न होता तुर्की तो भारत नहीं होता अंग्रेजों का गुलाम, ऐसे बदली दुनिया की पॉलिटिक्स और इकोनॉमी
भारत-पाक तनाव में तुर्की का पाक समर्थन! लेकिन इतिहास कहता है, अगर तुर्की न होता तो भारत कभी अंग्रेजों का गुलाम न बनता! जानिए कैसे बदली दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था।

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच तुर्की (अब तुर्किए) का पाकिस्तान को समर्थन देना आजकल खूब चर्चा में है। तुर्की के हथियारों का इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जाने के बाद भारत में तुर्की के बहिष्कार की मांग भी उठी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहास के पन्ने पलटने पर एक ऐसा सच सामने आता है, जो शायद आपको चौंका दे? अगर कभी तुर्की का उदय न हुआ होता, तो शायद भारत कभी अंग्रेजों का गुलाम ही नहीं बनता! तुर्की ने सदियों से दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है।
तुर्की के विश्व को बदलने की यह कहानी लगभग 600 साल पुरानी है। तब भी मई का महीना था और आज भी मई ही चल रहा है। साल 1453 में, आज के इस्तांबुल (तुर्किए की राजधानी) पर ऑटोमन साम्राज्य का अधिकार हो गया। उससे पहले, एशिया और यूरोप के बीच फैले इस महत्वपूर्ण शहर को कुस्तुनतुनिया कहा जाता था, जिस पर 1500 सालों से रोमन साम्राज्य का शासन था। सत्ता में हुए इस बदलाव ने पूरी दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक दिशा को मोड़ कर रख दिया।
बंद हो गया ट्रेड, अमेरिका की हुई खोज
कुस्तुनतुनिया की गद्दी पर बैठते ही नए ऑटोमन साम्राज्य ने सबसे पहला काम यह किया कि यूरोप और एशिया के बीच जिस जमीनी रास्ते से व्यापार होता था, उसे बंद कर दिया। उस समय भारत के मसालों, खासकर काली मिर्च, और टेक्सटाइल, विशेष रूप से ढाका की मलमल, की यूरोप में भारी मांग थी। ये वहां लग्जरी आइटम की तरह बिकते थे और इनके व्यापार में खूब मुनाफा होता था। कुस्तुनतुनिया का रास्ता बंद होने से इन सामानों का व्यापार ठप हो गया। चीन के सिल्क रूट से होने वाले व्यापार पर भी इसका असर पड़ा।
इस एक घटना के बाद यूरोप में व्यापार के नए रास्ते खोजने की होड़ मच गई। स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन और पुर्तगाल जैसे देशों के नाविक अपने जहाजी बेड़े लेकर भारत तक पहुंचने वाले समुद्री रास्तों की तलाश में जुट गए। क्रिस्टोफर कोलंबस भी भारत के रास्ते की तलाश में निकला और गलती से अमेरिका पहुंच गया। इस तरह 1492 में अमेरिका की खोज हुई। वहीं, पुर्तगाल से चले वास्को डी गामा ने अफ्रीका के तट के किनारे-किनारे समुद्र में सफर किया और 'केप ऑफ गुड होप' को पार करके भारत के कालीकट पहुंचा।
काली मिर्च ने भारत को बनाया सोने की चिड़िया
वास्को डी गामा ने भारत का जो समुद्री रास्ता खोजा, वह काफी सुरक्षित था। इसके बाद लगभग 100 सालों तक पुर्तगालियों और डच लोगों ने भारत से यूरोप में कपड़े और मसालों का व्यापार किया। इस व्यापार से उन्होंने खूब पैसा कमाया और भारत पर भी समृद्धि की बारिश हुई।
दरअसल, काली मिर्च और मलमल जैसे सामानों की मांग यूरोप में लगातार बढ़ती गई, जबकि भारत से इन सामानों को लाने के व्यापार पर पुर्तगालियों का एकाधिकार रहा। उस समय करेंसी के तौर पर सोने-चांदी के सिक्कों का चलन था। काली मिर्च और मलमल जैसे कपड़ों के बदले में भारतीयों को यूरोप से खूब सोना मिलता था। इस तरह भारत सच में 'सोने की चिड़िया' बन गया था।
अंग्रेजों का गुलाम बना भारत
लगभग 100 साल बाद, सन 1600 में अंग्रेज भारत की धरती पर पहुंचे। उनके बाद फ्रांसीसी और डेनिश लोग भी इसी व्यापार से मुनाफा कमाने के लिए भारत आए। इन सभी देशों के बीच भारत के व्यापार पर कब्जा करने के लिए कई युद्ध भी हुए। अंग्रेजों ने अपनी बंदूक की ताकत से अधिकतर जगह जीत हासिल की।
इस इतिहास में एक बड़ी घटना 1757 का 'प्लासी का युद्ध' है। बंगाल की धरती पर हुए इस युद्ध ने अंग्रेजों को भारत में अपने पैर जमाने का मौका दिया। फिर कुछ साल बाद, 1764 में हुए बक्सर के युद्ध ने भारत का इतिहास बदल दिया और धीरे-धीरे करके देश अंग्रेजों का गुलाम बन गया।
अगर 1453 में कुस्तुनतुनिया पर ऑटोमन साम्राज्य का अधिकार न हुआ होता और यूरोप-एशिया के बीच व्यापारिक रास्ते खुले रहते, तो शायद यूरोपीय देशों को भारत तक पहुंचने के लिए समुद्री रास्तों की खोज करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। और अगर वास्को डी गामा भारत का समुद्री रास्ता न खोजता, तो शायद अंग्रेज भी भारत तक इतनी आसानी से नहीं पहुंच पाते और भारत कभी अंग्रेजों का गुलाम न बनता। इतिहास के इस दिलचस्प मोड़ ने न केवल दुनिया की राजनीति बदली, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी एक नया रूप दिया।