योगी-केशव के बीच सियासी बैलेंस बनाने के साथ अमित शाह साध गए यूपी का जातीय समीकरण

Lucknow mein Amit Shah ne CM Yogi aur Dy CM Keshav Maurya ke saath manch share kiya. Shah ne Yogi ki tareef ki aur Keshav ko 'mitra' kaha, jisse unhone siyasi aur jaatiye samikaran sadhne ki koshish ki.

योगी-केशव के बीच सियासी बैलेंस बनाने के साथ अमित शाह साध गए यूपी का जातीय समीकरण

लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 के बाद पहली बार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रविवार को एक मंच पर एक साथ सार्वजनिक रूप से नजर आए। लखनऊ में यूपी पुलिस भर्ती के नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करने आए अमित शाह ने सीएम योगी के कामों की तारीफ की, तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को अपना ‘मित्र’ बताकर दोनों नेताओं के बीच बेहतर सियासी तालमेल का संदेश देने के साथ-साथ सूबे के जातीय समीकरण को भी साधने की कवायद करते नजर आए।


शाह-योगी की केमिस्ट्री और एक-दूसरे की तारीफ

अमित शाह और सीएम योगी एक मंच पर सिर्फ साथ ही नहीं, बल्कि दोनों के बीच बेहतर केमिस्ट्री भी दिखी। शाह-योगी ने एक दूसरे की जमकर तारीफ की। सीएम योगी ने अपने भाषण के दौरान नौ बार गृह मंत्री के नाम का जिक्र किया, तो अमित शाह ने भी केंद्रीय योजनाओं को सही मायने में जमीन पर उतारने का श्रेय योगी आदित्यनाथ को दिया। इसके साथ ही केशव प्रसाद मौर्य को अमित शाह ने अपना मित्र बताकर संबोधन किया, जिसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं।


अमित शाह ने की सीएम योगी की तारीफ और सपा पर निशाना

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लखनऊ के वृंदावन योजना सेक्टर 18 स्थित डिफेंस एक्स्पो ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम में 60,244 नवनियुक्त पुलिस कार्मिकों को नियुक्ति पत्र वितरित किए। अमित शाह ने सीएम योगी आदित्यनाथ की पारदर्शी और समावेशी भर्ती प्रक्रिया के लिए जमकर सराहना की, तो अखिलेश सरकार के दौरान हुई भर्ती में धांधली के बहाने सपा पर निशाना साधा।

शाह ने कहा कि सीएम योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश पुलिस ने न केवल भर्ती प्रक्रिया को निष्पक्ष और योग्यता आधारित बनाया, बल्कि हर जाति, जिले और तहसील के युवाओं को अवसर प्रदान कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने कहा, ‘पिछली सरकारों में भर्ती के लिए पर्ची भेजी जाती थी, जाति विशेष को तरजीह दी जाती थी, लेकिन मेरे सामने बैठे 60244 अभ्यर्थियों को मैं हिम्मत के साथ कहता हूं कि किसी को एक पाई की रिश्वत नहीं देनी पड़ी। इन नियुक्तियों में न खर्ची, न पर्ची, न सिफारिश, न ही जाति के आधार पर कोई भेदभाव हुआ, बल्कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और योग्यता के आधार पर संपन्न हुई।’


जातीय और क्षेत्रीय बैलेंस साधने की कवायद

उत्तर प्रदेश पुलिस की नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम के दौरान मंच पर 15 चयनित अभ्यार्थियों को बुलाकर अमित शाह ने उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा। मंच पर जिस तरह से अलग-अलग जातियों और यूपी के अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को बुलाकर नियुक्ति पत्र दिए गए, उसे जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिहाज से देखा जा रहा है।

जिन 15 सिपाहियों को नियुक्ति पत्र सौंपे गए, उनमें फर्रुखाबाद की शालिनी शाक्य, वाराणसी के मनीष त्रिपाठी, बरेली की शिल्पा सिंह, संत कबीरनगर के सत्यम नायक, लखीमपुर खीरी के प्रेम सागर, उन्नाव के शिवांस पटेल, बलिया के उपेंद्र कुमार यादव, कानपुर देहात के बीनू बाबू, महोबा के योगेंद्र सिंह, लखनऊ की रोशन जहां, कानपुर के आजाद कुशवाहा, गोरखपुर की मिथिलेश भट्ट, बागपत की सचिन सैनी, रायबरेली की सोनी रावत और मऊ की नेहा गोंड शामिल थीं।

