वाराणसी में डेंगू, मलेरिया उपचार और प्रबंधन पर कार्यशाला: डॉक्टरों को मिला विशेष प्रशिक्षण
Varanasi mein dengue, chikungunya aur malaria ke upchar-prabandhan par aayojit hui karyashala. CMO ne bataya platelet ki kami maut ka karan nahi. 2030 tak malaria unmoolan ka lakshya.

वाराणसी, 19 जून, 2025: जनपद में डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसे मच्छर जनित रोगों के उपचार और प्रबंधन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से आज होटल क्लार्क्स में एक विशेष प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट लिमिटेड (GCPL) के सहयोग से तकनीकी संस्था पाथ-सीएचआरआई (PATH-CHRI) द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में निजी और राजकीय क्षेत्र के चिकित्सकों और नर्सिंग होम संचालकों ने भाग लिया।
सीएमओ की अहम सलाह: प्लेटलेट की कमी डेंगू से मौत का कारण नहीं
कार्यशाला में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. संदीप चौधरी ने डेंगू और चिकनगुनिया के उपचार व प्रबंधन पर महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्लेटलेट की कमी डेंगू पीड़ितों की मौत का प्राथमिक कारण नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन (प्लेटलेट चढ़ाने) की आवश्यकता तभी होती है जब मरीज का प्लेटलेट काउंट 10,000 से कम हो और उसे सक्रिय रक्तस्राव हो रहा हो। डेंगू के इलाज में प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन प्राथमिक इलाज नहीं है।
सीएमओ ने बताया कि डेंगू बुखार एक मच्छर जनित रोग है जो संक्रमित मादा एडीज एजिप्टी या एडीज एल्बोपिक्टस मच्छर के काटने से फैलता है। इसके सामान्य लक्षणों में तेज बुखार, नाक बहना, त्वचा पर हल्के लाल चकत्ते, खांसी, और आँखों के पीछे व जोड़ों में दर्द शामिल हैं। उन्होंने सलाह दी कि डेंगू से पीड़ित मरीजों को चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए, आराम करना चाहिए और खूब सारे तरल पदार्थ पीने चाहिए। बुखार और जोड़ों के दर्द के लिए पैरासिटामोल लिया जा सकता है, लेकिन एस्पिरिन या आइबुप्रोफेन से बचना चाहिए क्योंकि वे रक्तस्राव का जोखिम बढ़ा सकते हैं।
मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य 2030
कार्यशाला में बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. नीलेश कुमार ने मलेरिया उन्मूलन पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 में उत्तर प्रदेश में मलेरिया से कोई मृत्यु नहीं हुई है। प्रदेश में 2027 तक मलेरिया संचरण को रोकने की दिशा में कार्य किया जाना है, ताकि वर्ष 2030 तक मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। उन्होंने मलेरिया संचरण को रोकने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और उसके प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा की।
प्रोफेसर डॉ. गोपाल नाथ ने बताया कि मलेरिया कुछ प्रजातियों के एनाफिलीज मच्छरों द्वारा फैलता है। जब मादा एनाफिलीज मच्छर मलेरिया रोगी का रक्त चूसती है, तो मलेरिया परजीवी उसके आमाशय में पहुँच जाते हैं, और यही मच्छर फिर स्वस्थ व्यक्ति को मलेरिया से संक्रमित करता है। मनुष्य के शरीर में मलेरिया परजीवी के प्रवेश के 14 से 21 दिनों के भीतर बुखार आता है। उन्होंने मलेरिया रोगियों के लक्षण, पहचान और उपचार के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
राज्य स्तर से पाथ-सीएचआरआई के वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी, मलेरिया डॉ. अमृत शुक्ला ने कहा कि बुखार से ग्रस्त रोगियों की त्वरित मलेरिया की जाँच और सकारात्मक पाए जाने पर तत्काल पूर्ण उपचार आवश्यक है। उन्होंने यह भी बताया कि समस्त जाँच किए गए रोगियों की दैनिक सूचना यूडीएसपी (UDSP) पोर्टल पर नियमित रूप से अपलोड की जाए।
इस कार्यशाला में सीएमएस डॉ. बृजेश कुमार, रीजनल कोऑर्डिनेटर डॉ. ओजस्विनी त्रिवेदी, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एस.एस. कन्नौजिया, अधीक्षक डॉ. आर.बी. यादव, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी, निजी नर्सिंग होम के चिकित्सक, राजकीय क्षेत्र के चिकित्सक, और जिला मलेरिया अधिकारी शरद चंद्र पाण्डेय सहित कई अधिकारी उपस्थित रहे।