एक थीं लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी, जिनकी अपने पति के शव के पास बैठी बेजान तस्वीर उस भयावह मंजर की पहचान बन गई। लेकिन, इस गहरे दुख के बीच भी हिमांशी ने एक ऐसा बयान दिया, जिसने उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स के निशाने पर ला दिया। उन्होंने अपने दिवंगत पति के जन्मदिन पर लोगों से अपील की कि वे इस त्रासदी के बाद किसी भी मुस्लिम या कश्मीरी को निशाना न बनाएं। उनकी इस शांति की पुकार को कुछ लोगों ने उनकी कमजोरी और आतंकवाद के प्रति सहानुभूति के तौर पर देखा, जिसके बाद उन्हें ऑनलाइन आलोचना का सामना करना पड़ा।
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हालांकि, इस मुश्किल घड़ी में हिमांशी को एक मजबूत सहारा मिला है। भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल एल रामदास की पत्नी ललिता रामदास खुलकर हिमांशी के समर्थन में उतर आई हैं। उन्होंने हिमांशी को दो भावुक पत्र लिखकर न केवल उनके प्रति संवेदना व्यक्त की है, बल्कि उनके शांति के संदेश की भी पुरजोर प्रशंसा की है।
करनाल में अपने पति की याद में आयोजित एक रक्तदान शिविर में हिमांशी ने कहा था, "हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जाएं। हम शांति चाहते हैं, और केवल शांति। बेशक, हम न्याय चाहते हैं।" उनकी इस मार्मिक अपील को ललिता रामदास ने न केवल सुना, बल्कि उसे सराहा भी।
अपने पहले पत्र में, ललिता रामदास ने हिमांशी को संबोधित करते हुए औपचारिक शुरुआत के लिए माफी मांगी, क्योंकि उन्हें हिमांशी का पहला नाम नहीं पता था। उन्होंने खुद को एक फौजी की बेटी और एक फौजी की पत्नी के रूप में परिचित कराया। उन्होंने अपने पिता एडमिरल आरडी कटारी, जो आजादी के बाद नौसेना का नेतृत्व करने वाले पहले भारतीय थे, और अपने पति एडमिरल एल रामदास, जो नौसेना स्टाफ के 13वें चीफ थे, के बारे में बताया। उन्होंने अपने पति से पहली मुलाकात का जिक्र करते हुए अपने निजी पलों को भी साझा किया, जब रामदास 1960 में उनके पिता के फ्लैग लेफ्टिनेंट के रूप में नेवी हाउस आए थे और उन्हें पहली नजर में प्यार हो गया था। उन्होंने 1961 में अपनी शादी के बाद कश्मीर में अपने हनीमून की यादें भी ताजा कीं और हिमांशी को सांत्वना देते हुए उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया और किसी भी मदद के लिए बेझिझक संपर्क करने को कहा।
अपने दूसरे पत्र में, ललिता रामदास ने हिमांशी के उस बयान की विशेष रूप से सराहना की, जिसमें उन्होंने मुसलमानों और कश्मीरियों को बदले की भावना से परेशान न करने की बात कही थी। उन्होंने लिखा, "मुझे आप पर बहुत गर्व है क्योंकि मैं प्रेस को दिए गए आपके बयान की क्लिप बार-बार देखती हूं। 22 तारीख को पहलगाम में इतने सारे निर्दोष लोगों की भयानक हत्या के बाद जब आप मुसलमानों और कश्मीरियों को निशाना बनाने और नफरत के खिलाफ बोलती हैं तो यह आपकी असाधारण ताकत, धैर्य और दृढ़ विश्वास को दिखाता है। अभी इसकी बहुत जरूरत है। आपने 'हम केवल शांति चाहते हैं' और निश्चित रूप से सही कहा कि 'हम न्याय भी चाहते हैं'। आपकी यह भावना, हमारे संविधान और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति सच्ची है।"
एक ऐसे समय में जब दुख और गुस्से का माहौल है, हिमांशी नरवाल ने शांति और सद्भाव का संदेश देकर एक मिसाल कायम की है। उन्हें ट्रोल करने वाले शायद उनकी पीड़ा और उनके गहरे विश्वास को समझने में नाकाम रहे हैं। वहीं, ललिता रामदास का समर्थन न केवल हिमांशी को हौसला देगा, बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बनेगा जो मुश्किल वक्त में भी इंसानियत और भाईचारे का दामन थामे रहते हैं। यह घटना दिखाती है कि कैसे एक दुखियारी पत्नी की शांति की अपील को कुछ लोग गलत समझ सकते हैं, लेकिन एक अनुभवी और समझदार आवाज उस सच्चाई को सामने ला सकती है जिसकी आज समाज को सबसे ज्यादा जरूरत है।