चीन-पाक के ड्रोन से निपटने के लिए भारतीय सेना का 'त्रिनेत्र', स्वदेशी काउंटर ड्रोन सिस्टम की तलाश

भारतीय सेना अपनी वायु रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए दो नए काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम (C-UAS) की तलाश में है, जो विशेष रूप से GPS और BeiDou जैसे सैटेलाइट नेविगेशन से संचालित होने वाले ड्रोन को निशाना बना सकें। यह कदम चीन और पाकिस्तान से बढ़ते ड्रोन खतरों के मद्देनजर उठाया जा रहा है।

चीन-पाक के ड्रोन से निपटने के लिए भारतीय सेना का 'त्रिनेत्र', स्वदेशी काउंटर ड्रोन सिस्टम की तलाश

भारतीय सेना अपनी वायु रक्षा क्षमताओं को और अधिक धारदार बनाने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है। सेना अब दो अत्याधुनिक काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम (C-UAS) हासिल करने की प्रक्रिया में है, जिनका मुख्य ध्यान ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) और चीन के बेईडौ सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम के माध्यम से संचालित होने वाले शत्रुतापूर्ण ड्रोन का मुकाबला करना है। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब चीन तेजी से ड्रोन तकनीक में प्रगति कर रहा है और पाकिस्तान भी GPS के साथ-साथ बेईडौ का उपयोग कर रहा है।

भारतीय सेना को नियंत्रण रेखा (LOC), अंतर्राष्ट्रीय सीमा (IB) और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन और पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे इन ड्रोन का पता लगाने, उनकी पहचान करने, उन्हें ट्रैक करने और बेअसर करने के लिए एक मजबूत काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम की आवश्यकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, सेना ने स्वदेशी रक्षा कंपनियों से 'रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन' (RFI) जारी की है, जिसमें उन्नत तकनीकी क्षमताओं वाले समाधान मांगे गए हैं।

ग्राउंड बेस्ड काउंटर अनमैन्ड एरियल सिस्टम (C-UAS):

सेना द्वारा जारी RFI के अनुसार, उन्हें एक ऐसा ग्राउंड-बेस्ड C-UAS सिस्टम चाहिए जो दुश्मन के किसी भी ड्रोन को प्रभावी ढंग से डिटेक्ट, ट्रैक और न्यूट्रलाइज करने में सक्षम हो। इस सिस्टम में वाइडबैंड रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) डिटेक्टर, आधुनिक रडार और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड (EO/IR) कैमरे जैसे उन्नत सेंसर का संयोजन होना आवश्यक है।

सेना ने विभिन्न प्रकार के ड्रोन के आकार के अनुसार उनकी डिटेक्शन रेंज भी निर्धारित की है। माइक्रो ड्रोन को कम से कम 3 किलोमीटर की दूरी से, मिनी ड्रोन को 5 किलोमीटर और छोटे आकार के ड्रोन को 8 किलोमीटर की दूरी से डिटेक्ट और ट्रैक करने की क्षमता सिस्टम में होनी चाहिए। रडार को माइक्रो ड्रोन को 3 किलोमीटर और मिनी व छोटे ड्रोन को 5 किलोमीटर की दूरी से पहचान करने में सक्षम होना चाहिए। सॉफ्ट किल तकनीक के तहत, दुश्मन के ड्रोन को 2 किलोमीटर की दूरी पर ही जैम करने की क्षमता भी अपेक्षित है।

यह C-UAS सिस्टम GPS, ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GLONASS), बेईडौ, गैलीलियो और इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) जैसे विभिन्न नेविगेशन सिस्टम को जाम करने की क्षमता से लैस होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, सिस्टम में स्पूफिंग, मेटाडाटा इंजेक्शन और फॉल्ट इंजेक्शन जैसी उन्नत क्षमताएं भी होनी चाहिए। हार्ड किल विकल्प के तौर पर, इस सिस्टम को भारतीय सेना के पास पहले से मौजूद मीडियम मशीन गन और नेगेव लाइट मशीन गन (LMG) के साथ एकीकृत किया जा सके।

काउंटर ड्रोन सिस्टम की खास बातें:

RFI में उल्लिखित विशेषताओं के अनुसार, इस काउंटर ड्रोन सिस्टम में वाइड बैंड रेडियो फ्रीक्वेंसी डिटेक्टर होना चाहिए जो 5 किलोमीटर की रेंज में ड्रोन की रेडियो फ्रीक्वेंसी को आसानी से डिटेक्ट कर सके। सिस्टम में यह बुद्धि क्षमता भी होनी चाहिए कि वह अपने (मित्र) ड्रोन और दुश्मन के ड्रोन के बीच स्पष्ट रूप से अंतर कर सके। सिस्टम के डिस्प्ले पर दुश्मन के ड्रोन को लाल रंग में और अपने या मित्रवत ड्रोन को नीले रंग में प्रदर्शित करने की क्षमता होनी चाहिए, जिससे ऑपरेटर को त्वरित पहचान में मदद मिले। यदि कोई शत्रुतापूर्ण ड्रोन 2 किलोमीटर की जैमिंग रेंज में आता है, तो उसे न्यूट्रलाइज करने के लिए सिस्टम सॉफ्ट किल तकनीक के तहत वाइड बैंड साइबर इलेक्ट्रो मैगनेटिक ट्रांसमीटर (CEMT) का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए।

यदि सॉफ्ट किल के माध्यम से ड्रोन को बेअसर करने में विफलता मिलती है, तो सिस्टम को उस विशिष्ट रेडियो फ्रीक्वेंसी को थ्रेट लाइब्रेरी में भविष्य के विश्लेषण और मुकाबले के लिए स्टोर करने की क्षमता होनी चाहिए। सिस्टम में कम से कम 1000 से अधिक थ्रेट सिग्नेचर को स्टोर करने की क्षमता अपेक्षित है। इसके अलावा, सिस्टम को एक ऑपरेटर द्वारा आसानी से संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए, जिसका वजन 9 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए और यह लगातार कम से कम 5 घंटे तक काम करने में सक्षम हो।

भारतीय सेना का यह प्रयास निश्चित रूप से सीमा सुरक्षा को और मजबूत करेगा और दुश्मन के ड्रोन से उत्पन्न खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। स्वदेशी कंपनियों से इस दिशा में नवाचारी समाधानों की उम्मीद है।