वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में घमासान: सरकार ने याचिकाओं को बताया 'राजनीति से प्रेरित', कहा - यह दान का तरीका, धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। एसजी तुषार मेहता ने सरकार का बचाव करते हुए याचिकाकर्ताओं को 'गैर-प्रभावित' बताया और कानून को सही ठहराया।

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में घमासान: सरकार ने याचिकाओं को बताया 'राजनीति से प्रेरित', कहा - यह दान का तरीका, धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून 2023 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज फिर तीखी बहस देखने को मिली। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ अंतरिम आदेश जारी करने के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है। कल याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कानून में कई खामियां गिनाई थीं, जिसके जवाब में आज केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पुरजोर बचाव किया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील की शुरुआत करते हुए याचिकाकर्ताओं की मंशा पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जनहित याचिकाएं दाखिल करने वाले व्यक्ति इस कानून से सीधे तौर पर प्रभावित पक्ष नहीं हैं। मेहता ने जोर देकर कहा कि संसद के पास कानून बनाने की विधायी क्षमता है और इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती हैं।

सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा कि अब एक झूठी कहानी बनाई जा रही है कि वक्फ की संपत्तियां छीनी जा रही हैं। उन्होंने इसे देश को गुमराह करने का प्रयास बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भविष्य में 'वक्फ बाय यूजर' (इस्तेमाल के आधार पर वक्फ मानी जाने वाली संपत्ति) की अनुमति तीन विशिष्ट अपवादों के साथ ही होगी और ऐसी संपत्तियों का पंजीकृत होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि कोई संपत्ति 2024 तक वक्फ थी और वह पंजीकृत नहीं है। ऐसा करना 102 वर्षों से दंडनीय कृत्य को वैध बनाने जैसा होगा। उन्होंने सरकारी संपत्तियों के मामले में भी स्थिति स्पष्ट की कि सरकार संपत्तियों की मालिक नहीं है, बल्कि केवल उनकी संरक्षक है।

मेहता ने तर्क दिया कि सरकार सभी नागरिकों के लिए ट्रस्ट के रूप में भूमि रखती है। 'वक्फ बाय यूजर' की परिभाषा के अनुसार, संपत्ति किसी और की होती है और किसी व्यक्ति ने केवल लंबे समय तक उसका निरंतर उपयोग करने का अधिकार अर्जित किया होता है। ऐसे में, निजी और सरकारी संपत्ति के लंबे समय तक उपयोग की जांच करना आवश्यक है। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर किसी इमारत में सरकारी संपत्ति हो सकती है, तो क्या सरकार यह जांच नहीं कर सकती कि संपत्ति वास्तव में सरकार की है या नहीं?

सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि शुरुआती विधेयक में कलेक्टर को फैसला करने का अधिकार दिया गया था, जिस पर यह आपत्ति थी कि कलेक्टर अपने ही मामले में न्यायाधीश बन जाएगा। इसलिए, संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी अन्य नामित अधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए। इस पर चीफ जस्टिस गवई ने टिप्पणी की कि यह सिर्फ एक कागजी प्रविष्टि होगी, जिस पर मेहता ने सहमति जताई। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि सरकार स्वामित्व चाहती है, तो उसे टाइटल के लिए मुकदमा दायर करना होगा। यदि कोई ट्रस्ट की संपत्ति का दुरुपयोग कर रहा है, तो उसे पता होना चाहिए कि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार सरकार मालिक है, न कि वक्फ।

चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से जो तस्वीर पेश की जा रही है, वह यह है कि एक बार कलेक्टर जांच कर ले तो संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं रह जाएगी और पूरी संपत्ति सरकार के कब्जे में चली जाएगी। इसके जवाब में मेहता ने कहा कि सरकार को स्वामित्व के लिए टाइटल सूट दाखिल करना होगा। जस्टिस मसीह ने पूछा कि जब तक कानून का सहारा नहीं लिया जाता, तब तक कब्जा ऐसे ही जारी रहेगा? इस पर एसजी ने सहमति जताई।

मेहता ने यह भी कहा कि यदि किसी ने खुद को 'वक्फ बाय यूजर' के तौर पर पंजीकृत किया है, तो यह दो अपवादों के साथ है - यदि किसी निजी पक्ष ने मुकदमा दायर किया हो, यह दावा करते हुए कि यह उसकी संपत्ति है जिसे वक्फ घोषित किया गया है। उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्ति से संबंधित निजी पक्षों के बीच कोई भी विवाद सक्षम न्यायालय के निर्णय द्वारा शासित होगा। सरकार मुख्य रूप से 'वक्फ बाय यूजर' से निपट रही है।

सरकार ने अदालत में यह भी स्पष्ट किया कि इस्तेमाल के आधार पर वक्फ मानी जाने वाली संपत्ति का सिद्धांत मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है, बल्कि यह केवल दान का एक तरीका है, जैसे हिंदू, सिख या ईसाई धर्मों में होता है। इसे धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं माना जा सकता।

सॉलिसिटर जनरल ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड केवल धर्मनिरपेक्ष कार्य करता है, जैसे वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करना, हिसाब-किताब या खातों का ऑडिट करना। उन्होंने सवाल उठाया कि बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों के होने से क्या बदलाव आएगा, क्योंकि यह किसी भी धार्मिक गतिविधि को प्रभावित नहीं करता है। उन्होंने हिंदू बंदोबस्ती कानून का उदाहरण देते हुए कहा कि आयुक्त मंदिरों के अंदर जा सकते हैं और पुजारी का फैसला राज्य सरकार करती है, जबकि वक्फ बोर्ड धार्मिक गतिविधियों से बिल्कुल भी नहीं जुड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई अभी जारी है और देखना होगा कि अदालत इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या अंतरिम आदेश जारी करती है।