लखनऊ: 'खोपड़ी किंग' राजा कोलंदर 25 साल बाद डबल मर्डर में दोषी करार, नरभक्षण और सिर सूप पीने का था खौफनाक अतीत

लखनऊ की कोर्ट ने सीरियल किलर, नरभक्षी और खोपड़ी संग्रहकर्ता राजा कोलंदर को 2000 के डबल मर्डर केस में दोषी ठहराया। पहले भी पत्रकार हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा मिली थी।

लखनऊ: 'खोपड़ी किंग' राजा कोलंदर 25 साल बाद डबल मर्डर में दोषी करार, नरभक्षण और सिर सूप पीने का था खौफनाक अतीत

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की एक अदालत ने सोमवार को एक खूंखार अपराधी, सीरियल किलर, नरभक्षी और खोपड़ियों का संग्रहकर्ता राजा कोलंदर को 25 साल पुराने एक सनसनीखेज डबल मर्डर मामले में दोषी ठहराया है। विशेष न्यायाधीश रोहित सिंह शुक्रवार को उसकी सजा का ऐलान करेंगे। इस फैसले के साथ ही दो दशकों से इंसाफ के लिए भटक रहे पीड़ितों के परिवारों को थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।

कुख्यात राजा कोलंदर, जिसका असली नाम राम निरंजन कोल है, और उसके साले बच्छराज कोल को साल 2000 में 22 वर्षीय मनोज कुमार सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव के अपहरण और हत्या के आरोप में दोषी पाया गया है। इससे पहले, राजा कोलंदर और उसके साले को एक पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के मामले में भी दोषी ठहराया गया था, जिसमें राजा के फार्महाउस से 14 मानव खोपड़ियां बरामद हुई थीं। उस मामले में दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

लेकिन राजा कोलंदर की आपराधिक कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसके बाद जो खुलासे हुए, वे और भी भयावह थे। राजा कोलंदर पर नरभक्षी होने और मानव खोपड़ियों का संग्रह करने का आरोप लगा। यहां तक कि यह भी आरोप है कि वह सिर काटकर ले जाता था और इंसान के भेजे का सूप बनाकर पीता था, जिससे पूरे इलाके में दहशत का माहौल था।

बता दें कि राजा कोलंदर और उसके साले पर 25 साल पहले, वर्ष 2000 में डबल मर्डर का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले की शिकायत मनोज कुमार सिंह के पिता शिव हर्ष सिंह ने दर्ज कराई थी। पुलिस ने 21 मार्च 2001 को चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी, लेकिन कानूनी पेचीदगियों के चलते मामले की सुनवाई 12 साल तक अटकी रही। आखिरकार, इस मामले की सुनवाई साल 2013 में शुरू हो सकी।

जानकारी के अनुसार, मनोज कुमार सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव 24 जनवरी, साल 2000 को लखनऊ से रीवा के लिए निकले थे। उन्होंने चारबाग रेलवे स्टेशन के पास से छह यात्रियों को अपनी गाड़ी में बैठाया, जिसमें एक महिला भी शामिल थी। आखिरी बार उनकी लोकेशन रायबरेली के हरचंदपुर में एक चाय की दुकान पर मिली थी, जिसके बाद वे रहस्यमय तरीके से लापता हो गए। तीन दिनों तक जब उनका कोई पता नहीं चला, तो नाका थाने में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। व्यापक तलाशी के बावजूद उनका कोई सुराग नहीं मिला। बाद में, दोनों के क्षत-विक्षत शव प्रयागराज के शंकरगढ़ के जंगलों से बरामद हुए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वे किसी जघन्य अपराध का शिकार हुए थे।

सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि इस मामले में 12 गवाहों की गवाही दर्ज की गई, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण गवाह शिव हर्ष के भाई शिव शंकर रहे। उनकी गवाही से यह स्पष्ट हुआ कि यह अपराध पहले से योजनाबद्ध था, जिसमें अपहरण, लूट और हत्या जैसे गंभीर अपराध शामिल थे। शिव शंकर सिंह ने अपनी गवाही में बताया कि उनकी मनोज और रवि से हरचंदपुर में बात हुई थी और उन्होंने मनोज की एक भूरी कोट की भी आरोपी के घर से पहचान की थी, जो इस बात का पुख्ता सबूत था कि मनोज आखिरी बार आरोपियों के संपर्क में ही था।

गौरतलब है कि राजा कोलंदर प्रयागराज के शंकरगढ़ का रहने वाला है और उसका असली नाम राम निरंजन कोल है। वह नैनी स्थित केंद्रीय आयुध भंडार (सीओडी) छिवकी में एक कर्मचारी था, जिसने अपनी नौकरी की आड़ में एक खौफनाक आपराधिक साम्राज्य खड़ा कर लिया था। अब, 25 साल बाद, अदालत ने उसे उसके जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया है, जिससे पीड़ितों के परिवारों को कुछ हद तक न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। शुक्रवार को अदालत उसकी सजा का ऐलान करेगी, जिस पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई हैं।