बिहार में आकाश आनंद की पहली राजनीतिक परीक्षा: क्या बसपा को मिलेगी 'सियासी संजीवनी'?

BSP mein wapsi ke baad Akash Anand 26 June ko Bihar mein apni pehli jansabha karenge. Kya Maya's nephew party ko siyasi sanjeevani de payenge? Bihar mein BSP ki chunavi raah mushkil dikh rahi hai.

बिहार में आकाश आनंद की पहली राजनीतिक परीक्षा: क्या बसपा को मिलेगी 'सियासी संजीवनी'?

पटना, बिहार: बहुजन समाज पार्टी (BSP) में अपनी वापसी के बाद, आकाश आनंद अब बिहार के राजनीतिक रण में अपनी पहली बड़ी परीक्षा का सामना करने जा रहे हैं। 26 जून को छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती के अवसर पर, आकाश आनंद बिहार की राजधानी पटना में अपनी पहली जनसभा को संबोधित करेंगे, जिसके बाद वह बिहार संगठन की बैठकें भी करेंगे। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब बिहार में बसपा का सियासी आधार लगातार कमजोर हुआ है और चुनावी लड़ाई मुख्य रूप से दो बड़े गठबंधनों के बीच सिमटी हुई दिख रही है।


मिशन बिहार का आगाज़: दलित और ओबीसी वोटरों पर निगाह

बसपा प्रमुख मायावती ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव (अक्टूबर-नवंबर में संभावित) अकेले लड़ने का फैसला किया है। पार्टी ने पहले ही राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर रामजी गौतम और केंद्रीय प्रदेश प्रभारी अनिल कुमार को बिहार चुनाव की कमान सौंप दी है, जो सभी 243 सीटों पर उम्मीदवारों की तलाश में जुटे हैं। अब बसपा के पक्ष में सियासी माहौल बनाने और दलित-ओबीसी वोटों को साधने के लिए आकाश आनंद को मैदान में उतारा जा रहा है।

पटना में छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती पर होने वाली आकाश आनंद की यह जनसभा, जिसे इनडोर ऑडिटोरियम में आयोजित करने की योजना है, बसपा के चुनावी अभियान का औपचारिक आगाज़ मानी जा रही है। इसके बाद पूरे प्रदेश में आकाश आनंद की रैलियां देखने को मिल सकती हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि उन्हें बिहार चुनाव की बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।


बसपा की बिहार में मुश्किल चुनावी राह

आकाश आनंद भले ही बिहार में चुनावी अभियान का आगाज़ कर रहे हों, लेकिन बसपा की सियासी राह यहाँ आसान नहीं दिख रही है। 2009 के बाद बसपा का खाता बिहार में 2020 के चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतकर ही खुल पाया था, लेकिन चुनाव के बाद वह विधायक भी जेडीयू में शामिल हो गए। बिहार में बसपा का इतिहास रहा है कि उसके जीते हुए विधायक बाद में दूसरी पार्टियों में चले जाते हैं।

बिहार में बसपा का सियासी आधार लगातार कमजोर हुआ है। राज्य की चुनावी लड़ाई राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) जैसे दो प्रमुख गठबंधनों के बीच सिमटी हुई है। ऐसे में बसपा का अकेले चुनाव में उतरकर जीत हासिल करना 'लोहे के चने चबाने' जैसा है।


बसपा का बिहार में सियासी सफर और चुनौतियां

  • शुरुआत: बसपा ने बिहार में 1989 से चुनावी आगाज़ किया, लेकिन शुरुआती सफलता नहीं मिली।
  • सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन: साल 2000 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 249 सीटों पर चुनाव लड़कर 5 सीटों पर जीत हासिल की थी।
  • लगातार गिरावट: अक्टूबर 2005 में 4 सीटें, 2010 और 2015 में कोई सीट नहीं।
  • 2020 चुनाव: असदुद्दीन ओवैसी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से गठबंधन के बावजूद सिर्फ एक सीट (चैनपुर) जीत पाई, जिसका विधायक भी बाद में पार्टी छोड़कर चला गया।

उत्तर प्रदेश के उलट, बिहार में बसपा कभी भी दलित राजनीति को मज़बूती से स्थापित नहीं कर सकी। कांशीराम ने जितना ध्यान यूपी पर दिया, उतना बिहार पर नहीं दे पाए। माना जाता है कि बसपा सिर्फ बिहार में चुनाव लड़ने का काम करती है, यहाँ उसका न तो कोई ज़मीनी संगठन है और न ही कोई सुस्पष्ट राजनीतिक योजना।


दलित सियासत और आकाश आनंद की अग्निपरीक्षा

बिहार में दलित समुदाय की आबादी करीब 18 फीसदी है। 2005 में नीतीश कुमार की सरकार ने 22 में से 21 दलित जातियों को महादलित घोषित कर दिया था, और 2018 में पासवान भी इसमें शामिल हो गए। बिहार में दलितों में पासवान, मुसहर और रविदास समाज की संख्या अधिक है। बसपा का आधार मुख्य रूप से रविदास समाज तक सीमित रहा है, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोटबैंक माना जाता है।

बीजेपी बिहार में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी को अपने साथ रखकर दुसाध और मुसहर समुदाय को साध रही है, जबकि नीतीश कुमार अन्य दलित समाजों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। आरजेडी और कांग्रेस भी दलित वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिश में हैं। चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी दलित वोटों पर नज़र गड़ाए हुए हैं।

ऐसे में, आकाश आनंद के सामने बिहार के दलित समुदाय को साधने और बसपा की खोई हुई ज़मीन वापस दिलाने की बड़ी चुनौती है। आकाश आनंद को अभी तक कोई बड़ी राजनीतिक सफलता नहीं मिली है, इसलिए बिहार का चुनाव उनके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा। अब देखना यह है कि आकाश बसपा की चुनावी नैया को बिहार में पार लगा पाते हैं या नहीं।