पहलगाम में आतंकवाद के बीच भारतीय सेना का साहसिक बचाव: पर्यटक आतंकी समझकर मांगने लगे जान की भीख

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पर्यटकों ने भारतीय सेना के जवानों को आतंकवादी समझ लिया और अपनी जान की भीख मांगी। जानिए, एक दिल दहला देने वाली घटना का पूरा सच।

पहलगाम में आतंकवाद के बीच भारतीय सेना का साहसिक बचाव: पर्यटक आतंकी समझकर मांगने लगे जान की भीख

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हाल ही में हुआ आतंकवादी हमला, जिसने न केवल इलाके में दहशत फैलाई, बल्कि कई निर्दोष नागरिकों की जान को भी खतरे में डाला। यह घटना जम्मू-कश्मीर के बैसरन वैली में हुई, जो पहलगाम से महज छह किलोमीटर दूर स्थित है। यहां हुए इस हमले के दौरान पर्यटक और स्थानीय नागरिक दोनों ही आतंकवादियों के आतंक से घबराए हुए थे। जब आतंकी हमला हुआ, तो भागते हुए पर्यटक अपनी जान बचाने के लिए हर संभव उपाय कर रहे थे। इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिसने इस हमले को और भी दिल दहला देने वाला बना दिया।

हमले के दौरान जब पर्यटक भागते हुए जा रहे थे, तो उन्होंने भारतीय सेना के कुछ जवानों को देखा। परंतु, आतंकवादियों से इतने डर में थे कि उन्होंने भारतीय सैनिकों को भी आतंकवादी समझ लिया। जैसे ही महिलाओं और बच्चों का एक समूह भारतीय सैनिकों के पास आया, वे उन सैनिकों से अपनी जान की भीख मांगने लगे। यह घटना एक बड़ी त्रासदी का हिस्सा बन गई, क्योंकि यह दिखाता है कि किस तरह आतंकवाद का डर लोगों को मानसिक रूप से इस कदर प्रभावित करता है कि वे अपने ही देश के सैनिकों को दुश्मन समझने लगते हैं।

एक महिला अपने बच्चों के साथ भारतीय सेना के जवानों के पास पहुंची और उनसे जान की भीख मांगने लगी। महिला को लगता था कि ये भी आतंकवादी हैं और उसकी जान को खतरा हो सकता है। महिला की हालत बेहद खराब थी, क्योंकि उसने आतंकवादियों द्वारा अपने पति की हत्या होते देखी थी। जब भारतीय सैनिकों ने महिला को शांत करते हुए कहा कि वे भारतीय सेना से हैं और उनकी मदद करने के लिए यहां आए हैं, तो महिला की आंखों में राहत के आंसू थे। महिला ने कहा कि आतंकवादियों ने उसके पति को मार डाला और अब वह अपने बच्चों के साथ सुरक्षित जगह की तलाश में थी। भारतीय सेना के जवानों ने महिला और बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और उन्हें दिलासा दिया।

यह घटना आतंकवाद की त्रासदी को और भी स्पष्ट रूप से दर्शाती है। यह केवल एक सैन्य कार्यवाही नहीं थी, बल्कि एक मानवीय कार्य भी था, जिसमें भारतीय सैनिकों ने अपने कर्तव्य को निभाते हुए आम नागरिकों की मदद की। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि भारतीय सेना सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि आंतरिक संकटों के दौरान भी अपने नागरिकों की सुरक्षा में हमेशा तत्पर रहती है।

इस घटना ने यह भी दिखाया कि जब आतंकवाद का भय गहराता है, तो सामान्य नागरिकों का डर इतना बढ़ जाता है कि वे अपने ही सुरक्षा बलों को भी दुश्मन समझने लगते हैं। यह आतंकवाद का भय और अविश्वास का परिणाम है। जिस माहौल में हमलावर खुलेआम आतंक फैला रहे होते हैं, वहां आम नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए किसी पर विश्वास नहीं होता। ऐसे समय में भारतीय सेना का कर्तव्य निभाते हुए इन नागरिकों को सुरक्षित करना एक साहसिक कार्य था, जिसे हम कभी नहीं भूल सकते।

इस घटना से यह भी साफ हो जाता है कि कश्मीर में आतंकवाद के कारण सुरक्षा की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वहां के नागरिकों और पर्यटकों के लिए अपने ही देश में सुरक्षित रहना एक चुनौती बन गई है। कश्मीर में आतंकवाद की घटनाएं न केवल स्थानीय जनता के लिए, बल्कि बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी जानलेवा साबित हो रही हैं। यह घटना एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि क्या आतंकवाद की यह स्थिति कभी समाप्त हो सकेगी और क्या कश्मीर के लोग कभी अपने घरों में सुरक्षित महसूस कर पाएंगे?

Conclusion:

इस घटना ने हमें यह सिखाया कि भारतीय सेना सिर्फ सीमा पर ही नहीं, बल्कि देश के भीतर भी अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहती है। हमारे जवान हर संकट में अपनी जान की परवाह किए बिना नागरिकों की मदद करने के लिए अग्रसर रहते हैं। यही कारण है कि भारतीय सेना की सराहना हर किसी द्वारा की जाती है। साथ ही, यह घटना कश्मीर और अन्य आतंकवादी क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा की आवश्यकता को भी स्पष्ट करती है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि आतंकवाद न केवल एक सैन्य समस्या है, बल्कि यह समाज के प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित करता है। ऐसे में हमें देश की एकता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हर कदम उठाना होगा।