महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र पर नया विवाद: शंकराचार्य बोले, "CM फडणवीस का पहला कर्तव्य है कब्र हटाना"
महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग तेज हो गई है। द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य ने CM फडणवीस से इसे हटाने को 'पहला कर्तव्य' बताया, जबकि सरकार इसे संरक्षित स्मारक मान रही है।

महाराष्ट्र में इतिहास और आस्था एक बार फिर आमने-सामने खड़े नजर आ रहे हैं। द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य प्रज्ञानंद सरस्वती महाराज ने मंगलवार को एक सख्त बयान देते हुए महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का पहला कर्तव्य होना चाहिए कि वे मुगल बादशाह औरंगजेब सहित अन्य आक्रांताओं की कब्रों को महाराष्ट्र की धरती से हटाएं।
"अगर सरकार न करे तो सनातन धर्म के अनुयायी उठाएं कदम"
मराठी मीडिया चैनल से बात करते हुए शंकराचार्य ने तीखे शब्दों में कहा,
“अगर सरकार यह कार्य करने में विफल रहती है, तो सनातन धर्म के अनुयायियों को खुद ही आगे आकर इन कब्रों को हटाना होगा।"
उन्होंने यह भी जोड़ा कि औरंगजेब जैसे आक्रांताओं को जो भारत की आत्मा को चोट पहुंचाते रहे, उनके नाम पर कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
औरंगजेब की कब्र को लेकर फिर से भड़का विवाद
यह विवाद तब और बढ़ गया जब कुछ हिंदू संगठनों ने खुल्ताबाद स्थित औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग की। छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थल एक संरक्षित स्मारक है। सुरक्षा की दृष्टि से सरकार ने यहां पुलिस बल तैनात कर दिया है ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति को टाला जा सके।
CM फडणवीस का बयान: "कब्र नहीं हटेगी, महिमामंडन नहीं होगा"
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मुद्दे पर पहले भी टिप्पणी की थी। मार्च 2025 में उन्होंने स्पष्ट किया था:
“चाहे औरंगजेब को पसंद किया जाए या नहीं, उसकी कब्र एक संरक्षित स्मारक है और इसे हटाया नहीं जाएगा। लेकिन उसका महिमामंडन भी नहीं होने दिया जाएगा।”
फडणवीस ने यह भी कहा कि कानून के दायरे से बाहर की संरचनाओं को हटाया जाना चाहिए, लेकिन जहां पुरातत्व विभाग की अनुमति और संरक्षित दर्जा है, वहां सरकार कानून का पालन करेगी।
ऐतिहासिक बनाम धार्मिक भावनाएं
इस मुद्दे ने एक बार फिर भारत में इतिहास और धार्मिक संवेदनाओं के टकराव को उजागर कर दिया है। एक ओर लोग औरंगजेब जैसे आक्रांताओं के नामों और स्मारकों को मिटाने की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुरातात्विक विरासत और कानून का हवाला देते हुए सरकार इन स्थलों को बनाए रखने की बात कर रही है।
निष्कर्ष
यह विवाद केवल एक कब्र तक सीमित नहीं है—यह भारत की सांस्कृतिक स्मृति, धार्मिक अस्मिता और ऐतिहासिक दृष्टिकोण के बीच की गहरी खाई को सामने लाता है। शंकराचार्य की टिप्पणी इस बहस में एक नया मोड़ लेकर आई है, जिससे यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में इस मुद्दे पर और ज्यादा राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है।