छत्तीसगढ़ में 'काल' बनकर बरसे सुरक्षाबल: मारा गया माओवादियों का 'सुप्रीम कमांडर' बसवराजू, 30 साल में पहली बार शीर्ष नेता ढेर

छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने एक बड़े अभियान में शीर्ष माओवादी नेता बसवराजू को मार गिराया। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने इस सफलता की सराहना की।

छत्तीसगढ़ में 'काल' बनकर बरसे सुरक्षाबल: मारा गया माओवादियों का 'सुप्रीम कमांडर' बसवराजू, 30 साल में पहली बार शीर्ष नेता ढेर

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर के अबूझमाड़ के जंगलों में बुधवार को सुरक्षाबलों ने एक ऐसा पराक्रम दिखाया, जिसने तीन दशकों से जारी माओवादी हिंसा के खिलाफ लड़ाई में एक नया इतिहास रच दिया। 50 घंटे से अधिक चले एक बड़े और सटीक सुरक्षा अभियान में, जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के जांबाज जवानों ने सीपीआई (माओवादी) के 70 वर्षीय 'सुप्रीम कमांडर' नंबाला केशव राव, जिसे कुख्यात नाम बसवराजू से जाना जाता था, समेत 27 अन्य नक्सलियों को मार गिराया। यह मुठभेड़ हाल के वर्षों में भारत में वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण सफलताओं में से एक है। यह ऑपरेशन सीआरपीएफ के महानिदेशक जीपी सिंह के नेतृत्व में चलाए गए अब तक के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियानों की श्रृंखला के समापन के कुछ दिनों बाद हुआ है।

जबकि पहले के अभियानों में शीर्ष माओवादी नेतृत्व को निशाना बनाने में सफलता नहीं मिल पाई थी, इस बार डीआरजी के साहसिक अभियान ने माओवादी कमांड संरचना के शीर्ष पर सीधा प्रहार किया है। बसवराजू का खात्मा न केवल रणनीतिक रूप से, बल्कि प्रतीकात्मक रूप से भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक सफलता की सराहना की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसे नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में एक "ऐतिहासिक उपलब्धि" बताते हुए कहा कि यह तीन दशकों में पहली बार है जब भारतीय सुरक्षा बलों ने महासचिव स्तर के किसी शीर्ष माओवादी नेता को बेअसर किया है।

आम कैडर से 'सुप्रीम कमांडर' तक का खूनी सफर:

बसवराजू सिर्फ एक वरिष्ठ माओवादी नहीं था, बल्कि वह सीपीआई (माओवादी) का 'सुप्रीम कमांडर' और इस हिंसक आंदोलन का मुख्य रणनीतिकार था। 2018 में माओवादी संगठन के संस्थापक गणपति के इस्तीफे के बाद, बसवराजू ने संगठन की बागडोर संभाली थी। उसने समूह के सबसे हिंसक अभियानों की देखरेख की और इसकी दीर्घकालिक विद्रोही रणनीति का निर्देशन किया।

आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले का मूल निवासी बसवराजू, वारंगल में अपने छात्र जीवन के दौरान कट्टरपंथी वामपंथी आंदोलन में शामिल हो गया था। समय के साथ, वह सैन्य रणनीतिकार से लेकर सीपीआई (माओवादी) के महासचिव जैसे शीर्ष पदों तक पहुंच गया। वह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश के पुलिस बलों की मोस्ट वांटेड सूची में शीर्ष पर था।

माओवादी हिंसा का 'मास्टरमाइंड':

बसवराजू भारत के हाल के इतिहास में हुए कुछ सबसे घातक माओवादी हमलों के पीछे का मुख्य साजिशकर्ता था। उसने 2003 के अलीपीरी बम हमले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसमें तत्कालीन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की हत्या का प्रयास किया गया था। इसके अलावा, 2010 में दंतेवाड़ा में हुए उस भयावह घात लगाकर हमले की योजना भी उसी ने बनाई थी, जिसमें 76 सीआरपीएफ कर्मी शहीद हो गए थे - यह भारत के आतंकवाद विरोधी इतिहास के सबसे घातक हमलों में से एक था।

एमटेक की डिग्रीधारी एक इंजीनियर होने के नाते, बसवराजू ने अपनी तकनीकी विशेषज्ञता को सैन्य योजना के साथ बखूबी मिलाया था। सीआरपीएफ के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, वह गुरिल्ला युद्ध और इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) यानी देसी बमों को लगाने में अत्यधिक कुशल था। वह माओवादी कैडर के प्रशिक्षण और उनकी परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने में केंद्रीय भूमिका निभाता था। उसके रणनीतिक कौशल और युद्ध के मैदान के अनुभव ने उसे सीपीआई (माओवादी) के लिए अपरिहार्य बना दिया था, जो अब एक गंभीर नेतृत्व शून्य का सामना कर रहा है।

क्यों खास है यह मुठभेड़?

बसवराजू की मौत माओवादी विद्रोह के लिए एक बड़ा रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक झटका है। उसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का भारी इनाम घोषित था, जिससे वह न केवल सबसे वांछित माओवादी था, बल्कि समूह का वैचारिक और परिचालन केंद्र भी था। उसका खात्मा माओवादी रैंकों के भीतर भ्रम और डर पैदा कर सकता है, जिससे नेतृत्व संकट गहरा सकता है और नए रंगरूटों की भर्ती भी हतोत्साहित हो सकती है।

सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि यह सफल ऑपरेशन शेष माओवादी नेताओं को भी एक स्पष्ट संदेश देता है कि भारतीय सुरक्षा बलों के पास विद्रोही पदानुक्रम के उच्चतम स्तरों को भी खत्म करने की क्षमता, खुफिया जानकारी और पहुंच है। इससे माओवादी कैडर के बीच मनोबल टूटने और उनकी चल रही हिंसक योजनाओं में बाधा आने की उम्मीद है। यह मुठभेड़ न केवल एक खूंखार अपराधी का अंत है, बल्कि छत्तीसगढ़ और देश के अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।