क्या बांके बिहारी को गोस्वामी समाज ले जा सकते हैं? महाराज नहीं रहे तो मंदिर का क्या होगा?

Mathura Banke Bihari mandir corridor vivad. Goswami samaj ki palayan ki dhamki. Kya Thakurji ko apne saath le ja sakte hain?

क्या बांके बिहारी को गोस्वामी समाज ले जा सकते हैं? महाराज नहीं रहे तो मंदिर का क्या होगा?

मथुरा: वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में कॉरिडोर निर्माण को लेकर गोस्वामी समाज का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने के बाद भी गोस्वामी समाज ने ठाकुर बांके बिहारी को अपने साथ लेकर पलायन करने तक की धमकी दे दी है। उनका कहना है कि यदि उनके आराध्य ही नहीं रहेंगे तो मंदिर का क्या महत्व रह जाएगा।

दरअसल, गोस्वामी समाज का दावा है कि ठाकुर बांके बिहारी उनके पूर्वज स्वामी हरिदास महाराज की तपस्या का फल हैं, जिन्होंने अपनी साधना से उन्हें प्रकट किया था। इसी आधार पर वे ठाकुरजी पर अपना विशेष अधिकार मानते हैं और उन्हें कहीं भी ले जाने की बात कह रहे हैं।

ठाकुर बांके बिहारी महाराज कैसे हुए प्रकट?

मान्यता है कि जब स्वामी हरिदास महाराज अपनी भजन साधना में लीन रहते थे, तभी उन्होंने ठाकुर बांके बिहारी महाराज को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर प्रकट किया। ठाकुरजी ने उन्हें दर्शन दिए, और तभी से स्वामी हरिदास महाराज और उनके वंशज, यानी गोस्वामी समाज, उनकी सेवा करते आ रहे हैं।

सेवा का वंशानुगत अधिकार:

स्वामी हरिदास महाराज के तीन भाई थे: सबसे बड़े स्वामी हरिदास जी महाराज, दूसरे जगन्नाथ और तीसरे श्री गोविंद महाराज। इनमें से केवल श्री जगन्नाथ महाराज की तीन संतानें थीं, जिन्हें बांके बिहारी महाराज की सेवा का अधिकार मिला। सेवा को तीन भागों में बांटा गया: शृंगार सेवा, राजभोग सेवा और शयन भोग सेवा। शुरुआत में शृंगार सेवा का अधिकार श्री जगन्नाथ स्वामी के पुत्रों को मिला, लेकिन उनका वंश आगे नहीं बढ़ा, जिसके बाद यह सेवा राजभोग और शयन भोग सेवा में विभाजित कर दी गई। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

गोस्वामी समाज का दावा:

बांके बिहारी मंदिर के सेवायत हिमांशु गोस्वामी का कहना है कि ठाकुर बांके बिहारी महाराज उनके पूर्वज सेवायत हरिदास महाराज की तपस्या का परिणाम हैं, जिसे उन्होंने स्वयं अर्जित किया था। इसलिए, उन पर उनका अधिकार है और वे उन्हें कहीं भी ले जा सकते हैं। जब उनसे पूछा गया कि मंदिर और भगवान तो सार्वजनिक होते हैं, तो उन्होंने तर्क दिया कि बांके बिहारी मंदिर आने वाले सभी भक्त उनके शिष्य हैं, और जिस प्रकार घर के लड्डू गोपाल पर परिवार का अधिकार होता है, उसी प्रकार ठाकुर बांके बिहारी उनके हैं, और वे अपनी इच्छा अनुसार दर्शन करा सकते हैं या नहीं भी करा सकते हैं।

क्या स्थानांतरण संभव है?

इतिहास की बात करें तो ठाकुर बांके बिहारी महाराज पहली बार निधिवन मंदिर में प्रकट हुए थे। बाद में उन्हें वर्तमान मंदिर में स्थापित किया गया। हालांकि, एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें भरतपुर ले जाया गया था, जिसके बाद उन्हें वापस वृंदावन लाया गया। इस इतिहास के आधार पर गोस्वामी समाज का मानना है कि ठाकुरजी का स्थानांतरण संभव है।

हालांकि, कानूनी पहलू यह कहता है कि सार्वजनिक संपत्ति सार्वजनिक ही रहती है, जिस पर किसी एक व्यक्ति या समुदाय का विशेष अधिकार नहीं होता। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण के इस विवाद में आगे क्या मोड़ आता है और गोस्वामी समाज का यह दावा कितना टिक पाता है। क्या वास्तव में वे ठाकुर बांके बिहारी को अपने साथ ले जा सकते हैं, या फिर यह सिर्फ एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है? आने वाला समय ही इस सवाल का जवाब देगा।