महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में 'इमोशनल अल्केमी' पर विशेष व्याख्यान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता के महत्व पर जोर

वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में 'इमोशनल अल्केमी' पर व्याख्यान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और आत्म-प्रेम पर जोर।

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में 'इमोशनल अल्केमी' पर विशेष व्याख्यान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता के महत्व पर जोर

वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अंग्रेजी एवं अन्य विदेशी भाषा विभाग द्वारा आज मानवीकि संकाय के सभागार में 'इमोशनल अल्केमी :टर्न योर वून्ड्स इन विज्डम' (भावनात्मक कीमिया: अपने घावों को बुद्धिमत्ता में बदलें) विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. मंगेश कुमार उपस्थित थे, जो एक एम.बी.बी.एस., डी.एम.एल.एस., एम.एससी. फॉरेंसिक साइंस और माइंड साइंस विशेषज्ञ हैं।

डॉ. मंगेश कुमार ने अपने व्याख्यान में विद्यार्थियों को उनके मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि जिस प्रकार बुद्धि लब्धि (आईक्यू) महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार भावनात्मक लब्धि (ईक्यू) भी समान रूप से आवश्यक है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति चार अलग-अलग शरीरों - भौतिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक - के साथ जन्म लेता है, और इन सभी पहलुओं का सही समय पर विकसित होना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

डॉ. कुमार ने आज के युग में व्याप्त भावनात्मक द्वंद्व की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि अक्सर हमें ऐसा लगता है कि हम जो संसार देख और सुन रहे हैं, वही एकमात्र सत्य है। जबकि वास्तविकता यह है कि हम एक दोहरी दुनिया में जीते हैं - पहली बाहरी दुनिया, जिसे हम इंद्रियों से अनुभव करते हैं, और दूसरी हमारे अपने अंदर की आंतरिक दुनिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि बाहरी दुनिया बहुत हद तक हमारी आंतरिक दुनिया का ही प्रक्षेपण होती है। अर्थात्, हम जो सोचते हैं, विश्वास करते हैं और अनुभव करते हैं, वही हमें अपने बाहरी वातावरण में दिखाई देता है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यदि हम किसी के बारे में बुरा सोचते हैं, तो सबसे पहले हम स्वयं उस नकारात्मकता से प्रभावित होते हैं, और किसी से नफरत करने पर हम पहले खुद से ईर्ष्या करते हैं।

डॉ. मंगेश कुमार ने कहा कि हम बाहरी दुनिया के रिश्तों से तो जुड़ते हैं, लेकिन हमारा स्वयं से संवाद और मुलाकात बहुत कम हो पाती है। हम बाहर सब कुछ ठीक करना चाहते हैं, लेकिन वास्तव में कुछ भी ठीक नहीं कर रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में सबसे अधिक आवश्यकता स्वयं को जानने, खुद से प्यार करने और अपनी आंतरिक शांति स्थापित करने की है। उन्होंने दूसरों को क्षमा करने और अपने अंदर कृतज्ञता का भाव उत्पन्न करने के महत्व पर जोर दिया, क्योंकि यही वे चीजें हैं जो हमें भावनात्मक शक्ति प्रदान करती हैं और हमारे अंदर सकारात्मकता का संचार करती हैं, जिससे हमारी सभी विकृतियों और बीमारियों का अंत होता है। उन्होंने सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के उदाहरण से विद्यार्थियों को इस बात को गहराई से समझने का प्रयास किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के माननीय कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने अपने वक्तव्य में आज के समय में भावनात्मक परिपक्वता की अत्यावश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने साहित्य के विद्यार्थियों के लिए भावनात्मक शक्ति एवं परिपक्वता को और भी अधिक महत्वपूर्ण बताया, क्योंकि उनकी रचनात्मकता सीधे तौर पर समाज को प्रभावित करती है। प्रो. त्यागी ने कहा कि किसी भी बच्चे की सफलता या असफलता के लिए केवल वह स्वयं जिम्मेदार नहीं होता, बल्कि उसकी पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने माता-पिता की जिम्मेदारी पर जोर देते हुए कहा कि उन्हें बच्चों को 2 वर्ष की अवस्था से ही भावनात्मक रूप से जोड़कर रखना चाहिए और उन्हें केवल सफलता प्राप्त करने के लिए ही प्रेरित नहीं करना चाहिए, बल्कि हार को स्वीकार करने के लिए भी मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए। उन्होंने विभाग द्वारा आयोजित इस ज्ञानवर्धक कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की।

विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर प्रो. नलिनी श्याम कामिल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भावना, संवेदना एवं अनुभूति मानव जीवन के तीन महत्वपूर्ण आधार स्तंभ हैं। इनके बिना एक आदर्श मनुष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि साहित्य हमारे अंदर इन्हीं भावनाओं एवं मूल्यों को पोषित करता है। प्रो. कामिल ने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि हम प्रकृति एवं ईश्वर प्रदत्त चीजों में संतुष्ट रहते हुए हमेशा बेहतरीन के लिए प्रयास करते रहें, क्योंकि इसी से मनुष्य जीवन को वास्तव में सुखमय बनाया जा सकता है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में, विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम समन्वयक डॉ. निशा सिंह ने उपस्थित अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यक्रम के विषय पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. किरन सिंह ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नीरज सोनकर द्वारा किया गया। इस अवसर पर मानविकी संकाय के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर अनुराग कुमार, छात्र कल्याण संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर राजेश कुमार मिश्र, कुलानुशासन प्रोफेसर के. के. सिंह, विभिन्न विभागों से आए शिक्षकगण और विभाग के शिक्षक डॉ. नवरत्न सिंह, डॉ. कविता आर्य, डॉ. रीना चटर्जी, डॉ. आरती विश्वकर्मा एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे, जिन्होंने इस महत्वपूर्ण व्याख्यान से लाभ उठाया।