शोक सभाओं का दुर्भाग्यपूर्ण 'उत्सव' - समाज में बढ़ता दिखावा और इसका समाधान
Shok sabhaon ka durghatnapurn 'utsav' banta ja raha hai. Dukh bantne ki jagah, ye dikhawe aur samajik pratishtha ka madhyam ban gayi hain. Ram Vilas Tiwari ne uthaya sawal, diye samadhan ke sujhav.

हाल के वर्षों में शोक सभाओं के आयोजन का तरीका तेजी से बदला है, और यह बदलाव कई सामाजिक विचारकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। जो सभाएं कभी दुख बांटने और मृतक के परिवार को सांत्वना देने का एक सरल और निजी साधन थीं, वे अब अक्सर एक भव्य प्रदर्शन का रूप लेती जा रही हैं, जहाँ शोक की भावना कम और सामाजिक प्रतिष्ठा दिखाने की प्रवृत्ति ज्यादा दिखाई देती है। सामाजिक विचारक राम विलास तिवारी ने इस दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति पर अपने विचार व्यक्त किए हैं और समाज हित में कुछ सुझाव भी दिए हैं।
शोक सभाओं का बदलता स्वरूप: दुख कम, दिखावा ज्यादा
आजकल शोक सभाओं के लिए विशाल मंडप लगाए जाते हैं, सफेद पर्दे और कालीन बिछाई जाती है, या किसी बड़े बैंक्वेट हॉल में भव्य सभा का आयोजन किया जाता है। यह माहौल किसी उत्सव जैसा अधिक लगता है। मृतक का बड़ा फोटो स्टेज पर भव्यता से सजाया जाता है। यहां तक कि मृतक के परिवार के सदस्य भी अच्छी तरह सज-संवरकर आते हैं, और उनका आचरण व पहनावा किसी दुख का संकेत नहीं देता।
राम विलास तिवारी के अनुसार, समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने की होड़ में अब शोक सभा भी शामिल हो गई है। सभा में कितने लोग आए, कितनी कारें आईं, कितने नेता और अफसर पहुंचे – इन सब की चर्चा खूब होती है, और ये परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार बन गए हैं। उच्च वर्ग को तो छोड़िए, छोटे और मध्यमवर्गीय परिवार भी इस अवांछित दिखावे की चपेट में आ गए हैं।
आर्थिक बोझ और दिखावे की मजबूरी
शोक सभा का यह भव्य आयोजन अब एक बड़ा आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। कई परिवार इस बोझ को उठाने में कठिनाई महसूस करते हैं, लेकिन देखा-देखी की होड़ में वे न चाहते हुए भी इसे करने के लिए मजबूर होते हैं। इस आयोजन में खाने-पीने की चीजों जैसे चाय, कॉफी, मिनरल वाटर आदि पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे यह पूरी सभा एक भव्य आयोजन का रूप ले लेती है, न कि शोक सभा का।
तिवारी जी कहते हैं कि जब हम ऐसी शोक सभा में जाते हैं, तो लगता ही नहीं कि हम शोक सभा में आए हैं। रीति-रिवाज उठाने की बजाय नए-नए रिवाज बनने लगे हैं।
आवश्यक परिवर्तन और समाधान
राम विलास तिवारी इस तरह के दिखावे से बचने की जरूरत पर बल देते हैं और समाज में कुछ निम्न परिवर्तनों का सुझाव देते हैं:
- सादगी और आडंबर रहित: शोक सभाओं को अत्यंत सादगीपूर्ण और आडंबर रहित ही होना चाहिए।
- अनुकरण से बचें: संपन्न परिवारों को ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे मध्यमवर्गीय परिवार बेवजह के दबाव में आ जाएं, और अनुसरण न कर पाने की स्थिति में अपराधबोध से ग्रसित हो जाएं।
- दान-पुण्य को प्राथमिकता: खूब साधन संपन्न लोगों को ऐसे अवसरों पर सामाजिक संस्थाओं को दान-पुण्य करना चाहिए। ये संस्थाएं आपकी शोहरत की गाथा का बखान खुद-ब-खुद कर लेंगी।
- सेवा संस्थाओं की भूमिका: सेवा संस्थाओं को भी सभी वर्गों के लिए समानता का भाव रखकर उनकी सेवा करनी चाहिए।
यह समाज हित में जारी एक महत्वपूर्ण अपील है, जो हमें अपनी परंपराओं के मूल अर्थ को समझने और अनावश्यक दिखावे से बचने के लिए प्रेरित करती है।