'आदेश हमेशा के लिए सुरक्षित क्यों?'... त्वरित न्याय के मौलिक अधिकार पर SC ने हाई कोर्ट की 'प्रथा' पर उठाए गंभीर सवाल!
"आदेश हमेशा के लिए सुरक्षित क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की 'प्रथा' पर उठाए गंभीर सवाल, त्वरित न्याय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन।"

सुप्रीम कोर्ट ने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित पड़े फैसलों पर सख्त रुख अपनाते हुए एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि जजों द्वारा फैसलों को अनिश्चित काल के लिए 'सुरक्षित' रखना, नागरिकों के त्वरित न्याय के मौलिक अधिकार का हनन है। इस कड़ी में, शीर्ष अदालत ने सभी 25 उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों से उन मामलों की विस्तृत जानकारी तलब की है, जिनमें 31 जनवरी, 2025 से पहले फैसले सुरक्षित रखे गए थे, लेकिन अभी तक सुनाए नहीं गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती का तत्काल असर भी देखने को मिला। एक अधिवक्ता के अनुसार, झारखंड उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के निर्देश के बाद उसी दिन दो पुराने मामलों में फैसले सुना दिए, जो 2022 से सुरक्षित थे। इन मामलों में उच्च न्यायालय ने दोषियों को बरी कर दिया। इसके अतिरिक्त, झारखंड उच्च न्यायालय मंगलवार को दो अन्य ऐसे मामलों में भी फैसले सुनाने वाला है, जिनमें काफी समय पहले से निर्णय सुरक्षित रखे गए हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि तेलंगाना उच्च न्यायालय और गुवाहाटी उच्च न्यायालय में ऐसे कम से कम दो न्यायाधीश हैं, जिन्होंने सैकड़ों मामलों में फैसले सुरक्षित रखे हैं, और अभी तक अंतिम आदेश जारी नहीं किए हैं।
75 मामलों की मांगी गई जानकारी:
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय से एक सप्ताह के भीतर निपटाए गए 75 मामलों की विस्तृत जानकारी मांगी है। वहीं, तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश टी. विनोद कुमार के नाम पर 50 से अधिक ऐसे फैसले दर्ज हैं, जिन्हें सुरक्षित रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों के अनुसार, जस्टिस कुमार ने एकल न्यायाधीश के तौर पर 150 से अधिक मामलों में फैसले सुरक्षित रखे हैं, जिनमें 2020 के 13 मामले और 2022 व 2023 के 70 से अधिक मामले शामिल हैं। यह सनसनीखेज जानकारी मुख्य न्यायाधीश (CJI) समेत सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों के बीच साझा की गई एक शिकायत के आधार पर सामने आई है।
सुप्रीम कोर्ट क्यों हुआ सख्त?
सुप्रीम कोर्ट का यह कड़ा रुख अधिवक्ता फौजिया शकील द्वारा दायर एक याचिका पर आया है। उन्होंने न्यायालय को बताया कि चार दोषियों ने 2012 और 2018 के बीच झारखंड उच्च न्यायालय में अपनी सजा के खिलाफ अपीलें दायर की थीं। हैरानी की बात यह है कि उच्च न्यायालय ने इन अपीलों पर फैसले सुरक्षित रखने के तीन साल बाद भी कोई निर्णय नहीं सुनाया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने शुरुआत में झारखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से ऐसे लंबित मामलों की जानकारी मांगी थी। बाद में, पीठ ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे और आगे बढ़ाया और सभी उच्च न्यायालयों से इस संबंध में जानकारी तलब की। जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "हम फैसलों को जल्द सुनाने के लिए कुछ जरूरी नियम बनाना चाहते हैं, इस स्थिति को इस तरह अनिश्चित काल तक नहीं चलने दिया जा सकता।"
क्या है पूरा मामला?
झारखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में उन चार अपीलों का कोई उल्लेख नहीं था, जिनका जिक्र अधिवक्ता शकील ने किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि खंडपीठ ने जनवरी 2022 और दिसंबर 2024 के बीच 56 मामलों में फैसले सुरक्षित रखे थे, लेकिन अभी तक कोई अंतिम आदेश जारी नहीं किया गया है। वहीं, एकल न्यायाधीश पीठ ने जुलाई-सितंबर 2024 के बीच 11 मामलों में फैसले सुरक्षित रखे थे, जिन पर अभी तक निर्णय नहीं आया है। न्यायालय ने एक अखबार की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि झारखंड उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के 23 अप्रैल के आदेश के बाद एक सप्ताह में 75 अपीलों का निपटारा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से उन चार मामलों की जानकारी मांगी थी, जिनमें फैसले सुरक्षित रखे गए थे, लेकिन सुनाए नहीं गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देश:
पीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय से एक सप्ताह के भीतर निपटाए गए 75 मामलों की विस्तृत जानकारी और फैसलों की सॉफ्ट कॉपी भी तलब की है। इसके साथ ही, न्यायालय ने उच्च न्यायालय से यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि अधिवक्ता शकील द्वारा उठाए गए उन चार अपीलों का क्या हुआ, जिनमें फैसले लंबे समय से सुरक्षित हैं। झारखंड से शुरू हुए इस मामले को अब देश के सभी उच्च न्यायालयों तक बढ़ाते हुए, पीठ ने सभी 25 उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को चार सप्ताह के भीतर उन सभी मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, जिनमें खंडपीठ और एकल न्यायाधीश पीठ ने 31 जनवरी, 2025 से पहले फैसले सुरक्षित रखे थे, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं सुनाया है।
11 मई को अगली सुनवाई:
हालांकि, न्यायालय ने झारखंड से जुड़े विशेष मामले की सुनवाई 11 मई, 2025 को करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही, न्यायालय ने झारखंड कानूनी सेवा प्राधिकरण को तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितने ऐसे लोग हैं जो उच्च न्यायालय द्वारा उनकी अपीलों पर अनिश्चित काल के लिए फैसले सुरक्षित रखने के कारण सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं कर पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा फैसलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखना "बहुत परेशान करने वाला" है और यह नागरिकों के त्वरित न्याय पाने के मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन है। न्यायालय ने इस मामले में सख्त रुख अपनाया है और सभी उच्च न्यायालयों से ऐसे मामलों की विस्तृत जानकारी मांगी है, जिससे उम्मीद है कि पीड़ितों को जल्द न्याय मिल सकेगा।
एक्शन में सुप्रीम कोर्ट:
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह इस मामले में कुछ आवश्यक नियम बनाएगा ताकि फैसलों को जल्द से जल्द सुनाया जा सके। न्यायालय ने यह भी सुनिश्चित करने की बात कही है कि किसी भी व्यक्ति को उच्च न्यायालय द्वारा फैसले सुरक्षित रखने के कारण सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के अधिकार से वंचित न किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण कदम से न्याय की आस लगाए बैठे लोगों में उम्मीद की एक नई किरण जगी है। अब यह देखना होगा कि उच्च न्यायालय इस मामले में क्या कार्रवाई करते हैं और आम नागरिकों को कब तक त्वरित न्याय मिल पाता है।