वट सावित्री व्रत 2025: एक माह में दो बार क्यों? अमावस्या और पूर्णिमा का रहस्य!
वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए क्यों है खास? ज्येष्ठ माह में अमावस्या और पूर्णिमा को दो बार क्यों रखते हैं यह व्रत? जानिए इसके पीछे की महत्वपूर्ण वजह।

वट सावित्री का व्रत, सुहागिन महिलाओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार माना जाता है। इस दिन, विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना करते हुए उपवास रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ माह में आता है, लेकिन इसकी एक खास बात यह है कि यह एक ही महीने में दो बार मनाया जाता है – पहली बार ज्येष्ठ अमावस्या को और दूसरी बार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि को। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? आइए, इस रहस्य के पीछे की वजह को जानते हैं।
सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। हर साल, यह व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन पड़ता है, और इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की श्रद्धापूर्वक पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है, और निसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति भी हो सकती है।
अब बात करते हैं ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाए जाने वाले वट सावित्री व्रत की। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब यह व्रत अमावस्या को भी किया जाता है, तो फिर पूर्णिमा को इसे दोबारा क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे दरअसल, भारत में प्रचलित दो प्रमुख चंद्र कैलेंडर हैं।
वट सावित्री व्रत कब है 2025 में?
साल 2025 में वट सावित्री व्रत दो तिथियों पर पड़ रहा है:
- पहला वट सावित्री व्रत: 26 मई 2025 (ज्येष्ठ अमावस्या)
- दूसरा वट सावित्री व्रत: 10 जून 2025 (ज्येष्ठ पूर्णिमा)
दो बार क्यों किया जाता है वट सावित्री व्रत?
इस प्रश्न का उत्तर हमें स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और निर्णयामृतादि जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों से मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाना चाहिए। वहीं, निर्णयामृतादि जैसे कुछ अन्य मतों के अनुसार, यह व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को करना उचित है।
इसका कारण यह है कि भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार के चंद्र कैलेंडर प्रचलित हैं: अमावस्यांत और पूर्णिमानता। इन दोनों कैलेंडर प्रणालियों में तिथियों की गणना में अंतर होता है।
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पूर्णिमानता कैलेंडर: इस कैलेंडर के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे वट सावित्री अमावस्या कहा जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों, जैसे कि नेपाल और मिथिला के क्षेत्रों में, इसी तिथि को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है।
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अमावस्यांत कैलेंडर: इस कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को वट सावित्री का व्रत मनाया जाता है। इसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। गुजरात और महाराष्ट्र समेत भारत के कई अन्य राज्यों में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही वट सावित्री का व्रत करने की परंपरा है।
इस प्रकार, एक ही व्रत को ज्येष्ठ माह में दो अलग-अलग तिथियों – अमावस्या और पूर्णिमा – पर मनाने का कारण भारत में प्रचलित दो अलग-अलग चंद्र कैलेंडर प्रणालियां हैं। दोनों ही तिथियों का अपना-अपना महत्व है और देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार इस महत्वपूर्ण व्रत को मनाया जाता है। मूल भावना दोनों ही व्रतों में एक ही है – अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करना और सावित्री के त्याग और समर्पण को याद करना, जिन्होंने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से भी छीन लिए थे।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. सम्पन्न भारत न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता है.