केंद्रीय मंत्री के पीए का करीबी बताकर करोड़ों की ठगी: चार साल से फरार शातिर रितेश सिंह गिरफ्तार
केंद्रीय मंत्री के पीए से संबंध बताकर सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर करोड़ों की ठगी करने वाले शातिर आरोपी रितेश सिंह को साइबर क्राइम टीम ने झारखंड के बोकारो से गिरफ्तार किया। आरोपी चार साल से फरार था।

पकड़ा गया शातिर ठग रितेश सिंह
सरकारी नौकरी का झांसा देकर करोड़ों की ठगी: शातिर जालसाज रितेश सिंह आखिरकार पुलिस के शिकंजे में
कानपुर:
सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। खुद को केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के पीए का करीबी बताने वाला आरोपी रितेश सिंह आखिरकार चार साल की लंबी तलाश के बाद झारखंड के बोकारो से गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपी पर कई लोगों से करोड़ों की ठगी करने के गंभीर आरोप हैं। पुलिस ने इस गिरोह की गतिविधियों को साइबर क्राइम की मदद से उजागर किया।
ठगी का ताना-बाना: मंत्री के नाम का इस्तेमाल
2018 में रितेश सिंह और उसके साथी विनोद कुमार सिंह ने खुद को केंद्रीय मंत्री के पीए के बेहद करीबी बताकर लोगों को सरकारी विभागों में नौकरियां दिलाने का भरोसा दिलाया। उन्होंने दावा किया कि एक फोन कॉल से नियुक्ति संभव है, लेकिन इसके लिए प्रति नौकरी 8 लाख रुपये की डील तय की गई।
चन्द्रमा प्रसाद सिंह, जो देहली सुजानपुर के निवासी हैं, ने बताया कि उन्होंने अपने दो बेटियों और भांजे की नौकरी के लिए 24 लाख रुपये की मांग के जवाब में 20 लाख रुपये खातों में ट्रांसफर कर दिए। बाकी 4 लाख रुपये नियुक्ति पत्र मिलने के समय देने का वादा किया गया।
दिल्ली बुलाकर थमाया फर्जी नियुक्ति पत्र
15 अक्टूबर 2018 को रितेश और विनोद ने चन्द्रमा प्रसाद के बच्चों को दिल्ली बुलाया, जहां एफसीआई ऑफिस में दस्तावेज जमा करवाए गए। कुछ ही दिन में डाक से कथित नियुक्ति पत्र आए, लेकिन जब वे लोग दिए गए पते पर पहुंचे, तो वहां कोई कार्यालय था ही नहीं। जब उन्होंने रुपये वापस मांगे, तो जान से मारने की धमकी दी गई।
सेना की भर्ती में भी झांसा
केडीए कॉलोनी निवासी प्रदीप कुमार को भी ठगी का शिकार बनाया गया। उनके दोस्त प्रवीन कुमार ने रितेश और विनोद से मिलवाया और सेना में भर्ती के नाम पर उनसे 8 लाख रुपये ले लिए गए। उन्हें भी एक फर्जी ज्वॉइनिंग लेटर दिया गया।
साइबर क्राइम की सटीक रणनीति से गिरफ्तारी
2021 में आरोपी के खिलाफ चकेरी थाने में कई रिपोर्टें दर्ज हुईं। पीड़ितों द्वारा दिए गए मोबाइल नंबर और फोटो की जांच की गई, लेकिन मोबाइल नंबर या तो बंद मिले या लोकेशन बदलते रहे। टीम ने कॉल डिटेल्स खंगाले, जिससे लोकेशन झारखंड के जामताड़ा और फिर बोकारो की मिली।
टीम ने एक मुखबिर नेटवर्क तैयार किया, जिससे यह जानकारी मिली कि रितेश बोकारो के एक अपार्टमेंट में छुपा हुआ है। पुलिस ने चोखा-बाटी की दुकान के सामने डेरा डाला और 7 दिनों तक उसका इंतजार किया।
गिरफ्तारी का नाटकीय मोड़
आखिरकार एक सुबह जब रितेश दूध लेने नीचे आया तो पुलिस ने तुरंत उसे दबोच लिया। एडीसीपी क्राइम अंजली विश्वकर्मा ने बताया कि आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। टीम का नेतृत्व इंस्पेक्टर अनिल ने किया।
चार साल की ठगी का पर्दाफाश
रितेश सिंह पर दर्ज तीन मुकदमों में अकेले 50 लाख रुपये की ठगी की शिकायत है, लेकिन पुलिस का मानना है कि असल ठगी की रकम करोड़ों में हो सकती है। वह जाली नियुक्ति पत्र और नकली इंटरव्यू के ज़रिए एक ठोस जाल बुनता था।
क्या कहती है यह घटना?
यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि किस तरह राजनीतिक प्रभाव और पद का फर्जी दावा कर आम नागरिकों को ठगा जाता है। सोशल नेटवर्क, झूठे वादे और सरकारी पहचान का दुरुपयोग कर मासूम लोगों को फंसाना एक गंभीर अपराध है।
पुलिस ने अपील की है कि सरकारी नौकरियों के लिए केवल आधिकारिक पोर्टल और विज्ञापन पर ही भरोसा करें और किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को पैसे देने से पहले पूरी जांच करें।
निष्कर्ष: जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार
रितेश सिंह जैसे शातिर जालसाजों की गिरफ्तारी कानून व्यवस्था की सफलता है, लेकिन ऐसे मामलों को रोकने के लिए समाज में जागरूकता फैलाना अत्यंत आवश्यक है। जब तक लोग बिना जांच-परख के इस तरह के झूठे वादों पर विश्वास करते रहेंगे, तब तक ऐसे गिरोह फलते-फूलते रहेंगे।