मंच पर ठाकुर, ब्राह्मण, सैनी, कुशवाहा, दलित, यादव, शाक्य, गोंड, पासी और मुस्लिम समुदाय से पुलिस में नियुक्त हुए अभ्यर्थी को अमित शाह ने ज्वाइनिंग लेटर सौंपा। सामाजिक न्याय वाले एजेंडे को सेट करते हुए, योगी सरकार ने जिन 15 लोगों को मंच पर बुलाया था, उनमें 11 अभ्यर्थी दलित-ओबीसी समाज से थे। इसके अलावा एक मुस्लिम, दो ठाकुर और एक ब्राह्मण समाज से थे।

योगी सरकार ने नियुक्ति कार्यक्रम में जिस तरह विविध जातीय समूहों को बुलाकर सियासी संदेश दिया, उसी तरह यूपी के हर कोने से आए अभ्यर्थियों को बुलाकर क्षेत्रीय समीकरण साधने की कवायद मानी जा रही है। पूर्वांचल से चार अभ्यार्थी, अवध क्षेत्र के तीन, ऐसे ही कानपुर-बुंदेलखंड से चार, रुहेलखंड से 2 और पश्चिमी यूपी की दो अभ्यर्थी को नियुक्ति पत्र दिया गया। महिला और पुरुष सिपाही को मंच पर बुलाकर सियासी संदेश देने की कवायद की है।


योगी-केशव के बीच संतुलन बनाने का प्लान और ठाकुर-ओबीसी केमिस्ट्री

पुलिस नियुक्ति कार्यक्रम के दौरान मंच पर अमित शाह के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक सहित यूपी सरकार के कई अन्य मंत्री और बीजेपी नेता मौजूद थे। सीएम योगी ने अपने संबोधन में अमित शाह का एक-दो बार नहीं बल्कि 9 बार नाम लिया। इसके बाद अमित शाह की बारी आई तो उन्होंने सबसे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम का जिक्र किया और उसके बाद जब उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का नाम लेते हुए उन्हें अपना मित्र बताया। इस तरह से अमित शाह ने योगी सरकार की तारीफ की, तो दूसरी तरफ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को ‘मित्र’ कहकर सियासी संदेश देने की कोशिश की है।

दरअसल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय से चर्चा रही है कि सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद के बीच सियासी तालमेल नहीं है। लोकसभा चुनाव के बाद कई कार्यक्रमों में दोनों नेताओं के बीच दूरियां भी देखी गई हैं। केशव प्रसाद मौर्य कई बार सवाल भी खड़े करते रहे हैं। ऐसे में अमित शाह का योगी सरकार की तारीफ के साथ-साथ केशव प्रसाद मौर्य को मित्र बताकर सियासी संदेश देने की कोशिश की है कि दोनों नेताओं की अहमियत बराबर है।

यूपी में जब पहली बार 2017 में बीजेपी की सरकार बनी थी, तो उस वक्त केशव प्रसाद मौर्य का नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में भी प्रमुखता से चल रहा था। मौर्य न केवल उपमुख्यमंत्री हैं बल्कि ओबीसी वर्ग का एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं और पार्टी के सामाजिक समीकरणों में उनकी भूमिका अहम रही है। वहीं, सीएम योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के बड़े चेहरे बनकर उभरे हैं और सवर्ण समुदाय से आते हैं। ऐसे में अमित शाह ने केशव प्रसाद मौर्य को अपना मित्र बताया, तो योगी सरकार के कामों की तारीफ करके जातीय समीकरण साधने का दांव चला है।

अमित शाह ने मंच से सीएम योगी के कामों की तारीफ करते हुए कहा कि 2014 में मोदी सरकार आने के बाद कई योजनाएं बनीं, लेकिन यूपी में इन्हें धरातल पर 2017 के बाद योगी सरकार ने उतारा। यूपी केंद्र की हर स्कीम में आज नंबर वन है। शाह ने जोर देकर कहा कि आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था लगातार बिगड़ती जा रही थी, लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी पुलिस ने नई बुलंदियों को छूना शुरू किया। शाह ने जोर देकर कहा कि यूपी अब दंगों का गढ़ नहीं रहा, बल्कि दंगामुक्त हो चुका है और गुंडों का फरमान अब नहीं चलता।

बीजेपी के लिए यूपी की सियासत में ओबीसी और सवर्ण दोनों ही वोटों की अहमियत है। केशव-सीएम योगी के बीच संतुलन बनाकर शाह ने अगड़े-पिछड़े के बीच संतुलन की रणनीति को साधने की कवायद की है, जो यूपी की जटिल जातीय राजनीति में अहम है। माना जाता है कि यूपी पंचायत चुनाव से पहले यह आयोजन बीजेपी के लिए युवाओं को रोजगार और पारदर्शिता के साथ सियासी समीकरण को संदेश देने का मंच साबित हुआ।