Pahalgam Attack : जंग छिड़ी तो कितने दिन टिकेगा पाकिस्तान? भारत की आर्थिक ताकत का अंदाजा लगाइए!

"जंग हुई तो कितने दिन टिकेगा पाकिस्तान? पहलगाम हमले के बाद भारत की आर्थिक ताकत का अंदाजा लगाइए, विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ा अंतर।"

Pahalgam Attack : जंग छिड़ी तो कितने दिन टिकेगा पाकिस्तान? भारत की आर्थिक ताकत का अंदाजा लगाइए!

                                                                   भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पाकिस्तान से करीब 46 गुना अधिक है।

नई दिल्ली: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को अब भारत की संभावित सैन्य कार्रवाई का डर सता रहा है। इस तनावपूर्ण माहौल में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच जंग छिड़ जाती है, तो आर्थिक मोर्चे पर कौन कितना टिक पाएगा? आइए, इस पर एक नजर डालते हैं।

मूडीज रेटिंग्स की मानें तो अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ता है, तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय मदद मिलने में मुश्किल हो सकती है। इसका सीधा असर पाकिस्तान के पहले से ही कमजोर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ेगा। फिलहाल, पाकिस्तान के पास लगभग 15 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो मुश्किल से कुछ दिनों के आयात के लिए ही पर्याप्त है। वहीं, दूसरी तरफ भारत की आर्थिक ताकत कहीं ज्यादा मजबूत है। भारत के पास 688 अरब डॉलर से भी अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो करीब 11 महीने के आयात के लिए काफी है। इन आंकड़ों को देखें तो यह साफ है कि जंग की शुरुआत में ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था हांफने लगेगी।

आर्थिक विकास के अलग-अलग रास्ते:

1947 में आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान ने अपने-अपने आर्थिक विकास के रास्ते अलग चुने। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है दोनों देशों का विदेशी मुद्रा भंडार, जो किसी भी देश की आर्थिक सेहत का एक महत्वपूर्ण पैमाना होता है। यह बताता है कि कोई देश बाहरी आर्थिक झटकों से निपटने और अपने कर्जों को चुकाने में कितना सक्षम है। आज भारत का 688 अरब डॉलर से ज्यादा का भंडार पाकिस्तान के महज 15 अरब डॉलर के भंडार से जमीन-आसमान का अंतर दिखाता है। यह अंतर दोनों देशों की नीतियों, आर्थिक ढांचे और काम करने के तरीकों में साफ नजर आता है।

भारत की आर्थिक तरक्की की कहानी:

आजादी के वक्त भारत और पाकिस्तान दोनों के पास विदेशी मुद्रा भंडार न के बराबर था, क्योंकि दोनों ही देश लंबे समय तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहे थे। 1991 तक भारत का भंडार स्थिर रहा, लेकिन उसी साल भारत एक बड़े आर्थिक संकट से गुजरा, जब उसके पास सिर्फ तीन हफ्ते के आयात के लिए ही पैसे बचे थे। हालांकि, यही संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

भारत ने बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधार किए। व्यापार की बाधाएं कम की गईं, रुपये की कीमत को बाजार के अनुसार बदला गया और विदेशी निवेश के लिए अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोले गए। इन सुधारों से देश में विकास को गति मिली, निर्यात बढ़ा और विदेशों से पूंजी का प्रवाह शुरू हुआ। 2000 के दशक में आईटी सेक्टर में आई क्रांति और सर्विस सेक्टर के बढ़ते निर्यात ने भी विदेशी मुद्रा भंडार को तेजी से बढ़ाया। विदेशों में रहने वाले भारतीयों द्वारा भेजी गई रकम ने भी इसमें अहम योगदान दिया।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी समझदारी से काम करते हुए देश के भंडार को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2008 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 300 अरब डॉलर के पार पहुंच गया। 2008 की वैश्विक मंदी और कोरोना महामारी जैसे बड़े झटकों के बावजूद भारत ने अपनी आर्थिक स्थिरता को बनाए रखा। 2021 में भारत का भंडार 640 अरब डॉलर था, जो अब बढ़कर 688 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। आज सिर्फ चीन, जापान और स्विट्जरलैंड ही विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में भारत से आगे हैं।

पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली:

पाकिस्तान की आर्थिक कहानी में कई उतार-चढ़ाव आए। 1960 के दशक में कुछ औद्योगिक सफलता मिलने के बावजूद, बार-बार की राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य शासन और गलत आर्थिक नीतियों ने लंबे समय तक विकास को बाधित किया। भारत के विपरीत, पाकिस्तान बाहरी मदद पर बहुत ज्यादा निर्भर रहा। उसे अमेरिका, चीन और आईएमएफ जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से लगातार वित्तीय सहायता मिलती रही।

इस मदद से कुछ समय के लिए राहत जरूर मिली, लेकिन इसने पाकिस्तान को कर्ज के एक ऐसे जाल में फंसा दिया, जहां निर्यात और निवेश में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो रही थी। पाकिस्तान का निर्यात कुछ ही उत्पादों तक सीमित रहा, जैसे कि सस्ते कपड़े, जबकि ऊर्जा जैसी जरूरी चीजों का आयात लगातार बढ़ता रहा, जिससे देश का व्यापार घाटा और विदेशी कर्ज बढ़ता गया और विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता चला गया।

1980 के दशक से पाकिस्तान बार-बार आईएमएफ से बेलआउट पैकेज लेता रहा है। उसने 20 से ज्यादा बार ऐसे पैकेज लिए हैं, लेकिन हर बार जरूरी आर्थिक सुधारों को या तो टाल दिया गया या कमजोर कर दिया गया। 2023 तक पाकिस्तान एक गंभीर भुगतान संकट के कगार पर पहुंच गया था, जब उसका विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 4 अरब डॉलर से भी कम हो गया था, जिससे सिर्फ कुछ हफ्तों तक ही आयात किया जा सकता था।

निष्कर्ष:

पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, दोनों देशों की आर्थिक स्थिति में भारी अंतर साफ दिखाई देता है। भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था और विशाल विदेशी मुद्रा भंडार उसे किसी भी संभावित संघर्ष में पाकिस्तान से कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में रखता है। आंकड़ों की मानें तो जंग छिड़ने की स्थिति में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कुछ ही दिनों में दम तोड़ सकती है, जबकि भारत अपनी आर्थिक ताकत के दम पर काफी लंबे समय तक टिके रहने की क्षमता रखता है।