कृपया पद छोड़ दीजिए, जस्टिस वर्मा... अब संसद में होगा उनकी किस्मत का फैसला ?
जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कैश मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट की अदालत में विकल्प सही पाए गए। अब उन्हें हटाने की प्रक्रिया संसद में शुरू हो सकती है। जाने पूरा मामला और आगे क्या होगा।

New Delhi News : मार्च महीने में जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर हुई एक घटना के बाद से उठे विवाद ने अब सुप्रीम कोर्ट और संसद दोनों को एक नाजुक स्थिति में ला खड़ा किया है। जस्टिस वर्मा के घर आग बुझाते समय मिले बेहिसाब नकदी के बैगों ने न्यायिक प्रणाली में हलचल मचा दी है। सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच कमेटी ने आरोपों को सही पाया है, जिसके बाद तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह किया है। अब सभी की निगाहें मध्य जुलाई में शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र पर टिकी हैं, जहाँ उनके भविष्य का फैसला हो सकता है।
क्या है पूरा मामला?
मार्च में जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने के बाद फायर ब्रिगेड कर्मियों को जली हुई चीजों के बीच कुछ ऐसे बैग मिले, जिनमें भारी मात्रा में बेहिसाब नकदी थी। शुरुआती जांच में भी यह बात सामने आई है। जस्टिस वर्मा ने अपनी सफाई में कहा है कि वह आउटहाउस उनके अकेले के कब्जे में नहीं था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया।
सुप्रीम कोर्ट का त्वरित एक्शन: सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने गवाहों के बयान लिए और जस्टिस वर्मा से भी पूछताछ की। जांच के बाद कमेटी ने पाया कि आरोपों में सच्चाई है और नकदी मिली थी। इसके बाद, तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने का अनुरोध किया।
जस्टिस वर्मा का बचाव: जस्टिस वर्मा खुद को निर्दोष बता रहे हैं और इन आरोपों को "बेतुका" करार दिया है। उनका कहना है कि मीडिया उन्हें बदनाम कर रहा है और यह सब एक साजिश का हिस्सा है। उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है।
जज को हटाने की जटिल प्रक्रिया
भारतीय संविधान में किसी जज को पद से हटाना एक बेहद जटिल प्रक्रिया है। अनुच्छेद 124(4), 124(5) और 217 के अनुसार, राष्ट्रपति तभी किसी जज को हटाने का आदेश दे सकते हैं जब संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित हो। इसका अर्थ है कि सदन के कुल सदस्यों में से आधे से अधिक और वोट करने वाले सदस्यों में से दो-तिहाई सदस्य जज को हटाने के पक्ष में हों। यह नियम जजों को अनावश्यक दबाव से बचाने के लिए बनाया गया है, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि गलत आचरण वाले जज जवाबदेह हों।
पहले भी हुई हैं कोशिशें, सफलता कम: न्यायिक इतिहास में जजों को हटाने की कुछ कोशिशें हुई हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर सफल नहीं हो पाईं। 1993 में जस्टिस रामास्वामी के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई, पर लोकसभा में प्रस्ताव पास नहीं हो सका। 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन ने राज्यसभा में हटाने का प्रस्ताव पास होने के बाद, लेकिन प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। जस्टिस गांगुली, जस्टिस नागार्जुन रेड्डी, जस्टिस मिश्रा और जस्टिस दिनाकरण के खिलाफ भी ऐसी ही कोशिशें हुईं, लेकिन वे सफल नहीं हो सकीं। यह दर्शाता है कि किसी जज को हटाना कितना मुश्किल है।
जस्टिस वर्मा मामले में आगे क्या?
जस्टिस वर्मा के मामले में आरोप लगने के बाद जांच हुई है और अब संसद में कार्रवाई होने की संभावना है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इसे "जनता की जीत" बताया है और हड़ताल करने तथा जस्टिस वर्मा के सभी फैसलों की दोबारा जांच करने की मांग की है। वहीं, कुछ लोग जल्दबाजी में फैसला न लेने और कानून के अनुसार ही कार्रवाई करने की वकालत कर रहे हैं। हालांकि, यह भी सच है कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मानसून सत्र में होगा फैसला: आने वाले मानसून सत्र में सरकार को जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए सभी पार्टियों का समर्थन मिलने की उम्मीद है। केंद्रीय मंत्री विपक्षी नेताओं से बातचीत कर रहे हैं ताकि जरूरी समर्थन जुटाया जा सके। यह मामला राजनीतिक भी है, और सरकार को ईमानदारी से काम करना चाहिए। जजों को जवाबदेह बनाना और न्यायपालिका को सरकार के नियंत्रण में रखना दो अलग-अलग बातें हैं।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा का संतुलन
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जवाबदेही के बीच संतुलन बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है। जस्टिस वर्मा के साथ जो हुआ वह दुखद है, लेकिन इस मामले में जनता की राय या राजनीतिक फायदे को न देखकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए।
इस्तीफा या बर्खास्तगी: यदि जस्टिस वर्मा स्वयं इस्तीफा दे देते हैं, तो संसद को लंबी बहस और वोटिंग से बचाया जा सकता है। यदि वे इस्तीफा नहीं देते हैं, तो यह पहली बार होगा कि किसी हाई कोर्ट के जज को संसद बर्खास्त करेगी। यह इतिहास में एक बड़ी घटना होगी, लेकिन इससे न्यायपालिका की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए, न कि इसे सनसनीखेज बनाना चाहिए।
संसद को इस मामले में सावधानी से काम करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे और उसे अपने नियंत्रण में करने की कोई कोशिश न की जाए। अंततः, हमें यह याद रखना चाहिए कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता संविधान की रक्षक है और इसे कमजोर नहीं किया जा सकता। अब यह मामला संसद और हम सबके हाथों में है, और सांसदों को इतिहास को ध्यान में रखते हुए संविधान की रक्षा करते हुए न्यायपालिका को साफ करना चाहिए, लेकिन उसकी गरिमा को भी बनाए रखना चाहिए।