वाराणसी में 70 साल पुरानी 'पहलवान लकी और चाची की कचौड़ी' दुकान पर चला बुलडोजर, सांसद वीरेंद्र सिंह ने जताया विरोध

Shravasti mein dardnak ghatna: Mahila se dushkarm karne wala aaropi police muthbhed ke baad giraftar. Usne dudhmunhe bachche ko dhamki dekar anjaam di thi vardaat. Ek diwan bhi ghayal.

वाराणसी में 70 साल पुरानी 'पहलवान लकी और चाची की कचौड़ी' दुकान पर चला बुलडोजर, सांसद वीरेंद्र सिंह ने जताया विरोध

वाराणसी: लंका थाना क्षेत्र में क़रीब दो दिन पहले 70 साल पुरानी और बेहद मशहूर 'पहलवान लकी और चाची की कचौड़ी' दुकान पर बुलडोजर चला दिया गया। इस घटना के विरोध में आज चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुँचे और निरीक्षण किया।

सांसद वीरेंद्र सिंह ने इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रधानमंत्री काशी के विचार, उसकी विरासत और परंपरा को कभी नहीं समझ सकते, क्योंकि वह गुजरात के रहने वाले हैं।


"प्रधानमंत्री को नहीं पता बनारस की आत्मा कहाँ बसती है"

वीरेंद्र सिंह ने कहा कि "हमारे प्रधानमंत्री को बनारस की आत्मा से जुड़े होने की जानकारी नहीं है कि असली में बनारस कहाँ बसता है, बनारस की आत्मा कहाँ-कहाँ है।" उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि काशी विद्यापीठ के छात्र के तौर पर वे भी यहाँ बैठकर कचौड़ी खाते थे, लस्सी पीते थे और दोस्तों के साथ बातें करते थे।

उन्होंने खेतान की पान की दुकान, कचौड़ी गली और ऐसे तमाम स्थानों का ज़िक्र किया, जो बनारस की पहचान और मशहूरियत का हिस्सा हैं। सांसद ने आगे कहा, "हमारी आत्मा का जो तर्पण होता है, जो मोक्ष मिलता है, वह हमारे बनारस के घाट पर मिलता है।" उन्होंने प्रधानमंत्री को यह बताने की ज़रूरत बताई कि बनारस की गलियों का क्या महत्व है, और बनारस की संस्कृति, सभ्यता, पहचान और धार्मिकता में इन स्थानों की क्या भूमिका है।


विकास के साथ विरासत संरक्षण की वकालत

सांसद वीरेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री को इसलिए यह सब नहीं मालूम है क्योंकि वह काशी के वासी नहीं हैं। उन्होंने ज़ोर दिया कि वे नहीं चाहते कि किसी गरीब की झोपड़ी को ख़त्म कर दिया जाए। उनका मानना था कि बहुत से शहरों और देशों में विकास हुआ है, लेकिन उनके हृदय स्वरूप और पुरातनता को बरकरार रखा गया है, जिससे उनकी ख़ूबसूरती और बढ़ जाती है। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा चुनाव से पहले की गई क्योटो से तुलना पर भी सवाल उठाया और कहा कि काशी कभी क्योटो हो ही नहीं सकती।

यह घटना शहर के विकास परियोजनाओं और स्थानीय विरासत के संरक्षण के बीच एक नए विवाद को जन्म दे रही है।