सुप्रीम कोर्ट ने पलटा पटना हाईकोर्ट का फैसला, कहा - गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत सोच-समझकर दी जाए
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक गंभीर मामले में पटना हाईकोर्ट द्वारा चार आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत को खारिज कर दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह टिप्पणी की कि गंभीर अपराधों में बिना सोच-विचार के अग्रिम जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में अग्रिम जमानत बिना सोचे-समझे नहीं दी जानी चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की तीन सदस्यीय पीठ ने हत्या के एक मामले में पटना उच्च न्यायालय द्वारा चार आरोपियों को अग्रिम जमानत दिए जाने के आदेश को खारिज करते हुए यह तीखी टिप्पणी की।
पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा, "पटना उच्च न्यायालय के आदेश में, आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत गंभीर अपराध से जुड़े मामले में अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं बताया गया है।"
"समझ से परे है आदेश"
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि "यह समझ से परे है कि आदेश क्यों दिया गया। गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में, इस तरह से बिना सोच-विचार किए अग्रिम जमानत देना उचित नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।" अदालत ने एफआईआर और अन्य संबंधित दस्तावेजों को सरसरी तौर पर पढ़ने पर पाया कि अपील करने वाले के पिता पर हमला किया गया और उनकी हत्या अपील करने वाले की मौजूदगी में की गई। ऐसी स्थिति में, अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
क्या था पूरा मामला?
यह आदेश मृतक के बेटे (अपीलकर्ता) की ओर से दायर याचिका पर आया है, जिसमें अग्रिम जमानत देने के पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के पिता पर 2023 में पड़ोसियों के बीच एक विवाद के दौरान सरिया और लाठियों से हमला किया गया था। सिर में गंभीर चोट लगने के कारण उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई। अपील करने वाले के बयान के आधार पर सात आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह घटना एक रास्ते को रोकने से जुड़े विवाद से उपजी है। जैसा कि एफआईआर में भी कहा गया है, आरोपियों की अहम भूमिकाएं इस बात का संकेत देती हैं कि पीड़ित (जिसकी बाद में मृत्यु हो गई) के अचेत हो जाने के बाद भी उन्होंने हमला जारी रखा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय मामले में आरोपों की गंभीरता और प्रकृति को समझने में साफ तौर पर नाकाम रहा।