एक हिंदू संस्था क्यों कर रही वक्फ संशोधन कानून का विरोध? सुप्रीम कोर्ट में डाली याचिका
Description: Kerala ki hindu sanstha Shri Narayan Manav Dharmam Trust ne waqf sanshodhan kanoon ka virodh karte hue supreme court mein yachika dali. Sanstha ne ise muslim samuday ke astitva ke liye khatra bataya hai.

वक्फ संशोधन कानून, जो पहले से ही कई मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक नेताओं की याचिकाओं के कारण सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती का सामना कर रहा है, अब एक अप्रत्याशित मोड़ पर आ गया है। केरल के एक हिंदू संगठन, श्री नारायण मानव धर्मम ट्रस्ट ने भी इस कानून को भारतीय मुसलमानों के अस्तित्व के लिए खतरा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसे खारिज करने की गुहार लगाई है। यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आमतौर पर ऐसे कानूनों का विरोध मुस्लिम समुदाय या उनसे जुड़े संगठन ही करते हैं।
श्री नारायण मानव धर्मम ट्रस्ट का तर्क:
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, दार्शनिक और समाज सुधारक श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं पर आधारित इस ट्रस्ट ने अपनी याचिका में कहा है कि श्री नारायण गुरु ने हमेशा यही सिखाया कि हर इंसान और समुदाय का कल्याण एक-दूसरे पर निर्भर करता है। इसलिए, ट्रस्ट इस कानून को लेकर चुप नहीं रह सकता, क्योंकि उनका मानना है कि इसका भारत के मुस्लिम समुदाय और सामाजिक न्याय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
ट्रस्ट का मुख्य तर्क यह है कि यह कानून वक्फ को एक गैर-धार्मिक संस्था के तौर पर देखता है। उन्होंने कहा कि इस कानून ने वक्फ से जुड़े इस्लामी कानूनों को हटाकर, उनकी जगह अपने नियम लागू कर दिए हैं, जिससे ट्रस्ट सहमत नहीं है।
'यह संविधान के साथ धोखा है':
अपनी याचिका में ट्रस्ट ने इस कानून को 'अल्ट्रा वायर्स' यानी संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया है। उनका कहना है कि संसद को किसी भी विशेष समूह पर ऐसे नियम लगाने का कोई अधिकार नहीं है। ट्रस्ट का मानना है कि यह कानून संविधान के साथ धोखा है और सरकार द्वारा बनाया और लागू किया जा रहा है, जो मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन करता है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), 25 (धर्म की स्वतंत्रता), 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) और 29(1) (अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण) के तहत मुस्लिम समुदाय को मिले अधिकारों का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून उन अधिकारों को छीनता है।
'मुस्लिम समुदाय का अस्तित्व खतरे में':
याचिकाकर्ता ने अपनी दलील में यह भी कहा है कि इस कानून से भारत में मुस्लिम समुदाय का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। उनका तर्क है कि मुस्लिम समुदाय सदियों से वक्फ प्रणाली पर निर्भर रहा है, जो इस्लाम के पालन और अस्तित्व के लिए आर्थिक और वित्तीय संसाधनों का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। ट्रस्ट का मानना है कि अगर सरकार वक्फ जैसी धार्मिक ट्रस्ट को अपने नियंत्रण में ले लेती है, तो समुदाय के लिए अपने धार्मिक और सामाजिक कार्यों को करना मुश्किल हो जाएगा, जिससे उनकी आर्थिक और वित्तीय नींव कमजोर हो जाएगी।
श्री नारायण मानव धर्मम ट्रस्ट: एक परिचय:
श्री नारायण मानव धर्मम ट्रस्ट केरल का एक अपेक्षाकृत नया हिंदू संगठन है, जिसकी स्थापना 2023 में हुई है। इसका मुख्य उद्देश्य दार्शनिक और समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के विचारों, शिक्षाओं और मूल्यों का अध्ययन करना और उन्हें लोगों तक पहुंचाना है। वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके यह संस्था अचानक राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गई है।
कौन थे श्री नारायण गुरु?
श्री नारायण गुरु (1856-1928) केरल के एक महान दार्शनिक और समाज सुधारक थे। उन्होंने जातिवाद और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ ശക്ത आवाज उठाई और समानता, मानवता और शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। उनके उपदेशों ने केरल के सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव डाला और उन्हें एक प्रतिष्ठित समाज सुधारक के रूप में स्थापित किया। उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और केंद्र सरकार का रुख:
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने 5 मई को इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। अब जस्टिस भूषण आर गवई (जो अगले CJI होंगे) की बेंच 15 मई को इस मामले की सुनवाई करेगी। CJI संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उन्होंने कहा है कि वह कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं करना चाहते।
केंद्र सरकार ने इस नए वक्फ कानून का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक विस्तृत हलफनामा दायर किया है, जिसमें इसके खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की गई है। सरकार का कहना है कि वक्फ संशोधन कानून के कुछ प्रावधानों के बारे में 'शरारतपूर्ण झूठी कहानी' फैलाई जा रही है।
एक हिंदू संस्था द्वारा वक्फ संशोधन कानून का विरोध और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करना निश्चित रूप से इस कानूनी लड़ाई को एक नया आयाम देता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस नई याचिका और विभिन्न पक्षों की दलीलों पर क्या रुख अपनाता है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि कुछ सामाजिक और धार्मिक मुद्दे किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं रहते, बल्कि व्यापक मानवीय और संवैधानिक मूल्यों से जुड़े होते हैं।