पहलगाम आतंकी हमला: राष्ट्रीय एकता की परीक्षा, राजनीतिक जवाबदेही की मांग
पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है। महाराष्ट्र सरकार ने मृतकों के परिवारों को 50 लाख की सहायता की घोषणा की है। विपक्ष ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। जानिए पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जानकारी।

संपन्न भारत न्यूज़ विशेष रिपोर्ट
लेखक: विशेष संवाददाता
29 अप्रैल 2025 – 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के सुंदर और पर्यटकप्रिय पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले ने न केवल देश को दहला दिया है, बल्कि भारत की आंतरिक राजनीति और सुरक्षा रणनीतियों पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। इस भीषण हमले के दौरान कई निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जिनमें महाराष्ट्र के कुछ पर्यटक भी शामिल थे। इसके बाद देशभर में रोष, शोक और सियासी उथल-पुथल का माहौल बन गया है।
घटना की भयावहता: प्रत्यक्षदर्शी की आँखों से
हमले के समय घटनास्थल के पास मौजूद ऋषि नामक पर्यटक का वीडियो सामने आने के बाद पूरे देश ने उस मंजर को देखा, जिसे अब तक सिर्फ सुर्खियों में पढ़ा जा रहा था। बायसरन के घास के मैदान में ज़िपलाइन कर रहे ऋषि ने वीडियो में आतंकियों की गोलियों की आवाज़, चीख-पुकार और भगदड़ को रिकॉर्ड किया, जो अब इस त्रासदी का प्रतीक बन गया है। ऋषि ने अमर उजाला से बातचीत में बताया, "हमारी आंखों के सामने गोलियां चलीं, लोग गिरते रहे, और हम बस भगवान का नाम लेकर भागते रहे।"
कैबिनेट की आपात बैठक और फडणवीस सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया
इस हमले के बाद पहली बार केंद्र सरकार की पूर्ण कैबिनेट बैठक बुधवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुलाई गई है। इससे पहले सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCS) की बैठक 23 अप्रैल को हुई थी, जिसमें हमले की कड़ी निंदा की गई थी और पाकिस्तान के खिलाफ कई निर्णायक कदमों की घोषणा की गई थी।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हमले में मारे गए राज्य के नागरिकों के परिवारों को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता, शिक्षा और रोजगार में सहयोग और एक मृतक की बेटी को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। इस मानवीय कदम ने राज्य सरकार की संवेदनशीलता को दर्शाया है।
विपक्ष का आक्रोश और संसद का विशेष सत्र
हमले के तुरंत बाद से ही विपक्षी दल केंद्र सरकार की जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। राजद नेता मृत्यूंजय तिवारी ने कहा, “विपक्ष का धर्म है सवाल पूछना और सरकार का धर्म है जवाब देना। अब समय आ गया है कि आतंकवादियों को करारा जवाब दिया जाए।”
गुलाम नबी आजाद, जो जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के अध्यक्ष हैं, ने भी इस मांग का समर्थन किया और कहा कि सभी दलों को एकमत होकर सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए।
राजनीतिक बयानबाज़ी और विवाद
हमले के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी भी तेज हो गई है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के वित्तीय सलाहकार बसवराज रायरेड्डी ने कहा, "हम पाकिस्तान पर हमला क्यों नहीं करते? हमें तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।" वहीं तृणमूल कांग्रेस की सागरिका घोष ने जम्मू-कश्मीर में ‘बम न्याय’ की आलोचना करते हुए कहा कि यह दिखावटी कार्रवाई है और आतंकवाद से निर्णायक लड़ाई जरूरी है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके नेता कभी-कभी ऐसा बोलते हैं जैसे पाकिस्तान के प्रवक्ता हों। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है।
कूटनीतिक और सामरिक प्रतिक्रिया
भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कूटनीतिक कदम उठाए हैं। पाकिस्तानी सैन्य अताशे को निष्कासित कर दिया गया है, सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया गया है और अटारी लैंड पोर्ट को बंद करने की घोषणा की गई है। यह दिखाता है कि भारत अब सिर्फ निंदा तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि ठोस कदम उठाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान को अलग-थलग करना चाहता है।
सियासत बनाम राष्ट्रहित
राजनीतिक विमर्श में जो सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू सामने आया है, वह है कुछ नेताओं द्वारा इस त्रासदी को राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग करना। महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने विपक्षी नेताओं की विवादास्पद टिप्पणियों की निंदा करते हुए कहा कि यह समय एकजुटता का है, राजनीति करने का नहीं। गोवा के राज्यपाल पी.एस. श्रीधरन पिल्लई ने भी कहा कि “राष्ट्र पहले है, बाकी सब बाद में।”
बीजेपी नेता गौरव भाटिया ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि उनके सोशल मीडिया पोस्ट देश की अखंडता को कमजोर करने की कोशिश हैं। उन्होंने इसे ‘लश्कर-ए-पाकिस्तान कांग्रेस’ की विचारधारा कहा, जो देश को शर्मसार करती है।
एकजुटता ही समाधान
जहां एक ओर सियासत गर्म है, वहीं देश का आम नागरिक चाहता है कि आतंकवाद से निपटने के लिए राजनीतिक दल अपने मतभेदों को दरकिनार कर एकजुट हों। यह हमला सिर्फ एक क्षेत्र या राज्य पर नहीं, पूरे देश की अखंडता और शांति पर हमला है। जिस तरह से सेना और सुरक्षा बल सीमाओं पर तैनात हैं, उसी तरह राजनेताओं की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे संसद और मंचों पर भारत की आवाज़ को मजबूती से रखें।
निष्कर्ष
पहलगाम हमला एक चेतावनी है—देश की सुरक्षा व्यवस्था को और भी अधिक सशक्त बनाने की। यह समय न तो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का है, न ही राजनीतिक लाभ उठाने का। बल्कि यह वह क्षण है जब भारत को एकजुट होकर अपने शत्रुओं को यह दिखाना होगा कि चाहे कितने भी हमले हों, देश की आत्मा को तोड़ा नहीं जा सकता।
संसद का विशेष सत्र बुलाना केवल विपक्ष की मांग नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में एक ज़रूरी कदम हो सकता है, जहां सभी दल मिलकर आतंकवाद के खिलाफ एक राष्ट्रीय नीति तैयार करें। आज देश की ज़रूरत है – संवेदनशील नेतृत्व, निर्णायक कदम और अडिग एकता।