50 साल बाद भी 'जय संतोषी मां' का जादू बरकरार, बांसुरी पर श्रद्धांजलि देने पहुंचा फैन

1975 में रिलीज हुई फिल्म 'जय संतोषी मां' और उसका अमर भजन 'मैं तो आरती उतारूं रे' आज भी लोगों के दिलों में बसा है। 50 साल बाद एक फैन बांसुरी पर यह भजन बजाकर गीतकार कवि प्रदीप की बेटी के घर पहुंचा।

50 साल बाद भी 'जय संतोषी मां' का जादू बरकरार, बांसुरी पर श्रद्धांजलि देने पहुंचा फैन
फिल्म 'जय संतोषी मां'

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी कई फिल्में आई हैं जिन्होंने समय की सीमाओं को लांघकर इतिहास में अपना एक अमिट स्थान बना लिया है। ऐसी ही एक फिल्म थी ‘जय संतोषी मां’ (Jai Santoshi Maa), जिसके गाने, खासकर भजन ‘मैं तो आरती उतारूं रे’ (Main Toh Aarti Utaroon Re), ने अपार लोकप्रियता हासिल की। इस फिल्म की रिलीज के 50 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज भी यह फिल्म और इसके गाने लोगों की जुबां पर चढ़े रहते हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण हाल ही में देखने को मिला, जब एक शख्स अपनी बांसुरी पर ‘मैं तो आरती उतारूं रे’ भजन बजाते हुए उस शख्सियत के घर पहुंच गया, जिसने इस अमर गीत को लिखा था।

‘मैं तो आरती उतारूं रे’ जैसा कालजयी गीत दिवंगत कवि प्रदीप की लेखनी से उपजा था। उनका वास्तविक नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था, लेकिन वे ‘कवि प्रदीप’ के नाम से मशहूर हुए। उनकी बेटी, मितुल प्रदीप, ने हाल ही में एक अविश्वसनीय घटना का जिक्र किया, जो इस फिल्म और इसके गाने की पांच दशकों के बाद भी जीवंतता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। आइए जानते हैं कि कवि प्रदीप की बेटी के साथ आखिर क्या हुआ?

कवि प्रदीप की बेटी के साथ हुआ अद्भुत अनुभव:

‘जय संतोषी मां’ 1975 में सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। हाल ही में, कवि प्रदीप की बेटी मितुल ने अपने दिवंगत पिता की कलम के जादू का एक अद्भुत किस्सा साझा किया। उन्होंने बताया, ”एक शुक्रवार सुबह, एक व्यक्ति मेरे घर के बाहर बांसुरी पर लगातार ‘मैं तो आरती उतारूं रे’ बजा रहा था। जब मैंने उससे ऐसा करने का कारण पूछा…”

थिएटर में उमड़ पड़ता था भक्ति का सैलाब:

मितुल से बात करते हुए उस शख्स ने कहा, ”दीदी, पचास साल पहले मैं अपनी मां के साथ फिल्म ‘जय संतोषी मां’ देखने गया था। जब थिएटर में यह भजन बजा, तो महिलाएं खड़ी हो गईं, उनकी आंखों में आंसू थे, और कई महिलाओं ने तो सिनेमाघर में ही मां संतोषी की आरती उतारनी शुरू कर दी। वह दृश्य अविश्वसनीय रूप से रोमांचकारी था।” उस व्यक्ति ने आगे कहा, ”मेरी मां की आंखों में भी आंसू थे। वह भी आरती उतारना चाहती थीं। हम अगले दिन फिर से यह फिल्म देखने गए। इस बार मेरी मां ने भी संतोषी माता की आरती थिएटर में की। जब मुझे पता चला कि यह प्रदीप जी का घर है, जिन्होंने यह भजन लिखा था, तो मैं उन्हें अपनी बांसुरी के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं।” इस घटना को किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा सकता। उस दौर में, लोग न केवल सिनेमाघरों में पूजा की थाली लेकर आते थे, बल्कि कुमकुम, चावल, ढोलक, मजीरा आदि भी लाते थे और मां संतोषी की भक्तिभाव से आरती और पूजा करते थे।

मितुल ने यह भी खुलासा किया कि उनके पिता शुरू में इस फिल्म के लिए काम नहीं करना चाहते थे। हालांकि, संगीत निर्देशक सी. अर्जुन ने उन्हें मना लिया था। इस भजन को उषा मंगेशकर ने अपनी मधुर आवाज दी थी, और किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि यह कम बजट की फिल्म उसी साल रिलीज हुई ब्लॉकबस्टर ‘शोले’ जैसी बड़ी फिल्म को टक्कर देकर इतिहास रच देगी। ‘जय संतोषी मां’ सिर्फ 5 लाख रुपये के मामूली बजट में बनी थी और इसने 5 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई करके बॉक्स ऑफिस पर कई नए रिकॉर्ड स्थापित किए थे, जो आज भी इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है।