Opration Shakti: ऑपरेशन शक्ति जब भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट कर रच दिया था इतिहास, पाकिस्तान से अमेरिका तक मच गई थी खलबली

11 मई 1998 को भारत ने ऑपरेशन शक्ति के तहत पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया। जानें कैसे डॉ. कलाम और वैज्ञानिकों ने इस मिशन को अंजाम दिया।

Opration Shakti: ऑपरेशन शक्ति जब भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट कर रच दिया था इतिहास, पाकिस्तान से अमेरिका तक मच गई थी खलबली

Opration Shakti: ऑपरेशन शक्ति जब भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट कर रच दिया था इतिहास, पाकिस्तान से अमेरिका तक मच गई थी खलबली

11 मई 1998 को, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पोखरण में परमाणु परीक्षण करके दुनिया को चौंका दिया था। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में यह मिशन गुप्त रूप से पूरा किया गया, जिससे अमेरिका जैसे देश भी हैरान थे।

नई दिल्ली: भारत के लिए आज का दिन बेहद स्पेशल है। आज ही के दिन 11 मई 1998 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया को चौंका दिया था। इस परीक्षण को बहुत ही गुप्त तरीके से किया गया था, जिसके बाद अमेरिका और पाकिस्तान जैसे देश भी हैरान रह गए थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में यह मिशन इस तरह पूरा हुआ कि अमेरिका समेत किसी को भी इसकी खबर नहीं लगी। इससे पहले 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पहला परमाणु परीक्षण किया था, जिसे 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम दिया गया था। इस परीक्षण के साथ भारत दुनिया में अपनी ताकत का लोहा मनवाने में सफल रहा था।


1998 में किए गए परमाणु परीक्षण ने भारत को दुनिया के सामने एक शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित किया। इस मिशन को पूरा करने में वैज्ञानिकों ने बहुत सावधानी बरती थी। उन्होंने CIA (अमेरिकी खुफिया एजेंसी) को भी चकमा दे दिया था। दरअसल, अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA भारत पर नजर रख रही थी। उसने पोकरण पर निगरानी रखने के लिए 4 सैटलाइट लगाए थे। लेकिन, भारत ने CIA और उसके सैटलाइटों को धोखा देकर परमाणु परीक्षण कर दिया। इस मिशन में शामिल वैज्ञानिक बहुत सतर्क थे। वे आपस में कोड भाषा में बात करते थे। वे एक दूसरे को नकली नामों से बुलाते थे। इतने सारे झूठे नाम हो गए थे कि कभी-कभी वैज्ञानिक एक दूसरे का असली नाम ही भूल जाते थे।


डॉ. कलाम को दिया गया था पृथ्वीराज नाम

परीक्षण के दिन सभी को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि खुफिया एजेंसी को लगे कि सेना के जवान ड्यूटी कर रहे हैं। 'मिसाइलमैन' अब्दुल कलाम भी सेना की वर्दी में वहां मौजूद थे। बाद में इसकी तस्वीरें भी सामने आई थीं। तस्वीरों में पूरी टीम सेना की वर्दी में दिखाई दे रही थी। डॉ. कलाम को कर्नल पृथ्वीराज का नकली नाम दिया गया था। वह कभी भी ग्रुप में टेस्ट साइट पर नहीं जाते थे। वह अकेले जाते थे ताकि किसी को उन पर शक न हो।


वायुसेना के विमान से लाया गया जैसलमेर

10 मई की रात को योजना को अंतिम रूप दिया गया। इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन शक्ति' नाम दिया गया। तड़के करीब 3 बजे परमाणु बमों को सेना के 4 ट्रकों के जरिए ले जाया गया। इससे पहले, उन्हें मुंबई से भारतीय वायु सेना के विमान से जैसलमेर बेस पर लाया गया था। ऑपरेशन के दौरान दिल्ली के ऑफिस में कुछ इस तरह से बातें की जाती थीं, जैसे- क्या स्टोर आ चुका है? परमाणु बम के एक दस्ते को 'ताजमहल' कहा जा रहा था। अन्य कोड वर्ड्स थे वाइट हाउस और कुंभकरण।

परीक्षण के लिए क्यों चुना गया पोखरण?

पोखरण को परीक्षण के लिए इसलिए चुना गया, क्योंकि वहां इंसानी आबादी बहुत कम थी। पोखरण, जैसलमेर से 110 किमी दूर जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर स्थित है। वैज्ञानिकों ने इस मिशन को पूरा करने के लिए रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदे। उन्होंने उनमें परमाणु बम रखे। कुओं पर बालू के पहाड़ बनाए गए। उन पर मोटे-मोटे तार निकले हुए थे। धमाके से आसमान में धुएं का गुबार उठा। विस्फोट की जगह पर एक बड़ा गड्ढा बन गया। कुछ दूरी पर खड़ा 20 वैज्ञानिकों का समूह इस पूरे घटनाक्रम को देख रहा था।

किसी समझौते का नहीं किया था उल्लंघन

पोखरण परीक्षण रेंज परीक्षण के साथ ही भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया, जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। इसका मतलब था कि भारत ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन नहीं किया था। परीक्षण के बाद वाजपेयी ने घोषणा की कि 15.45 बजे भारत ने पोकरण रेंज में अंडरग्राउड न्यूक्लियर टेस्ट किया। वह खुद धमाके वाली जगह पर गए थे। कलाम ने टेस्ट के सफल होने की घोषणा की थी।

भारत पर था बहुत ज्यादा दबाव- डॉ. कलाम

कलाम ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उस समय भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बहुत ज्यादा था। लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने फैसला किया कि वह आगे बढ़कर परीक्षण करेंगे। परीक्षण के बाद, भारत को कई देशों से आलोचना का सामना करना पड़ा। लेकिन, भारत ने अपने फैसले को सही ठहराया। भारत ने कहा कि यह परीक्षण उसकी सुरक्षा के लिए जरूरी था। इसके साथ ही भारत एक परमाणु ताकत बन गया। यह परीक्षण भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इसने दुनिया को दिखा दिया कि भारत किसी से कम नहीं है। इस मिशन को सफल बनाने में कई वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने अपना योगदान दिया था।