Sampurnanand Sanskrit University : सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को भावभीनी श्रद्धांजलि
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती मनाई गई। कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन को सेवा, सुशासन और सांस्कृतिक संरक्षण का प्रतीक बताया।

Lokmata Ahilyabai Holkar 300th Jayanti : सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में आज पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती (त्रिशताब्दी वर्ष) अत्यंत श्रद्धा, गर्व और प्रेरणा के साथ मनाई गई। इस विशेष अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा ने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की तस्वीर पर माल्यार्पण कर उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने लोकमाता के जीवन को सेवा, सुशासन और सांस्कृतिक संरक्षण की त्रिवेणी के रूप में वर्णित किया।
कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा ने अहिल्याबाई होलकर के जीवन और उनके महान कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि लोकमाता का जीवन नारी शक्ति, लोकसेवा, सुशासन और भारतीय संस्कृति के संरक्षण का एक अद्वितीय उदाहरण है। प्रोफेसर शर्मा ने कहा, “अहिल्याबाई जी का जीवन इस सत्य का जीवंत प्रमाण है कि भारतीय परंपरा में नारी को न केवल सम्मान और श्रद्धा प्राप्त थी, बल्कि उन्हें नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका भी सौंपी गई थी। अपने पति की असामयिक मृत्यु और पुत्र वियोग जैसी कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने अद्भुत धैर्य, बुद्धिमत्ता और धार्मिकता के साथ मालवा के शासन को कुशलतापूर्वक संभाला और इतिहास में ‘लोकमाता’ के रूप में अमर हो गईं। उनका जीवन आज भी प्रभावी शासन और सामाजिक जिम्मेदारी का एक उत्कृष्ट आदर्श है।”
प्रोफेसर शर्मा ने अहिल्याबाई के शासन को न्याय और कल्याणकारी योजनाओं का प्रतीक बताया। उन्होंने उस दौर का स्मरण किया जब देश राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था, और ऐसे समय में लोकमाता ने काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, रामेश्वरम, द्वारका, अयोध्या, गया और बद्रीनाथ जैसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों का पुनर्निर्माण और उचित व्यवस्थापन कराकर भारतीय सांस्कृतिक परंपरा को एक नई ऊर्जा प्रदान की।
प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि अहिल्याबाई का जीवन धर्म, निस्वार्थ सेवा और न्याय के तीन मजबूत स्तंभों पर आधारित था। वे प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त में अपनी पूजा-अर्चना पूर्ण करने के पश्चात पूरे दिन अपनी प्रजा की आवश्यकताओं, न्याय प्रदान करने और जनकल्याण की विभिन्न योजनाओं को समर्पित रहती थीं। उनके शासनकाल में राजा और प्रजा दोनों ही समान रूप से अपने कर्तव्यों के प्रति उत्तरदायी थे, और उन्होंने कभी भी धन को व्यक्तिगत वैभव का साधन नहीं माना, बल्कि उसे हमेशा लोक सेवा के माध्यम के रूप में प्रयोग किया।
कुलपति ने अहिल्याबाई के जीवन को संस्कृति, संस्कारों और शिक्षा के प्रति अटूट समर्पण का साकार रूप बताया। उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रति उनके गहरे सम्मान और विद्वानों को उनके द्वारा दिए गए संरक्षण का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि उनका यह समर्पण आज सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
प्रोफेसर शर्मा ने अपने संबोधन के अंत में जोर देकर कहा कि 21वीं सदी में नारी सशक्तिकरण, सुशासन और संस्कृति संरक्षण की बातें कोई नई अवधारणा नहीं हैं, बल्कि यह हमारी प्राचीन परंपरा की आत्मा है। अहिल्याबाई होलकर ने शासन को सेवा का पर्याय बनाकर, संस्कृति को समाज का आधार बनाकर और नारी को केंद्र में प्रतिष्ठित कर इस सत्य को सदियों पहले ही सिद्ध कर दिया था।